बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDA) द्वारा बीमा कंपनियों पर लगाया जा रहा जुर्माना कितना सही कितना गलत ?

बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण, इरडा (Insurance Regulatory Development Authority, IRDA) देश की प्रमुख नियंत्रक इकाईयों में से एक है. यदि देखा जाय तो प्राधिकरण पिछले तीन वर्षों से लगातार किसी न किसी कारण से चर्चा में रहा है, चाहे इसे मिडिया का शौक कहें या फिर ऐसी धारणा बना लेना कि हम जो सोचते है और करते है वह बिलकुल सत्य है, जबकि जमीनी हकीकत इससे कही बहुत दूर बिखरी सी दिखायी पड़ती है. कही न कही इसके एक के बाद एक नये नियम बीमाकर्ताओं को जंजीर में और अधिक मजबूती से बाधने का कार्य किया है जिसका खामियाजा बीमा उद्योग को उठाना पड़ रहा है नौबत यहाँ तक आ गयी है कि देश के प्रधानमंत्री के बाद अब वित्त मंत्री के अहम मुद्दों में यह शामिल हो गया है और हो भी क्यू न कभी बीमा उद्योग देश की अर्थव्यस्था में अहम भूमिका निभाता था पर अब स्थिति यहाँ तक आ गयी है कि वह अपनी ही साख बचा पाने में असमर्थ सा दिख रहा है.

यदि १ जून २०१२ से ७ सितम्बर २०१२ तक देखा जाय तो प्रधिकरण इस सीमित अवधि में भी बीमा उद्योग पर रुपया २७८ लाख का जुर्माना लगाया है जिसमे हाल ही में कोटक महिंद्रा ओल्ड मुचुअल लाइफ कंपनी लिमिटेड पर लगाया गया जुर्माना रुपया २२ लाख भी शामिल है. लगाये गये जुर्माने का माह वार विस्तृत विवरण निम्न है :-

१. जून २०१२ में रुपया १४७ लाख का जुर्माना एच.डी.एफ.सी लाइफ इंश्योरेंश कंपनी पर.
२. जुलाई २०१२ में रुपया ३० लाख का जुर्माना आई.एन.जी. वैश्य लाइफ इंश्योरेंश कंपनी पर.
३. जुलाई २०१२ में रूपया ५ लाख का जुर्माना बजाज अलियांज लाइफ इंश्योरेंश कंपनी पर.
४. जुलाई २०१२ में रुपया १५ लाख का जुर्माना कार्पोरेट बीमा एजेंट इंडसिंड बैंक पर.
५. अगस्त २०१२ में रुपया ४९ लाख का जुर्माना टाटा ए.आई.जी. लाइफ इंश्योरेंश कंपनी पर.
६. अगस्त २०१२ में रुपया रुपया ५ लाख का जुर्माना न्यू इंडिया अस्योरेंश कंपनी पर.
७. अगस्त २०१२ में रुपया ५ लाख का जुर्माना नेशनल इंश्योरेंश कंपनी पर.
८. ७ सितम्बर २०१२ को रुपया २२ लाख का जुर्माना कोटक महिंद्रा ओल्ड मुचुअल लाइफ कंपनी पर.

उपरोक्त आकंड़े कही न कही इस बात कि पुष्टि करते हुये जरुर नजर आते है कि जिस तरह से प्राधिकरण ने जुर्माना बहुत तेजी से लगाया है वह कंपनी के क्रिया कलापों के सुधारने के बजाय अपने मुद्रा कोष को अधिक से और अधिक बनाना चाहता है. बीमा के जानकार एक सज्जन से इस मुद्दे पर मेरी बात हुई तो उनका कहना था कि प्राधिकरण का मानना है कि “यह जुर्माना बीमा अधिनियम के अंतर्गत लगाया जा रहा है जो कि काफी पुराना है और यदि वह इरडा एक्ट के तहत जुर्माना लगाये तो जुर्माने की राशि इससे कई गुना अधिक होगा” मतलब साफ़ है कि प्राधिकरण कही न कही बीमाकर्ताओ को अप्रत्यक्ष तौर पर यह सूचना देने कि कोशिश कर रहा है वह जो भी कर रहा है वह बीमाकर्ताओ पर सहानभूति के साथ कर रहा है अन्यथा मामला और अधिक गंभीर भी हो सकता है. एक तरफ जहा जीवन बीमा कंपनियों पर यह जुर्माना लगाया जा रहा है वही इरडा के निगाह से सामान्य बीमा कंपनिया भी नही बच पा रही है चाहे वह सार्वजनिक क्षेत्र कि ही क्यों ना हों.

