अत्यंत हर्ष की बात है कि हम बहुत ही उल्लास से आज विजय दशमी पावन पर्व के रूप में मना रहें है हर तरफ खुशी का माहौल है, लोग जश्न में डूबे हुये है और एक दूसरे से इस पर्व की खुशिया बाँट रहें है. राजा हो या प्रजा मंत्री हो या संत्री सभी खुशी के इस माहौल में व्यस्त है. ऐसे में एक बात स्वयं दिल से निकलकर बाहर आती है की जिस पावन पर्व को हम उत्साह के साथ मना रहें है क्या उसके मूलभूत शिक्षा को हम ग्रहण कर पाये है शायद नही तभी तो हम घोटालों, चोरी, बेईमानी, धोखाधड़ी, सभी में लिप्त है. आकर्षक प्रकाश, मिठाईया, मनोरंजन और विदेशी सभ्यता ये सभी हमारे धर्म के मूलभूत आचरणों का स्थान नही ले सकती है. मात्र एक बार पर्व मना लेने से कही भी उस धर्म के सच्चे उद्देश्य की पूर्ति नही हो पायेगी. प्रभु श्रीराम ने अपने माता-पिता के वचनों को पूरा करने के लिये १४ वर्षों तक वनवास को व्यतीत किया और पूरे कार्यकाल में निर्धन, गरीब की सेवा भी की. जब उन्हें राज्य की प्राप्ति हुई तो उन्होंने समाज के प्रत्येक वर्ग का ख्याल रखा और लोग आज भी राम राज्य के व्यवस्थाओं का गुड़गान करते है. धर्मो में इतना मार्मिक और सरल शब्दों में इसका विवरण दिया हुआ है की एक बार अध्ययन कर लेने से ही उसकी अमिट छाप दिल पर पड़ जाती है. ऐसे पवित्र हमारे धर्म पुराण और ग्रन्थ है की वो हमें वर्ष दर वर्ष आकार के मानवीयता की याद दिलाने की कोशिश करते है इन पर्व त्योहारों के माध्यम से और हम सिर्फ उन्हें मौज मस्ती के रूप में व्यतीत कर देते है जिसे हमें उनके मूल सिधान्तो को अपनाना चाहिये. यदि ऐसा न होता तो इतने बड़े बड़े घोटाले क्यों होते. क्या जो लोग घोटाले कर रहे है वो ये पैसा अपने साथ लेकर जायेंगे.
जैसा की रामायण में भी वर्णित है राजा जैसा होगा प्रजा का उसी तरह से उसका ख्याल रखेगा. आज रजा सुशासन, गरीबो की अनदेखी करने वाला हो गया है. जहाँ आम जनता की जरुरत की चीजे उसके पहुँच से बाहर होती जा रही है वही सरकार यह कह कर उनके दाम बड़ा रही है की उस पर दी जा रही छूट से सरकारी कोष में कमी आ रही है. यह घोटाला ही है जो लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर रहा है की प्रधानमंत्री जी अगर आप सिर्फ घोटाले की राशि को रोक पाते तो दाम बढाना तो दूर आम आदमी को कई वर्षों तक कर भी देने से मुक्ति मिल जाती. पर यह सब सोचेगा कौन यह भी एक बड़ा सवाल है आम आदमी को अपने जीवन चलाने से फुर्सत नही, गरीब को अपनी गरीबी का रोना है, आमिर लोगों को तो इस बात से कोई फर्क ही नही पड़ता, रही बात सरकार की तो उसे भी इस बात का एहसास है की इस कार्यकाल के बाद उसकी वापसी मुश्किल ही नही नामुमकिन है तो फिर अपनी जेब ही क्यू न भरी जाय.
एक तरफ हमारे देश में ऐसे राजा हुये है जिन्होंने देश हित के लिये अपनी भी बलि दे दी वही आज के राजा निर्दोष की भी बलि लेने से नही चुकते. इससे भी हास्यपद बात यह है की जिन्हें दोषी माना जाता है उन्हें जनता की आँखों में धुल झोककर पुनः सत्ता तक पहुचायाँ जाता है इससे बड़ी बिडम्बना क्या होगी. क्या इन्ही सब बातों के लिये हम विजय दशमी मना रहा है. यदि हाल के घोटालों को देखा जाय तो उस कुल घोटालों की राशि इतनी बड़ी है की इससे देश का विकास में बहुत बड़ी सफलता मिलती और इन राशि को अगर आम जनता के हितों में लगा दिया जाता तो शायद वस्तुओ के दाम बढाने के बजाय कम हो जाते. कुछ नवीनतम घोटालों की जानकारी यहाँ वर्णित है.
घोटाला
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वर्ष
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अनुमानित राशि
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द्वारा
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कोयला खनन घोटाला
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२०१२
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रु. १,८५,५९१.३४ करोड़ (यू.एस.$ ३५.०८ बिलियन)
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केन्द्र सरकार
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२ जी स्पेक्ट्रम घोटाला
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२०१२
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रु. १,७६,०००.०० करोड़ (यू.एस.$ ३३.२६ बिलियन)
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केन्द्र सरकार
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कुल राशि
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रु. ३,६१,५९१.३४ करोड़ (यू.एस.$ ६८.३४ बिलियन)
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मात्र नवीनतम दो घोटालों की राशि इतनी है की देश के कई बड़ी कंपनियों की बाजार वैल्यू से अधिक है, जो लाखो लोगों को रोजगार दिये हुये है. निसंदेह अगर इस राशि का सही उपयोग किया गया होता तो कहीं न कहीं देश का आर्थिक विकास जरुर होता और लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार की प्राप्ति भी होती. हम पुनः इस बात पर आना चाहेगे ये पर्व क्यू मना रहे है. जब तक हम इन घोटालों को समाप्त नही करते तब तक हमें पर्व मनाने का कोई अधिकार नही है और यह तभी समाप्त हो सकता है जबकि हम अपने बच्चों जो की हमारे समाज की भावी पीड़ी है उनमे इन पर्व, त्यौहार के संस्कारों को उनमे नही उतारते है. उन्हें सही शिक्षा देकर उनके जीवन के मूल मंत्रो को उन्हें नही सिखाते है. साथ ही साथ इस बात का भी संकल्प लेकर अपने धर्मो के प्रति अपनी ईमानदारी व्यक्त कर सकते है की चुनाव में हम सही व्यक्तित्व का ही चयन करेगें वो भी धर्म जातिवाद से ऊपर उठ कर तभी इन धर्मो और देश के प्रति हमारी सच्ची दायित्वों की पूर्ति हो सकती है और हम सही मायने में त्योहारों को मनाने के सच्चे नागरिक भी. जरा सोचिये.
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