“सरकार बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि क्यों करना चाहती हैं? ”
रिटेल क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कि अनुमति दे कर सरकार ने अनेको मुसीबते मोल ली पर उन सारी मुसीबतों को जड़ से समाप्त उत्तर प्रदेश की दो पार्टियों ने सरकार को समर्थन दे कर, कर दिया है. अब सरकार के हौसले बुलंदी के साथ-साथ सातवें आसमान पर भी है कि आने वाले दिनों में न केवल उनकी सरकार सुरक्षित है बल्कि उनके निर्णयों का विरोध करने वाली पार्टी भी नही है. ऐसे में सरकार आने वाले दिनों में कई ऐसे काम करेगी जो लोगों को अब से कई गुना और अधिक दर्द देंगे और मजे कि बात तो ये है कि यह सारे निर्णय सिर्फ आम जनता के हित में होनी बताकर किये जायेगे. आने वाले मंगलवार तक अगर न्यूज चैनलों कि बात माने तो सरकार के मुख्य एजेंडो में बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा २६ प्रतिशत से बढाकर ४९ प्रतिशत किया जाना प्रमुख है.
प्रत्येक उद्योग की अपनी-अपनी समस्याए है, जहाँ बीमा उद्योग बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण के नियमों के जाल में फंस सा चुका है उसे उद्योग को गति पहुचने के बजाय नियमों कि पूर्ति करना प्राथमिकता बन गया है ऐसे में निसंदेह निजी बीमाकर्ताओ के लिये राहात कि बात होगी सिवाय निजी क्षेत्र की सहारा लाइफ एवं सार्वजनिक क्षेत्र की भारतीय जीवन बीमा निगम को छोड़ कर क्योकि इन कंपनीयों के साथ कोई विदेशी साझेदार नही है. भारतीय जीवन बीमा निगम ने तो इसका पुरजोर विरोध किया हुआ है. विदेशी निवेश की सीमा बढ़ जाने से न केवल और निजी कंपनिया इस व्यवसाय ,में आयगी बल्कि भारतीय जीवन बीमा निगम और सहारा को और कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ेगा.
यदि जमीनी स्तर पर देखा जाय तो सरकार को विदेशी निवेश की सीमा को बढाने के बजाय बीमा उद्योग की मुख्य समस्याओ पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये जिससे सभी कंपनिया परेशान है और उन्हें कोई हल मिलता नही दिखाई दे रहा है. विदेशी कंपनियों के आने से देश में उपलब्ध संसाधनों का दोहन तो होगा पर उसी अनुपात में वो कंपनिया भारतीय पैसा विदेशो में ले जायेगी. क्या सरकार ने इसके लिये कोई नियंत्रण बनाया है शायद नही. एक बात सरकार कि यह नही समझ में आती कि देश में उपलब्ध निजी घरानों को बढाने के बजाय विदेशी कंपनियों के साथ इतना लगाव क्यों ? सरकार जिस तरह से प्रत्येक क्षेत्र में विदेशी निवेश को खुला निमंत्रण दे रही है वो दिन भी दूर नही कि देश कि अर्थव्यस्था विदेशी कंपनिया ही चलाएंगी.
बीमा के क्षेत्र में विदेशी निवेश कि सीमा बड़ा देने से सबसे ज्यादा लाभ सरकार को ही प्राप्त होगा क्योकि जब कम्पनिया देश में कार्य करने के लिये आएगी तब वो पैसा डालर में ले आएँगी और पंजीकरण का प्रमाणपत्र सरकार द्वारा ही जारी होना है. रोजगार के नाम पर गिने चुने लोगों को ही रोजगार मिल पायेगा और देश में जिस हिस्से में लोग आज भी बीमा के व्यवहार से अपरचित है उन्हें तब भी उसी तरह से बीमा के बारे में जानकारी नही मिलने वाली क्योकि ये कंपनिया गाँव में व्यवसाय करने के वजाय शहर में व्यवसाय करना पसंद करती है और वैसे भी गाँव से कम प्रीमियम की ही पालिसिया बिकती है और शहर में अधिक प्रीमियम की.