जब प्राधिकरण ने कोटक महिंद्रा ओल्ड मुचुअल लाइफ कंपनी पर जुर्माना लगाया तो आम आदमी यह सोचने पर मजबूर हो गया कि क्या वास्तव में बीमा कंपनिया इतनी गंभीर गलती पर गलतियाँ करती जा रही है कि उन पर जुर्माना लगाना ही एक मात्र विकल्प प्राधिकरण के पास बचता है. और इसकी क्या ग्यारंटी है कि बीमा कंपनिया जुर्माना देने के पश्चात गलती नही करेगी ? प्राधिकरण ने इसके लिए क्या कदम उठाये ?. जब प्राधिकरण प्रत्येक छोटी बड़ी गतिविधियों पर निगाह रखता है फिर भी ऐसे गलतियां कहाँ कब और क्यों हो जाती है ? सवाल ढेर सारे है. एक आम आदमी कि तरह अगर सरल शब्दों में बात करू तो यही समझ में आता है कि शायद जो घोटाले प्रत्यक्ष रूप से हो रहे है वो अधिक अच्छे है क्योकि नियमों कि आड़ में धन बनाने का खेल तो नही खेला जा रहा. चार महीनों के दौरान आठ कंपनियों पे जुर्माना लगाया गया है यदि औसतन देखा जाय तो दो कंपनियों पर प्रत्येक माह जुर्माना लगाया गया है.

कोई भी अधिनियम उस उद्योग को सुचारू रूप से नियमों के अधीन चलाने के लिये बनाये जाते है न कि किसी ऐसे उद्देश्य के लिये जिससे कि वह उद्योग अपनी साख बचाने के लिये लड़ता रहे. जिस बात को मै लिखने जा रहा हूँ निसंदेह समस्त बीमा कंपनिया भी इससे सहमत होगी. “यदि जुर्माना लगाना मात्र एक विकल्प है और अधिनियम इसकी अनुमति देता है तो क्या अधिनियम यह नही कहता कि गलती होने पर बीमाकर्ता को भी अपना पक्ष न सिर्फ रखने का अधिकार हो बल्कि उसकी बातें तर्क पूर्वक अगर सही हो तो स्वीकार भी किया जाय. क्या प्रथम गलती पर चेतावनी दे कर नही छोड़ा जाना चाहिये” एक निजी बीमाकर्ता पर सिर्फ इस बात के लिये जुर्माना लगाया गया कि उसने उन बीमा सलाहकारों से व्यवसाय तब स्वीकार किया जबकि उन बीमा सलाहकारों का लायसेंस वैलिडिटी अवधि समाप्त हो गयी थी अर्थात उन व्यक्तियों का लायसेंस समाप्त हो चुका था प्राधिकरण को दिये गये जबाब में बीमाकर्ता ने कहा कि जब बीमा सलाहकार का लायसेंस समाप्त हो गया था तो उससे व्यवसाय जरुर स्वीकार किया गया परन्तु उसको कमीशन का लाभ तब तक नही दिया गया जब तक कि उसका लायसेंस नवीनीकृत नही हुआ और इस बात कि पूर्ति के लिये उसने कागजी प्रमाणपत्र भी प्राधिकरण के समक्ष उपलब्ध कराये. साथ ही बीमाकर्ता का यह भी कहना था कि यदि प्राधिकरण लायसेंस नवीनीकृत का दिनांक नवीनीकृत दिन से न वैलिड करके समाप्त हुये दिन से करता है तो वह ऐसा कर सकता है. प्राधिकरण ने उस बीमाकर्ता कि एक भी दलील न सुनते हुये यह आदेश पारित किया कि बीमाकर्ता की गलती है और उसे जुर्माना देना ही होगा.

