शिष्टता हमारी प्रथम आवश्यकता है. कर्म, वाणी, व्यवहार, और सामाजिक जीवनों में दूसरों की सुख सुविधा का ध्यान रखना हमारी शिष्टता कि कसौटी है. शिष्टाचार ही सामाजिक जीवन में सफलता की कुंजी है
यह जिंदगी हँसते-खेलते हुये जीने के लिये है. चिंता, भय, शोक, क्रोध, निराशा, ईर्ष्या, तृष्णा और वासना में बिलखते रहना मूर्खता है.
जिस मनुष्य के ह्रदय में संतोष है, उसके लिये सर्वत्र धन, संपत्ति भरी हुई है, जिसके पैर में जुते है, उसके लिये सारी प्रथ्वी चमड़े से ढकी हुई है
जो मनुष्य मनसा-वाचा, कर्मणा किसी भी जीव के साथ न तो द्रोह करता है और न किसी से राग ही करता है उसे ब्रम्ह की प्राप्ति हो जाती है
परस्पर प्रेम, सद्भाव, नेह, नाता और उत्तम संबंधों का मूल सद्व्यवहार है. मनुष्य जैसा व्यवहार करता है, वैसी ही उन्नति करता है और दूसरों से भी वैसा ही उपहार पता है .
सूर्योदय के समय को सोकर व्यर्थ बर्बाद करने वाले को लक्ष्मी, विद्या, बुद्धि सब छोड़ जाते है. वह व्यक्ति एक न एक दिन अवश्य दरिद्र हो जाता है .
सच्चे और सभी पुरुष का जीवन खुली पुस्तक है जिसकी प्रत्येक पंक्ति पढ़ी और समझी जा सकती है. संसार की हजार आलोचनाए भी अपने सद्विचारों पर दृण रहने वाले मनुष्यका कुछ नही बिगाड़ सकती है .
विचार एक शक्ति है, जिससे मानव के आस पास का वातावरण निरंतर निर्मित होता रहता है जो व्यक्ति अच्छे विचारों में निमंग्न रहते है, उनके इर्द-गिर्द अच्छै का वातावरण रहता है. अतः क्रोध, लोभ, घृणा, द्वेष, ईर्ष्या, मत्सर आदी दुर्भावनाओ का त्याग कर शुद्धविचारों के साथ रहने का प्रयास करें.
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