कम्पनिया सिर्फ रेगुलेटर के नियमों का पालन करने के उद्देश्य से गरीब और ग्रामीण क्षेत्र के कुछ लोगों का ही बीमा करके अपना पल्ला झाड लेगी. विदेशी निवेश किसी भी रूप में बीमा क्षेत्र में स्वागत योग्य नही है जिससे अच्छे बड़े बड़े कार्यालय तो दिखेगे पर आम आदमी कि मूलभूत आवश्यकताओं में बीमा तब भी नही जुड पायेगा. यदि सरकार वास्तव में बीमे का विकास करना चाहती है तो सबसे पहले उसे बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण एवं बीमा कंपनियों के साथ बैठक कर उनकी समस्यायों का समाधान करना चाहिये. जिससे विदेशी कंपनिया देश में बनी रह पाये जिन्होंने २६ प्रतिशत के साथ अपना प्रवेश देश में किया है. ४९ प्रतिशत सीमा कर दिये जाने से विदेशी कम्पनियों का आगमन तो जरूर होगा पर आम आदमी कि स्थिति वैसे कि वैसे ही रहेगी जैसे पहले थी जब तक कि उनके लिये बीमे में कोई अलग से विशेष प्रावधान नही किया जाता, हाँ एक लाभ बीमा बिनियामक एवं विकास प्राधिकरण को जरुर होगा उसे कंपनियों पर और अधिक धनराशि का जुर्माना लगाने का मौका जरुर मिल जायेगा. शायद सरकार भी यही चाहती है. जिस तरह से सरकार जी तोड़ मेहनत कर रही है जल्द ही आने वाले दिनों में हम सब सिर्फ विदेशियों के गुलाम बन कर रह जायेगे, हमारा सब कुछ विदेशी ही होगा, रहेगे तो सिर्फ हम ही भारतीय वो भी कब तक.
रिटेल क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कि अनुमति दे कर सरकार ने अनेको मुसीबते मोल ली पर उन सारी मुसीबतों को जड़ से समाप्त उत्तर प्रदेश की दो पार्टियों ने सरकार को समर्थन दे कर, कर दिया है. अब सरकार के हौसले बुलंदी के साथ-साथ सातवें आसमान पर भी है कि आने वाले दिनों में न केवल उनकी सरकार सुरक्षित है बल्कि उनके निर्णयों का विरोध करने वाली पार्टी भी नही है. ऐसे में सरकार आने वाले दिनों में कई ऐसे काम करेगी जो लोगों को अब से कई गुना और अधिक दर्द देंगे और मजे कि बात तो ये है कि यह सारे निर्णय सिर्फ आम जनता के हित में होनी बताकर किये जायेगे. आने वाले मंगलवार तक अगर न्यूज चैनलों कि बात माने तो सरकार के मुख्य एजेंडो में बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा २६ प्रतिशत से बढाकर ४९ प्रतिशत किया जाना प्रमुख है.
प्रत्येक उद्योग की अपनी-अपनी समस्याए है, जहाँ बीमा उद्योग बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण के नियमों के जाल में फंस सा चुका है उसे उद्योग को गति पहुचने के बजाय नियमों कि पूर्ति करना प्राथमिकता बन गया है ऐसे में निसंदेह निजी बीमाकर्ताओ के लिये राहात कि बात होगी सिवाय निजी क्षेत्र की सहारा लाइफ एवं सार्वजनिक क्षेत्र की भारतीय जीवन बीमा निगम को छोड़ कर क्योकि इन कंपनीयों के साथ कोई विदेशी साझेदार नही है. भारतीय जीवन बीमा निगम ने तो इसका पुरजोर विरोध किया हुआ है. विदेशी निवेश की सीमा बढ़ जाने से न केवल और निजी कंपनिया इस व्यवसाय ,में आयगी बल्कि भारतीय जीवन बीमा निगम और सहारा को और कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ेगा.
