“भारतीय जीवन बीमा उद्योग, वर्तमान वित्तीय वर्ष २०११-१२, अक्टूबर २०११ माह तक के कुल प्रथम प्रीमियम आय एवं जारी की गयी कुल पालिसियों के प्रदर्शन का विश्लेषण ।”
जीवन बीमा व्यवसाय के निजीकरण के समय से ही यह अनुमान लगाया गया था कि जीवन बीमा व्यवसाय का भविष्य भारत में अत्यंत ही सुरक्षित और उज्जवल है, और इस व्यवसाय में व्यापक सम्भावनाये विद्यमान है । क्योकि यहाँ कि कुल आबादी के अनुपात में बीमित लोगो कि संख्या न मात्र है । यही प्रमुख आकर्षण का केंद्र रहा कि प्रमुख निजी व्यवसायिक घराने विदेशी साझेदार के साथ इसमें तेजी से प्रवेश किये । कुछ हद तक यह कल्पना सत्य भी रही है । वित्तीय वर्ष २०१०-११ तक औसतन १५ से २० प्रतिशत वार्षिक वृद्धि कि दर से नव प्रीमियम आय में तेजी देखने को मिली है ।
जीवन बीमा व्यवसाय के निजीकरण के समय से ही यह अनुमान लगाया गया था कि जीवन बीमा व्यवसाय का भविष्य भारत में अत्यंत ही सुरक्षित और उज्जवल है, और इस व्यवसाय में व्यापक सम्भावनाये विद्यमान है । क्योकि यहाँ कि कुल आबादी के अनुपात में बीमित लोगो कि संख्या न मात्र है । यही प्रमुख आकर्षण का केंद्र रहा कि प्रमुख निजी व्यवसायिक घराने विदेशी साझेदार के साथ इसमें तेजी से प्रवेश किये । कुछ हद तक यह कल्पना सत्य भी रही है । वित्तीय वर्ष २०१०-११ तक औसतन १५ से २० प्रतिशत वार्षिक वृद्धि कि दर से नव प्रीमियम आय में तेजी देखने को मिली है ।
किन्तु इरडा और सेबी के विवाद ने जीवन बीमा उद्योग की दशा और दिशा दोनों को ही न केवल परिवर्तित कर दिया, बल्कि ऐसे चौराहे पे खड़ा कर दिया है जिसमें कम से कम आज कि स्थिति यही बयाँ करती है कि ऐसी स्थिति पुनः देखने को न मिले तभी बीमाकर्ता, ग्राहक और इरडा तीनो के लिए हितकर होगा । रही सही कसर अभीकर्ताओ की न्युक्ति कि प्रक्रिया, पालिसी निरंतरता दर कि आवश्यकता और अभिकर्ताओ के लिए पैन कार्ड कि अनिवार्यता ने जीवन बीमा व्यवसाय की कमर तोड़ डाली । परिणाम स्वरुप न केवल निजी कंपनिया बल्कि सार्वजनिक कम्पनी भी अपनी साख बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है पर, परिणाम अभी तक उनके प्रतिकूल ही है ।
यदि इरडा द्वारा जारी किये गये नवीनतम आकडो के आधार पर वर्तमान वित्तीय वर्ष २०११-१२ के अक्टूबर तक के प्रथम प्रीमियम आय की तुलना पिछले वित्तीय वर्ष २०१०-११ से करे तो निजी जीवन बीमाकर्ताओ में सबसे ज्यादा नुकसान रिलायंस लाइफ इंश्योरेन्स को हुआ है, जो पिछले वित्तीय वर्ष से प्रथम प्रीमियम आय में ५१.३३ प्रतिशत घाटे में है । यदि घाटे के क्रमवार को देखा जाय तो भारती एक्सा लाइफ इंश्योरेन्स दूसरे स्थान पर है और वह ५१.०६ प्रतिशत घाटे में है, तीसरे स्थान पर सहारा इंडिया लाइफ इंश्योरेन्स है, जो कि ४०.०३ प्रतिशत घाटे को प्रदर्शित कर रही है, चौथे स्थान पर आईसीआईसीआई प्रूडेन्सियल लाइफ इंश्योरेन्स है जो कि ३९.२९ प्रतिशत घाटे को प्रदर्शित कर रही है, पाँचवे स्थान पर बजाज अलिंयाज़ है जो कि ३५.४३ प्रतिशत घाटे को प्रदर्शित कर रहे है ।
