प्रत्येक वर्ष हम ढेर सारे त्यौहार बहुत ही हर्ष एवं उल्लासपूर्ण रूप में मनाते है उनमे से प्रमुख है ईद, रक्षा बंधन, दीपवाली, दशहरा, नौरात्रि, गणेश चतुर्दशी, गुरु पूर्णिमा होली इनके साथ-साथ देश के प्रत्येक कोने में भी हम अपनी पूर्वजो की रीती रिवाज को भी मनाते रहते है त्यौहार के रूप में या फिर किसी अन्य रूप में. इन त्योहारों के माध्यम से हम अपनी खुशियों का इजहार करते है साथ ही साथ भाईचारा प्रेम का प्रसार भी करते है. आज से पूरे देश में नवरात्री माँ दुर्गा जी की पूजा भव्य तरीके से पूरे नौ दिनों तक मनाई जायेगी. जगह-जगह माँ की मूर्तियों और पूजा पाठ देखने को मिलने शुरू हो गये है. कुछ लोगों में आपसी प्रतियोगिता भी देखने को मिल रही है की किस कि मूर्ति और साज-सज्जा श्रेष्ठ है छोटे स्तर एवं बड़े दोनों स्तरों पर यह देखने को मिल रहा है.  पैसे बेहिसाब खर्च किये जा रहें है हर तरफ जश्न का माहौल है. और यदि गहराई से देखा जाय तो होने भी चाहिये. यहाँ एक बात और सामने रखना चाहूँगा कि हम यह सब त्यौहार क्यों मनाते है क्यों हम कुछ समय के लिये सारी परेशानियों से मुक्त समझ कर इसका अद्भुत आनंद उठाते है. चलिये अगर यह मान भी लिया जाय कि यह सब करने के पश्चात हमें मानसिक संतुष्टि मिलती है तो प्रश्न यह उठता है कि हम यह प्रत्येक वर्ष क्यों मनाते है. और किसलिए मनाते है. जिस तरह से हम वर्ष दर वर्ष त्योहारों को बहुत ही हर्षो उल्लास से मनाते चले जा रहे है साथ ही यह भी सच्चाई देखने को मिली है कि हम उतनी ही अपनी सभ्यता संस्कारो से दूर भी होते चले जा रहें है. सभी त्योहारों को मनाने के पीछे यदि हम कारण देखें तो कहीं न कहीं बुराई पर अच्छाई के प्रतिक के रूप में ही हम त्यौहार मनाते है पर क्या हम इन त्योहारों से कुछ सबक खुद लेने के साथ-साथ अपनी युवा पीड़ी को दे पाते है, शायद नही. क्या ऐसे त्यौहार मनाने का औचित्य है की हम उसके द्वारा दिये जा रहें ज्ञान सन्देश का अनुसरण ही न करें बल्कि अपनी मानसिक संतुष्टि के लिये आकर्षक रूप से त्यौहार मनाते रहें. आइये जरा मिलकर सोचते है. यदि इस समय चल रही पावन माँ दुर्गा कि पूजा नवरात्री का ही अनुसरण ले तो स्पष्ट तौर पर यह सन्देश मिलता है कि लाखो बुराइयों पर एक अच्छाई भारी है. और माँ ने विभिन्न रूपों में बुराई का ही नाश किया है. जिसकी अनुसंशा हमें सप्तसती पाठ करने पर मिलती है. मैंने कुछ सज्जनों से यह भी सुना है कि “अरे यार अभी तो नवरात्री चल रही है मांस मदिरा का सेवन अभी नही करूँगा हां नवरात्री के बाद फिर से करूँगा” क्या फायदा ऐसे त्यौहार मनाने का जिसके मूल सिधान्तो का भी अनुसरण न करें. इससे अच्छा होता कि आस्तिक बनाने के बजाय नास्तिक ही बन जाएँ. कम से कम आस्तिक की आड़ में नास्तिक का कार्य तो नही करेंगे. जागृति हमेशा से इस सिद्धांत पर आधारित होती है कि जब भी वह आये तभी श्रेष्ठ कर है अर्थात अगर हम सभी अभी से इस सिद्धांत को अपना ले कि किसी भी त्यौहार को मनाने से पूर्व उसके ज्ञान सिधान्तो का अनुसरण जरुर करेंगे और अपने लोगों में उसका प्रचार-प्रसार भी तो शायद मानसिक संतुष्टि के साथ-साथ हम नई पीड़ी को एक सही दिशा अवश्य ही प्रदान कर पायेंगे. ये त्यौहार ही हमारे लिये प्रकाश की किरण कि तरह है जिनके माध्यम से हम अपनी आत्म शक्ति के साथ साथ अपने संस्कारो, धर्मो, विचारों, की रक्षा के साथ साथ देश में चल रही बुराइयों को समाप्त भी कर सकतें है. आइये इस नवरात्री हम सब मिलकर माँ दुर्गा के द्वारा दी गयी बातों को अपने जीवन में उतरने का दृन संकल्प ले. जिससे हम वर्ष दर वर्ष अपने को और मजबूत और ससक्त बना सकें. सिर्फ कुछ दिनों तक नियमों का पालन न करके बल्कि जीवन पर्यंत उन नियमों का पालन करें तभी सच्ची श्रद्धा सामने आयेगी और हम सामाजिक बुराइयां भी समाप्त कर पायेंगे.

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