"यूलिप्स के भुगतान वापसी ने मचाई त्राहि त्राहि"

शायद आप लोगो ने भी सुना होगा की एक माँ द्वारा अपने बेटे को पहली बार चोरी करने पर डांट न लगाने की वजह से ही वह बहुत बड़ा चोर बन जाता है और जब अदालत उसे फांसी की सजा सुनती है, तो वह अपनी आखिरी इच्छा अपनी माँ से मिलने की करता है और माँ को जान से मार देता है. जब लोग उससे पूछते है कि तुमने अपनी माँ को क्यूँ मार दिया ? तो वह दो टूक जबाब देता है कि जब मैंने पहली बार चोरी करी थी तभी अगर मेरी माँ ने मुझे चाटा मारा होता, मुझे मना किया होता तो शायद आज मेरी यह दुर्दशा नहीं होती. यह कहानी जितनी सच्ची है उससे कहीं सच्ची उसके द्वारा दी जा रही शिक्षा है जो कहीं न कहीं हर जगह लागू होती है जहाँ पर भी अनैतिक कार्यों को बढावा दिया जाता है, और कुछ लोगो को लाभ दिलाने के उद्देश्य से एक बड़े समूह के लोगों के हितों की अनदेखी की जाती है एवं पुनः कुछ समयांतराल पर किसी तीसरे के विरोध से सिर्फ इस उद्देश्य से परिवर्तन किया जाता है कि हम कही से भी उन लोगो के हितों के प्रति अन्याय नहीं होने देंगे जो इससे प्रभावित हुए है, और अंततः ऐसे स्थिति सामने आती है जो कि न तो वह प्रभावित लोगो के लिये मददगार साबित होती है और ना ही उन लोगो के लिये जिनको इसका लाभ मिलना चाहिए था.

भले ही उपरोक्त कहानी में और आगे दी जा रही सच्चाई में प्रत्यक्ष रूप से समानता न हो परन्तु कहीं न कहीं एक दूसरे से कुछ अंश मिलते-जुलते जरुर है. कुछ भी हो सच्चाई को आपके सम्मुख रखने से पहले कुछ प्रमुख वास्तविक बातो को यहाँ स्पष्ट कर देना जरुरी समझता हु, जिससे मेरे द्वारा कहे गये वास्तविक तथ्य को बल मिलेगा. क्या आपको इस बात की जानकारी है कि जो बीमाँ उत्पाद जीवन बीमा कंपनिया बाजार में विक्रय के लिये लाती है उसके पीछे क्या होता है ? आइये जाने. कोई भी जीवन बीमा कंपनी के एक्च्युरी इस बात का निर्धारणकर बिभिन्न तथ्यों आंकडो और वास्तविक अनुभव के आधार पर बीमा उत्पाद का निर्माण करते है और उसे अंतिम अनुमति इरडा से प्राप्त करने के लिये भेजते है एवं इरडा उस उत्पाद की विक्रय के अनुमति प्रदान करता है. उसके पश्चात जीवन बीमा कंपनी उस उत्पाद को आम लोगो तक विक्रय करती है अर्थात बिना इरडा के अनुमति के कोई भी बीमा उत्पाद बाजार में आम जनता को विक्रय करने के लिये प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है. अतः यह स्पष्ट है कि जीवन बीमा कंपनी गलत उत्पाद विक्रय करने के लिये जितनी जिम्मेदार है उतनी ही इरडा.

आइये थोडा और पीछे चलते है जब की इरडा और सेबी के बीच विवाद उत्पन्न हुआ था, और उस समय पुरे जीवन बीमा उद्योग का भविष्य अंधकारमय दिखा रहा था. पुनः एक बार इरडा और सेबी के विवाद से पहले पीछे चलते है, जब यह विवाद नहीं हुआ था बीमा उद्योग नित नये आयाम को जन्म दे रहा था, और हर जगाह यूलिप पालिसियों का बोलबाला था. लोगो को चंद वर्षों में लखपति करोड़पति बनाने के ख्वाब दिखाए जा रहे थे, और धडल्ले से लोगो के मेहनत की कमाई को बीमा कंपनिया यूलिप के माध्यम से लूट रही थी. उस समय न जीवन बीमा कंपनियों को इसकी परवाह थी की वो क्या कर रही है, और न ही इरडा को कि किस उद्देश्य की पूर्ति के लिये उसकी स्थापना की गयी थी. क्या उसकी स्थापना इसलिये की गयी थी कि किसानो नौकरीपेशा एवं आम लोगो की गाड़ी कमाई को बीमा कंपनिया इरडा की सहमति से लूटती रहे ?