निजी जीवन बीमा कंपनियों में अपने प्रथम प्रीमियम आय में वृद्धि दिखाने वाली कंपनियों की बात करे तो प्रथम स्थान पर स्टार यूनियन दायची लाइफ इंश्योरेन्स कंपनी है जो १८.१९ प्रतिशत की वृद्धि दर्शा रही है, दूसरे स्थान पर डी एल एफ प्रमेरि़का लाइफ इंश्योरेन्स कंपनी है जो कि १५.१७ प्रतिशत की वृद्धि दिखा रही है, तीसरे स्थान पर इंडिया फर्स्ट लाइफ इंश्योरेन्स कंपनी है जो कि १०.९२ प्रतिशत की वृद्धि दिखा रही है, चौथी और अंतिम जीवन बीमा कंपनी जो वृद्धि दिखा रही है, वो है मेट लाइफ इंश्योरेन्स जो कि ८.२८ प्रतिशत की वृद्धि दिखा रही है । यदि सावर्जनिक क्षेत्र कि कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम की बात कि जाय तो वह भी इस परिवर्तन से प्रभावित हुआ है और वह १८.४७ प्रतिशत घाटे में है । कुल निजी जीवन बीमा कंपनियों के प्रथम प्रीमियम आय की तुलना कि जाय तो वह २४.२० प्रतिशत घाटे में है । औध्योगिक स्तर पर देखा जाय तो जीवन बीमा उद्योग प्रथम प्रीमियम के सन्दर्भ में २०.०४ प्रतिशत घाटे में है, जो कि इरडा और समस्त जीवन बीम कंपनियों के चिंता का एक मुख्य कारण है । यदि धनराशि के रूप में देखा जाय तो बीमा उद्योग १३९७०.२९ करोड़ के घाटे में है । भारतीय जीवन बीमा निगम अकेले ९३४८.०१ करोड़ के घाटे में है, तथा निजी जीवन बीमाकर्ता ४६२२.०८ करोड़ के घाटे में है ।
इसी अवधि में यदि बीमाकर्ताओ द्वारा जारी की गई पॉलिसी कि बात करे तो निजी क्षेत्र कि मात्र तीन कंपनिया वृद्धि को प्रदर्शित कर रही है । जिनमे सबसे ज्यादे वृद्धि दिखने वाली कंपनी है, डी एल एफ प्रमेरिका लाइफ इन्शोरंस ६५.५८ प्रतिशत, स्टार यूनियन दायची ५६.१५ प्रतिशत तथा श्रीराम लाइफ इन्श्योरेसं कंपनी २.७४ प्रतिशत । यदि घाटे कि बात कि जाय तो, निजी क्षेत्र में सबसे ज्यादा घाटा दिखने वाली कंपनी है रिलायंस ५७.३८ प्रतिशत, फ्यूचर जनरली ५४.०९ प्रतिशत ,टाटा ४९.८० प्रतिशत, कोटक महिंद्रा ४०.९७ प्रतिशत एवं बजाज ३९.१८ प्रतिशत घाटे को प्रदर्शित कर रही है । कुल निजी क्षेत्र ३४.५७ प्रतिशत पॉलिसी में घटा दिखा रहा है, तो सार्वजनिक क्षेत्र कि भारतीय जीवन बीमा निगम ८.०३ प्रतिशत घाटे में है । वही उद्योग स्तर १५.३१ प्रतिशत घाटे में है ।