यदि जमीनी स्तर पर देखा जाय तो सरकार को विदेशी निवेश की सीमा को बढाने के बजाय बीमा उद्योग की मुख्य समस्याओ पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये जिससे सभी कंपनिया परेशान है और उन्हें कोई हल मिलता नही दिखाई दे रहा है. विदेशी कंपनियों के आने से देश में उपलब्ध संसाधनों का दोहन तो होगा पर उसी अनुपात में वो कंपनिया भारतीय पैसा विदेशो में ले जायेगी. क्या सरकार ने इसके लिये कोई नियंत्रण बनाया है शायद नही. एक बात सरकार कि यह नही समझ में आती कि देश में उपलब्ध निजी घरानों को बढाने के बजाय विदेशी कंपनियों के साथ इतना लगाव क्यों ? सरकार जिस तरह से प्रत्येक क्षेत्र में विदेशी निवेश को खुला निमंत्रण दे रही है वो दिन भी दूर नही कि देश कि अर्थव्यस्था विदेशी कंपनिया ही चलाएंगी.
बीमा के क्षेत्र में विदेशी निवेश कि सीमा बड़ा देने से सबसे ज्यादा लाभ सरकार को ही प्राप्त होगा क्योकि जब कम्पनिया देश में कार्य करने के लिये आएगी तब वो पैसा डालर में ले आएँगी और पंजीकरण का प्रमाणपत्र सरकार द्वारा ही जारी होना है. रोजगार के नाम पर गिने चुने लोगों को ही रोजगार मिल पायेगा और देश में जिस हिस्से में लोग आज भी बीमा के व्यवहार से अपरचित है उन्हें तब भी उसी तरह से बीमा के बारे में जानकारी नही मिलने वाली क्योकि ये कंपनिया गाँव में व्यवसाय करने के वजाय शहर में व्यवसाय करना पसंद करती है और वैसे भी गाँव से कम प्रीमियम की ही पालिसिया बिकती है और शहर में अधिक प्रीमियम की.
कम्पनिया सिर्फ रेगुलेटर के नियमों का पालन करने के उद्देश्य से गरीब और ग्रामीण क्षेत्र के कुछ लोगों का ही बीमा करके अपना पल्ला झाड लेगी. विदेशी निवेश किसी भी रूप में बीमा क्षेत्र में स्वागत योग्य नही है जिससे अच्छे बड़े बड़े कार्यालय तो दिखेगे पर आम आदमी कि मूलभूत आवश्यकताओं में बीमा तब भी नही जुड पायेगा. यदि सरकार वास्तव में बीमे का विकास करना चाहती है तो सबसे पहले उसे बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण एवं बीमा कंपनियों के साथ बैठक कर उनकी समस्यायों का समाधान करना चाहिये. जिससे विदेशी कंपनिया देश में बनी रह पाये जिन्होंने २६ प्रतिशत के साथ अपना प्रवेश देश में किया है. ४९ प्रतिशत सीमा कर दिये जाने से विदेशी कम्पनियों का आगमन तो जरूर होगा पर आम आदमी कि स्थिति वैसे कि वैसे ही रहेगी जैसे पहले थी जब तक कि उनके लिये बीमे में कोई अलग से विशेष प्रावधान नही किया जाता, हाँ एक लाभ बीमा बिनियामक एवं विकास प्राधिकरण को जरुर होगा उसे कंपनियों पर और अधिक धनराशि का जुर्माना लगाने का मौका जरुर मिल जायेगा. शायद सरकार भी यही चाहती है. जिस तरह से सरकार जी तोड़ मेहनत कर रही है जल्द ही आने वाले दिनों में हम सब सिर्फ विदेशियों के गुलाम बन कर रह जायेगे, हमारा सब कुछ विदेशी ही होगा, रहेगे तो सिर्फ हम ही भारतीय वो भी कब तक.
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