शोसल नेटवर्किंग साईटो के उद्गम के पश्चात से ही उनमे दिन दुनी रात चौगुनी गति से उनका विकास हुआ है साथ ही संसार के प्रत्येक कोने में उनकी पहूँच अत्यधिक मजबूत भी हुई है, और हो भी क्यू न इन साइटों ने संचार के क्षेत्र में एक जबरजस्त क्रांति जो ला दी है. आज इनकी ही देन है कि लोग घर बैठे संसार के कोने कोने में फैले हुये लोगों से जुड़े हुये है. कोई अपने बचपन के दोस्तों को पाकर खुश है तो कोई दूसरे देश के संस्कृति से रूबरू होकर खुश है. ये सारे ख्वाब जैसे लगने वाले काम को हकीकत में अंजाम इन शोसल वेबसाइटो ने ही तो दिया है. आज लोग इनके माध्यम से फेस टू फेस सीधे एक दूसरे से जुड़ पाते है. बात यहाँ यह ज्यादे महतवपूर्ण है कि क्या इन सोसल वेब साइटों पर नियंत्रण होना चाहिये या नही ?

हाल ही के दिनों में जिस तरह से भारत सरकार शोसल नेटवर्किंग साइटों को लेकर सक्रिय हुई है उससे आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह लोगों की एक जुटता से एवं विचारों कि स्वतंत्रता को लेकर सिर्फ इस बात के लिये चिंतित है कि कही लोग उसकी नीतियों के खिलाफ होकर बगावत न शुरू कर दे. भारतीय संविधान हमें विचारों को प्रकट करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है. हम किसी बात को लेकर क्या सोचते है क्या समझते है उसे पूर्ण रूप से हम व्यक्त भी कर सकते है. अभी जिस तरह से मुंबई में दो नव युवतियों को जेल में बंद कर दिया गया और उन्हें उनके विचारों के लिये प्रताणित किया गया वह वास्तव में निराशाजनक है साथ ही युवाओं में एक गहरे खौफ का निर्माण भी कर दिया है कि यदि वह शोसल नेटवर्किंग साइटों पे है तो सोच समझकर अपने विचार प्रकट करें.

क्या वास्तव में इन शोसल नेटवर्किंग साइटों पर नियंत्रण होना चाहिये ? मेरी माने तो नही शायद आप कि भी यही राय होगी. कोई भी क्रिया प्रतिक्रिया तब आती है जब लोग या तो उसके पक्ष में होते है या फिर विपक्ष में दोनों में राय महतवपूर्ण मानी जाती है. क्योकि सही गलत का फैसला तभी लिया जा सकता है जब एक बड़े जन समूह के लोगों की राय स्पष्ट रूप में सामने हो. अधिकांशतः लोग शोसल साइटों पर अपने फ्रेंड सर्किल में ही विचारों का आदान प्रदान करते है और उन विचारों से किसी को भी हर्ट करना कतई उद्देश्य नही होता.

जिस तरह से भारत सरकार इन साइटों को लेकर गंभीर है वह कहीं न कहीं सरकार को अपने आत्म विश्वास की कमी को दर्शाता है, जो कहीं न कहीं सरकार के विपक्ष में लोगों को खड़ा कर रहा है. पुलिस प्रशासन देश के नागरिको की सेवा/सुरक्षा के लिये होती है और जब वही सही गलत में भेद करना भूल जाएँगी तो क्या होगा इस देश कि आम जनता का. जहाँ लोग प्रत्यक्ष रूप में सामने आ कर विरोध नही कर पातें वही वह अप्रतयक्ष रूप में किसी का विरोध या सहयोग नही कर पायेंगे.

संविधान की मूल अवधारणा को मानते हुये आम लोगों को अपनी राय रखने की अभिव्यक्ति होनी चाहियें चाहे वह शोसल नेटवर्किंग साईटों पर हो या फिर किसी अन्य स्थान पर. हां यहाँ यह बात आम जनता को भी याद रखनी होगी कि कोई प्रतिक्रिया या विचार व्यक्त किसी द्वेष कि भावना या विवाद खड़ा करने के लिये नही देना चाहिये क्योकि इन सब से ऊपर उठ कर हमारी एकता है जिसे हर हाल में बनाये रखने का पूरा प्रयाश सब को मिल कर करना चाहिये.

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