वित्तीय वर्ष २०१२-१३ के समाप्ति के एक माह पूर्व बीमा बिनियामक एवं विकास प्राधिकरण के नये चेयरमैन की नियुक्ति से न केवल बीमाकर्ताओं में बल्कि बीमा से जुड़े प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से समस्त लोगों में एक नई उर्जा का संचार हुआ है | यह आशा की किरण जमीनी स्तर पर क्या रंग दिखाएगी यह भविष्य के गर्भ में छिपा हुआ है, पर अभी तक के आकड़ो और भविष्य में प्रस्तावित परिवर्तनों को देखा जाय तो यह कहा जा सकता है कि वर्तमान वित्तीय वर्ष यानि की २०१३-१४ भी बीमाकर्ताओं के लिये न केवल चुनौतीपूर्ण रहेगा बल्कि कई नई कठिनाईया बीमा व्यवसाय में अपना गहरा नकारात्मक प्रभाव भी दिखाएंगी | बीमा बिनियामक एवं विकास प्राधिकरण के उपलब्ध नवीनतम आकडों को देखा जाय तो कुल २४ कंपनियों में से १३ कंपनिया घाटे की वृद्धि दर्ज कर रही है, जबकि ११ कंपनिया ग्रोथ दर्ज कर रही है | ज्यादातर छोटी और मझोली कंपनिया ही ग्रोथ दिखा रही है | बीमा उद्योग ६.१३ प्रतिशत घाटे को प्रदर्शित कर रहा है जबकि निजी बीमाकर्ताओ द्वारा नकरातमक ग्रोथ ५.५५ प्रतिशत है | भारतीय जीवन बीमा निगम ६.३५ प्रतिशत नकारात्मक वृद्धि दिखा रहा है | यह आकड़े फरवरी २०१३ के नवीनतम इरडा द्वारा प्रकाशित आकड़ो पर आधारित है | आशा जरुर की जा सकती है कि मार्च के आकड़े जरुर अच्छे होंगे |

क्या वर्तमान वित्तीय वर्ष का स्वागत करना चाहिये ? शायद नही और शायद हां भी | यह निर्भर करता है कि हम इस वित्तीय वर्ष को किस रूप में लेते है | आइये कुछ विवरण प्रस्तुत करते है जो शायद यह निर्णय लेने में सहयोग कर देंगे की वर्तमान वित्तीय वर्ष का स्वागत करना चाहिये कि नही ?

जुलाई २०१३ से बीमा अभिकर्ताओ के लिये प्रधिकरण द्वारा जारी किया गया नियम पॉलिसी निरंतरता दर लागू हो जायेगा जो न केवल बीमा अभिकर्ताओ कि संख्या में कमी करेगा बल्कि बीमा उद्योग की वृद्धि में भी बाधक सिद्ध होगा | इसके साथ –साथ इरडा द्वारा जारी किया गया प्रस्ताव पत्र का नया प्रारूप न केवल ग्राहकों को बीमा कंपनियों से दूर करेगा बल्कि बीमा अभिकर्ताओ के इंटरेस्ट को भी इस उद्योग में कार्य करने को कम करेगा | वैसे भी प्रस्ताव पत्र तो बीमा अभिकर्ता ही भरते है कस्टमर के पास कहा समय है प्रस्ताव पत्र को भरने और उसकी बारीकियों को समझने का | नया प्रस्तावपत्र अगस्त २०१३ से व्यवहार में आयेगा जो कि न केवल जटिल है बल्कि लोगों कि गोपनीयता को भी प्रभावित करता है | इन सबसे भी बड़े समस्या के रूप में उभर कर सामने आने वाली बातों में है ट्रेडिशनल उत्पाद में व्यापक परिवर्तन जो कि सितम्बर से अपने नये रूप में ग्राहकों के मध्य होगा | नया उत्पाद हो सकता है ग्राहकों के लिये ज्यादे हितकर हो पर जो लोग इसे ग्राहकों तक पहुचाते है उनके हितों का ख्याल नही किया गया है | जिसमे अनेको प्रभावित वजहों में से कमीशन का कम होना एक प्रमुख वजह है जो लोगों को इस व्यवसाय में अभिकर्ता के रूप में कार्य करने से रोकने में अवश्य ही सफल दिखाई देती है |

उपरोक्त दिये गये कारणों के प्रभावों को यदि गहरे से आकलन करे तो वर्तमान वर्ष में बीमा उद्योग के लिये बहुत बड़ी चुनौतिया है जो बीमा उद्योग पर बहुत गहरा नकारात्मक छाप छोड़ने वाला है | समय के चक्रव्यूह से बीमा उद्योग का भविष्य क्या होगा यह आने वाला समय ही बतायेगा पर यह कटु सत्य है कि इरडा के पूर्व चेयरमैन ने सुधार के नाम पर जो परिवर्तन अब तक किये है और उनके कार्यकाल खत्म होते समय किये गये परिवर्तन, बीमा उद्योग को उनकी हर पल याद दिलाएगे जब तक कि इन चुनौतियों पर बीमा उद्योग विजय नही प्राप्त कर लेता है | बीमा उद्योग के नियामक के नये चेयरमैन ने एक आशावादी कार्य जरुर किया है जो उन हजारों लोगों को बीमा उद्योग से पुनः जोड़ने में सहायक होगा जिन्हें पैनकार्ड ने होने के कारण बीमा उद्योग से हटा दिया गया था | यह पहल उन्होंने नये नियम के माध्यम से किया है कि अब वो बीमा अभिकर्ता जिनका लायसेंस निरस्त इस वजह से कर दिया गया था कि उनके पास पैन कार्ड नंबर नही थे पुनः अपना लायसेंस ३१ दिसंबर २०१३ तक नवीनीकरण करा सकते है | पर आने वाली समस्यायों को देखते हुये यह सहयोग नामात्र ही दिखता है बीमा उद्योग में गति लाने के लिये | आइये पुनः यह बात करते है कि नये वित्तीय वर्ष का स्वागत किया जाय कि नही ? जो लोग बीमा उद्योग से गहरा सम्बन्ध नही रखते वो निसंदेह इस चुनैती से वाकिफ नही होंगे पर जो सम्बन्ध रखते है वो जरुर इन चुनौती से वाकिफ होगे उन्हें सिर्फ इस बात पर नही सोचना चाहिये की वर्तमान वित्तीय वर्ष अच्छा रहेगा बल्कि आने वाली चुनौतियों के लिये दृण संकल्पित होकर जमीनीस्तर पर कार्य करना चाहिये जिससे हम आने वाले वित्तीय वर्षों के लिये स्वागत करने योग्य हो सकें |

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