जीवन बीमा के निजीकरण के पश्चात जिस तेज गति से विकास होना चाहिये वह नही हो पाया, और यह स्थिति नियंत्रण से बाहर बिगत के कुछ वर्षों में और तेजी से हो गयी | जहाँ जीवन बीमा उद्योग विकास करने कि बात को भूल कर अपनी साख बचाने के लिये जूझने लगा | जमीनी हकीकत से आप हम सभी अवगत है | नित् नये परिवर्तन करके कही न कही बीमा कंपनियों को इतने व्यापक रूप से बाँध दिया गया कि वो अपना सर भी अपनी मर्जी से नही उठा पा रही है | बीमा -कर्ता जिस तेज गति से इस व्यवसाय में आये थे उसी तेज गति से पलायन भी कर रहे है वजह उन्हें अब भारत में बीमा के विकास कि बात बेमानी सी लग रही है | बीमा उद्योग के जानकारों का तो यहाँ तक कहना है कि बीमा उद्योग अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है | और यह बात बीमा उद्योग के व्यावसायिक प्रदर्शन से बिलकुल स्पष्ट भी हो गयी है जहाँ बीमा उद्योग वार्षिक औसतन २० से २५ प्रतिशत वृद्दि दर्ज करता चला आ रहा था वही पिछले कुछ वर्षों से वह नकारात्मक वृद्दि दर्ज कर रहा है |
आज से ठीक पाँच वर्ष पूर्व जब श्री जे. हरी नारायन जी ने बीमा बिनियामक और विकास प्राधिकरण के चेयर मैन का पद सम्हाला था तो बीमा उद्योग को उनसे बहुत उम्मीद थी | परन्तु समय के साथ-साथ बीमा कंपनिया ही नही बल्कि बीमा अभिकर्ता और आम जनता आज बीमा के नाम से इतना प्रताणित हुआ महसूस कर रहा है कि उसे बीमा के नाम से ही चीढ़ आने लगी है चाहे वह जीवन बीमा हो या फिर सामान्य बीमा | जीवन बीमा में जहाँ यूलिप बीमा उत्पाद ने आम जनता को बर्बाद किया वही सामान्य बीमा में स्वस्थ्य बीमा में लोग अपनी कठिन परिश्रम कि कमाई से हाथ धोना पड़ा | कहते ही कि समय बड़े से बड़े घाव को भर देता है | शायद आब आम जनता बीमा अभिकर्ता और बीमा कंपनियों को अब नित् नये सर्कुलर से परेशान नही होना पड़ेगा जो हर कदम लोगों को बाध्य करती थी और वो भी सिर्फ इस नाम पर कि आम जनता के हितों को संरक्षित किया जा रहा है | जहाँ न आम जनता का हित संरक्षित होता था न ही किसी अन्य का | कितने लोगों को बीमा उद्योग से बेरोजगार होना पड़ा कही न कहीं बीमा के लिये थोपी गयी गलत नीति ही इसके पीछे का कारण थी |
एक तरफ़ लाखो लोग बीमा अभिकर्ता के कार्य से नियमों के बाध्यता के चलते कार्य छोड़ने पर विवश हुये तो दुसरी तरफ़ नये लोगों को इस कार्य में आने की राह इतनी कठीन हो गयी कि लोग चाह कर भी इस कार्य में नही आ पा रहे है | और जिस योग्यता के लोगों को इस व्यवसाय में आमंत्रण दिया जा रहा है वो लोग इस व्यवसाय में आने के लिये तनिक भी ख्वाहिशमंद नही | कोई भी नियामक अपने चेयरमैन के नेतृत्व मे कार्य करता है और उसके प्रत्येक छोटे बड़े अधिकारी को उनकी हर बात मनाने की बाध्यता होती है | कही न कही इन्ही वजहों से पिछले कुछ सालों में ऐसे निर्णय हुए है जो बीमाकर्ता के पक्ष में कभी नही रहे है बल्कि दूरगामी परिणाम उसके और भी भयावह होने कि आशंका है |