आज कि स्थिति ने समस्त जीवन बीमा कंपनियों में घबडाहट पैदा कर दिया है शायद यही मुख्य वजह है की भारती एक्सा लाइफ इंशोरेंस ने लाइफ एवं जनरल बीमा व्यवसाय से बाहर होने के लिए रिलायंस के साथ करार किया है जो की अभी अंतिम संस्तुति के लिए प्राथना पत्र इरडा के पास में विचाराधीन है, इसी कड़ी में फ्यूचर जनरली के बारे में भी कुछ प्रमुख समाचार पत्रों में खबर छपी थी कि वो भी इस व्यवसाय से बाहर निकलना चाहते है और कुछ कंपनियों से बातचीत भी चल रही है । कही न कही यह बीमा उद्योग के विषम परिस्थिति ही है जो लोगो को प्रेरित कर रही है इस व्यवसाय से बाहर निकलने के लिये । जिस तरह से जीवन बीमा उद्योग कठिन राह पर है, कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आगामी कुछ समय में और भी निजी कंपनिया इस व्यवसाय से पूर्ण रूप से निकलने कि घोषणा न कर दे ।
यहाँ विचार करने योग्य तथ्य है कि इतना कुछ होते हुए, नियंत्रक इकाई के रूप में विद्यमान इरडा अभी तक क्या कर रही है ?, क्या इरडा ने कुछ ऐसे कदम उठाये जिससे जीवन बीमा कंपनियों को सिर्फ यह आश्वाशन मिल जाए कि आगामी दिनों में वो इस कुचक्र से बाहर होगे, शायद नहीं ? सबसे वडी विडम्बना यह है कि जिन्हें अधिकार दिए गये है वो लोग अपनी बुद्धि लगाने के स्थान पर विदेशो में चल रही प्रक्रिया को जबरन भारतीय समावेश में फिट करना चाहते है जिसका परिणाम सबके सामने है और जिसका खामियाजा बीमा व्यवसाय से जुडा हर वो व्यक्ति चाहे वो ग्राहक हो, अभिकर्ता हो, बीमा कंपनी हो, ब्रोकर हो, कार्पोरेट अभिकर्ता हो, कर्मचारी हो सब लोग सामना कर रहे है । जिस तरह से आज का माहौल चल रहा है कोई आश्चर्य नहीं होगा कि जल्द ही इससे भी ज्यादा भयावह स्थिति देखने को मिले । खासकर निजी जीवन बीमाकर्ताओ के लिये, और उनमे से भी उन निजी जीवन बीमाकर्ताओ को जो अभी पर्याप्त रूप में ग्राहक अपने साथ नहीं जोड़ पाये है ।
इस उत्पन्न हुए समस्त समस्याओ का समाधान तभी हो पायेगा जब कि प्राधिकरण समस्त जीवन बीमा कंपनियों के प्रतिनिधियों से एक साथ इस मुद्दे पर बात करे और कोई साकार पहल करे और वो भी विदेशो में चल रहे नियमों और निर्देशों को यहाँ पर पूर्ति के लिये बाध्य न कराये बल्कि यहाँ के परिस्थिति के अनुशार अनुसन्धान कर नियमों का निर्माण करे जो कि सभी के हित में हो और सही मायने में तभी जीवन बीमा व्यवसाय के निजीकरण के उद्द्श्यों की पूर्ति होगी अन्यथा स्थिति बिगडते देर नहीं लगेगी और ऐसा समय जल्द ही आयेगा कि चाहकर भी कुछ नहीं किया जा सकता । जो लोग शीर्ष पद पर कार्यरत है उन्हें जीवन बीमा उद्द्योग कि तरक्की के लिये यहाँ के वातावरण के अनुरूप ही सोचना होगा अन्यथा पूंजी बाजार में बीमाकर्ता को जाने के लिये दिशानिर्देश जारी कर देने से इस समस्या से मुक्ति मिलाने वाली फिलहाल अभी तो नहीं दिखाती । शायद इरडा को इन बातों का एहसास अब तक हो चूका होगा ।
अतः इस विषय में तुरंत दखल तथा कदम उठाने कि आवश्यकता, तभी बीमा उद्योग कि तरक्की के रस्ते पर ले जाया जा सकता है । बीमाकर्ता लाइफ / सामान्य काउंसिल के माध्यम से विचार विमर्श कर इरडा को सुझाव दे सकते है ।
आकड़ा स्रोत : आई.आर.डी. ए.वेब साईट – www.irda.gov.in
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