यदि आपसे पूछा जाय की वास्तव में सच्ची शुभचिंतक आम जनता के गाड़ी कमाई की कौन है ? इरडा, जीवन बीमा कंपनिया या फिर कोई और तो स्पष्ट तौर पर सब का एक ही जबाब होगा न जीवन बीमा कंपनिया न इरडा बल्कि सेबी वास्तविक शुभचिंतक है. जिसने अपने एक पहल से कम से कम और लाखो करोडो लोगो की कमाई को लूटने से बचा लिया साथ ही लोगो को और भी जागरूक कर दिया कि देश कितनी भी तरक्की क्यों न कर ले, नियम कितने ही क्यों न बना दिए जाय, भरोसा कितना भी न दिला दिए जाय पर आज के इस भ्रष्टाचारी युग में किसी के कहने के बजाय खुद सही गलत को समझ बुझकर ही अपनी गाढ़ी कमाई को कही निवेश करना चाहीये. अन्यथा हस्र वही होगा जिस तरह से लोग आज हर गली हर चौराहे पर यूलिप के जरिये लुटे हुए दिखते है. और आज न कोई उनकी बात सुनाने वाला है, न ही कोई उन्हें भरोसा देने वाला. यहाँ तक की नियामक भी उन्हें ही दोषी बनाता है कि आपने पॉलिसी लेते समय पॉलिसी प्रलेख को क्यों नहीं देखा था. कोई उनसे यह नहीं पुछने वाला है कि आपने उत्पाद विक्रय की अनुमति देने से पूर्व उन आम लोगो के गाड़ी कमाई को सुरक्षा क्यों नहीं प्रदान की. जबकि आप की स्थापना ही इसलिए हुई है कि आप आम लोगो के हितों का ध्यान रखेगे. कही न कही आप की ही सहमती थी की समस्त जीवन बीमा कंपनियों ने आम जनता को जमकर लूटा चाहे वो सावर्जनिक जीवनबीमा कंपनी हो या फिर निजी जीवन बीमाकर्ता. इससे अच्छा तो पुराने ज़माने के शाहूकार थे जो लोगो को लूटते तो थे पर सबको पता तो होता था. इरडा का कंट्रोल हर बिज्ञापन के साधनों एवं प्रपत्रो पर होता है, और मासिक रूप से कम्पनियों द्वारा बिज्ञापन में प्रयोग आर्ट वर्क को भी मंगाती है.

यदि अकेले वित्तीय वर्ष २००९-१० की बात की जाय तो, लिंक्ड प्रीमियम (रेगुलर, सिंगल पह्लावार्ष रेनुवल मिलाकर) रुपया १,१५,५२०.९६/- करोड़ का प्रीमियम उद्योग स्तर पर जीवन बीमा कंपनियों ने संग्रह किया था. यदि कोई घोटाला होता है तो वह सुर्खियों में रहता है और लोगो का विश्वास उस पर से उठ जाता है पर उनमे भी एक अच्छी बात होती है कि जब सारी बाते मीडिया में आती है तो कही न कही सरकार दबाव में कोई ठोस कदम उठती है. और उन लोगो को दण्डित जरुर करती है जो की इस अनियमितता में सलग्न होते है. यदि बीमा उद्योग के प्रारम्भ से अब तक कुल यूलिप प्रीमियम संग्रह की बात की जाये और उनमे लोगो को हुए नुकशान की बात की जाय तो यह देश में अबतक हुए समस्त घोटालों से बड़ा होगा. कहीं न कहीं इरडा को इस बात को भी जिम्मेदारी लेनी होगी कि, इरडा ने ही इंश्योरेंस के मूलभूत उद्देश्यों को यूलिप्स के द्वारा नजरंदाज किया है.

इरडा कोई ठोस कदम भुग्तभोगियो के लिये उठाने के बजाय आगे की स्थिति पर ही ध्यान दे रहा है और नये नियम पारित कर उपभोक्ताओ के हितों को अब से तो कुछ हद तक सुरक्षित कर दिया है. वो भी उसने कही न कही सेबी के विवाद की वजह से ही किया है. अपनी बची हुयी साख आम जनता में बचने के लिये. क्या यदि सेबी इस तरह लोगो की हितों को ध्यान न देता तो लोग आज भी पहले के तरह इरडा की सहमति पर जीवन बीमा कंपनियों से लूटते रहते ?