इन्ही मुद्दे पर एक जीवन बीमा के जानकार से मेरी बात हो रही थी तो उनका स्पष्ट तौर पर यह कहना था कि बीमा न केवल अन्य वित्तीय सेवाओ से अलग है बल्कि इसे समझने के लिये एक लंबे अवधि का अनुभव होना अत्यंत ही आवश्यक है ऐसे में यदि किसी नियामक कि बागडोर ऐसे व्यक्ति को सौपी जाय जो बीमा क्षेत्र से नही हो तो उसकी कोई गलती नही मनानी चाहिये लिये गये निर्णयों के लिये | क्योंकि वह वही निर्णय अपने विवेक से लेगा जिसे वह सही समझता हो भले ही उस निर्णय से बड़े समूह के लोग प्रभावित हों | ऐसे में उस निकाय या व्यक्ति को जिम्मेदारी लेनी चाहिये जो ऐसे व्यक्ति के चुनाव के लिये जिम्मेदार है |
श्री जे. हरी नारायन (आई.ए.यस.) ने जिस भी तरह से बीमा बिनियामक एवं विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष के पद पर कार्यकाल पूरा किया और निर्णय लिये कही न कही वह उनकी बीमा के बारे में अज्ञ्नता को भी प्रदर्शित करता है | यदि अन्य मुद्दों पर बात कि जाय तो जिस तरह उन्होंने प्रशासनिक कार्यों को त्वरित गति दी जिसमे उनको महारत हासिल थी तो स्वतः ही उनके लिये तारीफ निकल जाती है, पर चिंता का विषय यह भी है कि उन्होंने जो नियम बनाये है क्या वो परिवर्तीत हो पायेंगे ? क्या आम जनता उनसे निजात मिल पायेगी ? क्या बीमा अभिकर्ताओं को उनका भविष्य पुनः सुरक्षित दिखेगा ? क्या बीमा कंपनिया स्वतंत्र रूप से कार्य सम्पादित कर पायेगी और उनको नियंत्रक इकाइयों का सहयोग मिल पायेगा ? इन सारे प्रश्नों का उत्तर तो आने वाला समय ही बताएगा, और ये सारी बाते निर्भर करेगी आने वाले इरडा के नये चेयरमैन पर जो अपना कार्यभार आने वाले कुछ दिनों में सम्हालेगा |
इन सबके बीच एक बात स्पष्ट है कि बीमा व्यवसाय से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े सभी लोग अगले कुछ दिनों तक रहत कि साँस जरुर लेंगे | और शायद बीमा व्यवसाय के ऊपर घिरे अँधेरे बादल आब बरसने के मूड में आ जाये और आसमान साफ़ दिखे जिससे पुरानी गति पुनः बीमा उद्योग को मिल सके | श्री जे. हरी नारायन जी जिनका कार्यकाल कल यानि कि २० फरवरी २०१३ को समाप्त हो रहा है अगर उनके कार्यकाल कि समीक्षा की जाय तो ढेरों ऐसे निर्णय उनके कार्यकाल में लिये गये है जिससे काफी लोगों को नुकशान उठाना पड़ रहा है जिनमे आम जनता बीमा अभिकर्ता बीमा कंपनियों से लेकर बीमे से प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े लोग शामिल है पर उनके कार्यकाल की एक खास बात यह भी रही है कि जिस विषय में उन्हें महारत हासिल थी उसपर उन्होंने शसक्त कदम उठाकर लोगों को राइट टाइम किया पर अगर वो फेल हुए तो सिर्फ बीमा कि गुढ़ता की वजह से और यह गुढ़ता सिर्फ बीमा का जानकार ही समझ सकता है जिसने बीमा में एक लंबी सेवा दी हुई हो |
जिस तरह से मीडिया में खबरे आ रही है उनमे दो प्रमुख नाम है जो इरडा के चेयरमैन कि होढ़ में शामिल है पहले है श्री टी.एस. विजयन और दूसरे है श्री कमल जी सहाय | बीमा उद्योग के लिये यह खुशी कि बात हो सकती है कि दोनों बीमा के न केवल विशेषज्ञ है बल्कि बीमा कि प्रत्येक बारीकियों को भी अच्छी तरह से समझते है | इन दोनों लोगों ने एक लंबा समय इस उद्योग को दिया है पर इन दोनों कि राहे इतनी आसान नही होगी | इनमे से चाहे जो भी चेयरमैन का कार्यभार सम्हाले पर उसे एक – दो नही बल्कि कई ऐसे बड़े निर्णय लेने पड़ेगे तभी बीमा उद्योग की गति को बल मिल सकेगा | हम आप तो सिर्फ प्रार्थना कर सकते है कि आने वाले दिन बीमा की तरक्की के लिये नयी उम्मीद बनकर आये |
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