यह सामान्य अवधारणा है कि नंबर वन बनने की चाह तो सभी बीमा कम्पनियाँ रखती है पर नंबर वन वही बन पाती है जिनमे वास्तविक रूप से कठिन परिश्रम के साथ साथ नये-नये टेक्नोलाजी के उपयोग से कार्य सम्पादित करती है. इससे भी बड़ी बात है कि जो कंपनी अपना लक्ष्य सटीक रखती है और उसे प्राप्त करने के लिये नये-नये उपाय प्रयोग में लाती है और अंततः लक्ष्य को प्राप्त करती है वही नंबर वन बन पाती है. आपको ढेरों सिद्धांत किताबो में पढने को मिल जायेंगे जो नंबर वन बनाने के तरीकों को विस्तृत किये हुये है. पर यदि देखा जाय तो वो सिद्धांत और वास्तविकता में जमीन आसमान का अंतर होता है. मतलब जो हम पढते है और जो वास्तव में सम्पादित करते है उनमे व्यापक अंतर होता है.
नंबर वन बनने से भी ज्यादा महतवपूर्ण कार्य होता है उस स्थान पे कायम रहना. एल.आई.सी. के नंबर वन होने के पीछे का मूलभूत कारण सिर्फ इतना है की वह न केवल अपना लक्ष्य निर्धारित करती है बल्कि उसे प्राप्त करने के लिये सार्थक प्रयास भी करती है साथ ही साथ वह अपने साथ एसोसिएटेड लोगों का भी विशेष ध्यान रखती है चाहे वह पॉलिसी होल्डर हो, कर्मचारी हो, या फिर बिक्री के प्रतिनिधि. जबकि निजी बीमा कंपनियों में इस बात का आभाव है जैसे अधिकांश बीमा कंपनिया सिर्फ व्यवसाय बढाने की तकनीक अपनाती है और अपने ग्राहकों, कर्मचारियों, एवं विक्री प्रतिनिधियों का ध्यान नही रख पाती. आप सब लोगों से और भी कुछ जिक्र करने से पहले कुछ आकंडे आपके सम्मुख प्रस्तुत करना चाहता हूँ.
१.बीमा के निजीकरण से लेकर अब तक एल.आई.सी. अपने व्यावसायिक प्रदर्शन के आधार पर नंबर वन है
२.बीमा व्यवसाय में अब तक कुल २४ बीमा कंपनिया है एल.आई.सी. को मिलाकर के.
३.वित्तीय वर्ष 2009-10 में कुल रुपया 1,09,290 करोड़ का नया व्यवसाय बीमा उद्योग में हुआ था. जिसमे अकेले एल.आई.सी. की हिस्सेदारी रु.70,891 करोड़ की थी जबकि निजी क्षेत्र के कुल 22 जीवन बीमाकर्ता मिलकर सिर्फ रुपया 38,399 करोड़ का ही काम कर पाये थे.
४.वित्तीय वर्ष 2010-11 में कुल रुपया 1,25,826 करोड़ का नया व्यवसाय बीमा उद्योग में हुआ था. जिसमे अकेले एल.आई.सी. की हिस्सेदारी रु. 86,445 करोड़ थी जबकि निजी क्षेत्र के कुल 22 जीवन बीमाकर्ता मिलकर सिर्फ रुपया 39,389 करोड़ का ही काम कर पाये थे.
५.वित्तीय वर्ष 2011-12 में कुल रुपया 1,14,233 करोड़ का नया व्यवसाय बीमा उद्योग में हुआ था. जिसमे अकेले एल.आई.सी. की हिस्सेदारी रु. 81,514 करोड़ थी जबकि निजी क्षेत्र के कुल 23 जीवन बीमाकर्ता मिलकर सिर्फ रुपया 32,718 करोड़ का ही काम कर पाये थे.
६.और यदि वर्तमान वित्तीय वर्ष के नवीनतम उपलब्ध आकड़ो को देखा जाय तो अगस्त 2012 तक के आकड़ो के आधार पर उद्योग स्तर पर कुल रुपया 39,358 करोड़ का नव व्यवसाय हुआ है जिसमे अकेले एल.आई.सी. की हिस्सेदारी रुपया 29,893 करोड़ की है जबकि 23 निजी बीमाकर्ता मिलकर सिर्फ रुपया 9,464 करोड़ का ही व्यवसाय कर पायें है
उपरोक्त आकंड़े स्पष्ट तौर पर एल.आई.सी. की क़ाबलियत को बयाँ कर रहे है. देश में जीवन बीमा के निजीकरण के 11 वर्षों के पश्चात भी कोई अन्य कम्पनी एल.आई.सी. से आगे निकलना तो दूर, दूर-दूर तक एल.आई.सी. को कोई प्रतियोगिता भी नही दे पा रहें है. यहाँ तक की समस्त निजी बीमा कंपनियों द्वारा किये गये व्यवसाय को मिलकर देखा जाय तो भी एल.आई.सी. ने उन सबके टोटल व्यवसाय का दुगुना व्यवसाय वर्ष दर वर्ष किया है और अगर समस्त निजी बीमाकर्ताओं के कार्यालय, बिमा सलाह्कार, अन्य विक्री माध्यमों को देखा जाय तो वह एल.आई.सी. से कहीं बहुत अधिक है
वर्तमान वित्तीय वर्ष के लिये एल.आई.सी. ने रुपया 45,000 करोड़ का नव व्यवसाय का और 4.5 करोड़ पॉलिसी का लक्ष्य रखा हुआ है अभी तक के प्रदर्शन के आधार पर यह कहा जा सकता है की वह न केवल इस लक्ष्य को पूरा करेंगे बल्कि इस लक्ष्य से दुगुना कार्य इस वित्तीय वर्ष में जरुर करेंगे. निजी बीमाकर्ताओ को चाहिये की वो एल.आई.सी के क्रिया-कलापों से सीख ले जिससे न केवल वो अपना व्यवसाय अधिक कर पायेंगे बल्कि आने वालें वर्षों में स्वस्थ्य प्रतियोगिता भी दे पायेंगे. तभी तो कहते है एल. आई. सी. सबसे बेहतर है. और इन्ही वजहों से वो लगातार नंबर वन भी.
Data Source : IRDA
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