यदि देखा जाय तो इस मामले में प्राधिकरण ने वास्तविकता को जाने बिना ही जुर्माना लगा दिया. यदि प्राधिकरण के क्रिया कलापों में कोई खामी नही है तो क्यों नही वह लायसेंस कि वैलिडिटी उस दिन से करता है जिस दिन वह नवीनीकृत होता है ? क्यू वह चेन में लायसेंस नवीनीकृत करता है ? अगर वह ऐसा करता है तो बीमाकर्ता कि कोई गलती इस मुद्दे पर नही समझ में आती और उस पर कोई जुर्माना नही बनता पर अनावश्यक रूप से उसे ५ लाख रूपये जुर्माने के रूप में देने पड़े. प्राधिकरण कि ऐसे गतिविधि कही न कही सही रूप से हो रहे कार्यों पर भी प्रश्न चिन्ह लगा देती है और बीमाकर्ता सही और गलत की पहचान नही कर पाता नतीजन प्राधिकरण को एक और मौका मिल जाता है जर्माना लगाने का.

इन सब के अलावा सब से अहम सवाल यह है कि प्राधिकरण प्राप्त जुर्माने कि राशि का क्या करता है ? क्या वह उस राशि से सिर्फ अपना कोष मजबूत बना रहा है ? यदि भारत सरकार ने अधिनियम में तबदीली का अधिकार संसद में नियम बनाकर प्राधिकरण को दे रखा है तो क्यों नही प्राधिकरण जुर्माने से प्राप्त धन को समाज सेवा में लगता है ? क्यों नही वह बीमा कंपनियों के साथ मिलकर उन गरीब असहाय लोगों का बीमा करवाता जिनका बीमा से दूर - दूर कोई वास्ता नही है और वो बीमा के नाम से अपरचित है उन लोगों के बीमा का प्रीमियम प्राधिकरण प्राप्त जुर्माने की राशि से क्यों नही अदा करता ? सवाल ढेर सारे है और हो भी क्यू न आखिरकार यह पैसा कही न कही आम जनता का ही तो है जिसका दुरूपयोग किया जा रहा है. सिर्फ इस बात कि दुहाई दे कर जुर्माना लगाना कि कंपनिया नियमों कि अनदेखी कर रही है, हवाला दे करके प्राधिकरण आम जनता के धन को अपने कर्मचारियों के सुख सुविधाओ में नही प्रयोग कर सकता. जिस तरह से बीमा उद्योग में यह सब चल रहा है कही न कही अब बीमा का भविष्य भारत में सुरक्षित नजर नही आ रहा है, वजह साफ़ है जिन्हें अधिकार है उस व्यवसाय को सुरक्षित रखने का वो अपने अधिकारों का दुरूपयोग करेंगे तो वह व्यवसाय कब तक चलता रहेगा. यदि यह सब कुछ ऐसे ही चलता रहा तो वह दिन भी दूर नही कि बीमा व्यवसाय को नियंत्रित करने वाला प्राधिकरण ही बचेगा नियमों का पालन करने वाली कंपनिया नही. सही मायने में प्राधिकरण को भारतीय जीवन बीमा निगम के क्रिया कलापों से सीख लेनी चाहिये जिसने अपने मूल सिद्धांतों के बल पर ५५ से अधिक वर्षों का सफर तय किया है और २३ निजी जीवन बीमा कंपनियों के होते हुये भी उसकी पहचान जरा सी भी धूमिल नही हुई है.

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