उन समस्त लाखो करोडो लोगो का क्या जो इस बेदर्दी से लुटे गये है कि उनके क्षतिपूर्ति दूर करने के बात तो दूर कोई हमदर्दी दिखने वाला नहीं है. हमारे देश कि सबसे बड़ी बिडम्बना अभी तक यह रही है, कि जिन्हें हक दिया गया है कर्तव्यों को निभाने के लिये, देश को चलने के लिये, शाशन, सुरक्षा व्यवस्था बनाये रखने के लिये, लोगो के धन को सुरक्षा के साथ बदाने के लिये, वही लोगो ने जमकर उसका दुरूपयोग किया है, और खुद, अपने कुछ खास लोगो को लाभ पहुचने के उद्देश्य से सारी दुनिया के लोगो कि गाड़ी कमाई, को भी दाव पर रखने से परहेज नहीं करते. बात यही तक समाप्त नहीं हो जाती इतनी अव्यवस्था होने के बावजूद आज भी बीमा व्यवसाय का पथ प्रदर्शक संरक्षक संचालक चुप्पी साधे हुए है. शायद उसे भी इस बात का एहसास है कि ये आम जनता है इनमे सब बाते तो है पर एक बात ही नहीं है, कि ये किसी बात पे एकजुट हो कर अपनी आवाज बुलंद करे. इरडा को इस क्षतिपूर्ति के लिये सम्बंधित कंपनी को जिम्मेदार बनाना चाहिए कि वह ग्राहक द्वारा दिए गये प्रीमियम का शतप्रतिशत अवश्य वापस करेंगें. अन्यथा बीमा कंपनी इरडा के निर्देश के आड़ में प्रस्ताव पत्र एवं सेल्स लिट्रेचर पर वैधानिक चेतावनी द्वारा अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होने कि आदत से बचेगी, और ग्राहक का हित सर्वोपरि नहीं रहेगा.

एक नियामक होने के नाते इरडा को यह निर्णय अवस्य लेना चाहेये, कि लोगो को उनके द्वारा यूलिप में निवेशित धन कि भरपाई कम से कम उतनी अवस्य हो जितना कि उन्होंने निवेश किया था. हालात यहाँ तक देखने को मिलता है, कि लोगो ने लाखो रूपये जमा किये होते है. और जब पैसे लेने जाते है तो कुछ हजार रुपये ही वापस मिलते है और उन्हें विभिन्न तरह कि बातों को समझाकर, उनकी ही गलती निकलकर, उन्हें वापस कर दिया जाता है. शायद यह भी एक सच्चाई है. भाई ये इंडिया है, यहाँ सब चलता है. गुनेहगार ही सच्चा होता है और सच्चा ही गुनेहगार. जीवन बीमा कंपनियों के व्यवसाय में कमी होने के मुख्य कारणों में से एक कारण यह भी है, कि लोग दूध के जले छांछ भी फूक-फूक कर पी रहे है. इस पूरी व्यवस्था में यदि देखा जय तो विक्रय प्रतिनिधि भी जिम्मेदार नहीं है क्योकि वो तो वही बेचते है, जो बीमा कंपनिया बेचने के लिये उन्हें उपलब्ध कराती है. और उसे विक्रय करने के लिये प्रशिक्षण प्रदान करती है. इसके लिये नियामक को स्वयं में जिम्मेदारी ले कर सामने आना चाहिये और लोगो के हितों को सरंक्षित करे और यह निर्देश बीमा कंपनियों को दे कि प्रत्येक पॉलिसी धारक को न्यूनतम उतनी धनराशी अवस्य मिले जितने उसने निवेश किया था. इरडा इस क्षतिपूर्ति के लिये कंपनी द्वारा देय राशि को कंपनी के पॉलिसी टर्म में इस खर्चे में कर में रखने के छूट दे सकती है. साथ ही एक अछे नियंत्रक के रूप में इस खर्चे का २०-२५ % सब्सिडी के रूप में कंपनी द्वारा प्रतिवर्ष दी जानेवाली लायसेंस शुल्क में छूट के रूप में दे सकती है. अन्यथा यूलिप्स के व्यवसाय में मार्केट गिरने पर ग्राहक कि निवेजित वैल्यू गिरेगी, कंपनी का व्यवसाय गिरेगा, लाभ कम होगा परन्तु इरडा कि वार्षिक आय सिर्फ और सिर्फ बढेगी. Mail your comments/suggestions on – drajaykrmishra@gmail.com

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