“कोई तो है आम जनता कि आवाज उठाने वाला” १७ सितम्बर २०१२ को जब तृणमूल कांग्रेस पार्टी की प्रमुख ममता बनर्जी ने अपना समर्थन कांग्रेस पार्टी से वापस लिया तभी से प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया में इस बात की चर्चा जोरो पर है की कांग्रेस सरकार अब अपना बाकी कार्यकाल पूरा कर पायेगी या नही ? इस पूरी घटनाक्रम को ममता बनाम कांग्रेस सरकार देखा जा रहा है. अन्य छोटे दल जिनकी पहचान राष्ट्र स्तर पर पूर्ण रूप में भी नही है वो आज निर्णायक की भूमिका में खड़े दिखाई दे रहे है, और इनकी प्रत्येक छोटी बड़ी गतिविधियों पर मीडिया द्वारा निगाह राखी जा रही है. अपने चैनल की टी.आर. पी. सबसे ऊपर बनाने के लिये बढ़-चढ़ कर न्यूज आम जनता को दिखाया जा रहा है. कही न कही इस पूरे घटनाक्रम में आम आदमी की आवाज दब कर रह गयी है जो इन सब बातो में अपने ऊपर आने वाले अतिरिक्त बोझ के लिये उंगलियों पर बजट बनाना और अपनी मूलभूत आवश्यकताओं में कमी करना शुरु कर दिया है. क्या अब मुद्दा सिर्फ यहाँ तक सिमट कर रह गया है की सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी या नही ? क्या यह वास्तविक मुद्दा होना चाहिये ? अगर इन बातों की तफ्सीस करेंगे तो शायद नही. ममता बनर्जी ने जो साहसिक कदम उठाया वह सच में कबीले तारीफ है, क्योंकि आज के समय में जहाँ लोग सत्ता पाने की लालच में सबकुछ खोने के लिये तैयार है वही दूसरी तरफ ममता ने ऐतिहासिक फैसला लेकर आम आदमी की आवाज को देश के प्रत्येक कोने में बुलंद किया है. एक तरफ जहा ऐसी पार्टियां भी है जो थोड़े लालच की वजह से आम जनता के हितों को अनदेखी कर रही है. वही दूसरी तरफ कुछ पार्टियां आम जनता के साथ होने का ढोंग रच रही है. जो भी फैसले सरकार ने लिये है वो न केवल जन विरोधी है बल्कि आम जनता को यह सोचने पर मजबूर कर रहा है कि क्या वास्तव में वह उस देश के नागरिक है जहाँ दुनियां की सब व्यवस्थाओ से ऊपर आम जनता को जाना जाता है पर आज उसका ही भविष्य देश में बिखरा सा दिखाई पड़ रहा है, और पार्टियां आम जनता के हितों के साथ खिलवाड़ के साथ साथ उन पर राजीनीति भी कर रही है. आज भारत में रिटेल क्षेत्र में भारतीय बड़ी-बड़ी दिग्गज कंपनिया विद्यमान है क्या कोई यह बता सकता है की कब आम आदमी इस रिटेल शाप से अपने लिये सामान लेने गया ? देश की कुल आबादी का मुख्य भाग आज भी छोटे छोटे दुकानों से ही सामान खरीदता है और उसे कही १ रूपये कम में भी कोई सामान मिलता है तो उस दूकान को छोड़कर नई दूकान से सामान लेना पसंद करता है. आज भी लोग जहा फिक्स प्राइज का बोर्ड लगा होता है वह बार्गेनिंग करने से बाज नही आते. क्या ऐसे देश में एफ.डी.आई. लाना उचित है ? जिस तरह से डीजल के मूल्यों में बढोत्तरी ऐसे समय में की गयी है जब की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कोई वृद्धि नही हुई है वह अपने आप में सरकार के इस निर्णय पे प्रश्न चिन्ह लगता है. बहुत सारी दैनिक जरुरत की वस्तुओ के दाम इस फैसले के बाद बढना स्वाभाविक ही है जिसमे जरुरी घरेलु वस्तुओ के अलवा दवाईया प्रमुख रूप से शामिल है आखिरकार पिसेगा तो आम आदमी ही. ऐसे समय में आम आदमी के लिये उपभोग की वस्तुओ के बारे में सोचना तो दूर की बात है. जब आम आदमी मेहनत करके घर आता है तो कम से कम उसे इस बात की खुशी होती है की वह जो भी कमा कर लाया है उससे उसकी रोटी-दाल तो खा ही लेगा पर वो भी गये ज़माने की बात होती जा रही है जहाँ अनाज के भाव आसमान पर है सरकार महगाई पर लगाम लगाने में विवाश है वही गैस सिलेंडर के सप्लाई सीमित करके आम जनता पर दोहरी मार डाल दी गयी है. सरकार का तर्क चाहे जो भी हो पर आम आदमी की हालत बद से बदत्तर होती चली जा रही है और आम आदमी के इन मुद्दों को उठाने के बावजूद लोग सरकार बनाने - गिराने में लगे है. आज के इस आधुनिकतम युग में जहाँ मीडिया एक नई शक्ति के रूप में उभर कर सामने आया है क्या वह अपनी भूमिका का सही निष्पादन कर रहा है कम से कम इन मुद्दों पर तो नही. क्या आम आदमी अब यह मान ले की इस देश में उसके लिये अब कुछ बचा ही नही जहा पहले से ही बेरोजगारी की समस्या चरम पर है जिनके पास रोजगार है उनमे से अधिक संख्या उनलोगों की है जिनके पास पूरे वर्ष के बजाय समकालिक रोजगार ही उपलब्ध है. इस पूरे मुद्दे पर यदि देखा जाय तो कांग्रेस सरकार जो मनरेगा में लोगों को रोजगार उपलब्ध कराती है उससे प्राप्त धन क्या आम आदमी के लिये काफी है अपना घर १५ दिन भी चलने लिये. ममता बनर्जी की सरकार से समर्थन वापसी आम जनता के हितों में है और उनकी इस फैसले के लिये उन्हें दिल से सलाम जिन्होंने ऐसे समय में आम जनता की आवाज को उठाया है जब ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उनकी सुनाने वाला कोई नही है.

Post a Comment

If you have any doubts, please let me know

और नया पुराने