क्या फिल्मे हमारे समाज का आईना है ? क्या फिल्मे सिर्फ मनोरंजन के लिये बनायीं जाती है ? क्या फिल्मों से हम कोई सीख ले पाते है ? ऐसे ढेरों सवाल है जो जेहन में कभी न कभी आते रहतें है. अगर गौर किया जाय तो आज के इस भागम-भाग जिंदगी में फिल्मे हमारे मनोरंजन और दिमागी सकूंन देने वाले माध्यमों में सर्वोपरी है और लोग इसका जमकर लुफ्त उठाते है खास कर युवा वर्ग एवं शहरी लोग. यह लोगों के फैशन से भी जुड़ गया है. बात करते है कि फिल्मे कैसे हमारे समाज का आईना है, तीन दशक अगर पीछे देखा जाय तो ऐसी फिल्मो का निर्माण हुआ है जो कही न कही हमारी तब कि प्रथा समाज कि कुरीतियों पर आधारित थी और आज भी जिस तरह की फिल्मे बनाई जा रही है वो भी कही न कही हमारे समाज से ही प्रेरित है और निसंदेह कहा जा सकता है कि फिल्मे हमारे समाज का आईना है. Oh My God एक ऐसे संजीदा फिल्म कई दशको के पश्चात आयी है जो हमारे विचारों संस्कारों एवं उससे भी बड़ी बात हमारे समाज की भावना को प्रस्तुत करती है जहाँ एक तरफ आज भी लोग धर्म के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना रहें है वही दूसरी तरफ धर्म वास्तव में क्या होता है और वह क्या सीख देता है उससे किसी को कोई मतलब नही. यहाँ लोग जिन्दा इंसान की सहायता करना पसंद नही करते बल्कि मंदिरों मस्जीदो के नाम पर करोणों रुपये दान में देने से भी नही झिझकते. एक तरफ जहाँ ऐसे कवि भी हुये है जिन्होंने यहाँ तक कह रखा है की “मनुष्य वही है जो मनुष्य के लिये मरे” वही हमारी कई फिल्मो में भी इस बात का प्रमाण मिलता है की व्यक्ति की सहायता मदद करना सभी धर्मो से सर्वोपरि है पुरानी फिल्म का एक गाना बहुत ही प्रेरक है “बस यही अपराध मै बार बार करता हूँ आदमी हु आदमी से प्यार करता हु”. कही न कही ऐसी फिल्मे आती है और अपनी एक अमिट छाप दर्शको के उपर छोड़ कर चली जाती है. परेश रावल ने इस फिल्म में बेजोड़ अभिनय किया है और एक आम आदमी को यह सोचने पर विवश भी किया है कि क्या मूर्ति पूजा में आस्था रखनी चाहिये या फिर प्रत्येक आदमी में भगवान को मानकर उनकी सहायता करनी चाहिये. भगवान भी यही चाहते है कि उनके नाम पर आस्था से खिलवाड़ न किया जाय. हमारे ग्रंथो पुराणों के आधार पर भी यह प्रमाण मिलता है कि भगवान में विश्वास करना चाहिये पर उनके द्वारा निर्मित प्रत्येक चीज में भगवान का वास भी है इसका भी ध्यान रखना चाहिये. आज जहाँ युवा अपनी तरक्की के नाम पर कुछ भी कर गुजरने से गुरेज नही करता ऐसे में उसे सही दिशा भी देना बहुत जरुरी है. ढेरों फिल्मे आती है और अच्छा व्यवसाय करके चली जाती है प्रत्येक दिन कितनी ही फिल्मे रिलीज होती है पर अगर गौर करें तो पायेगे कि प्रत्येक फिल्म का सिर्फ एक ही सन्देश होता है बुराई पर अच्छाई कि जीत, फिर भी हम फिल्मो से सीख नही ले पातें. Oh My God ने अपने दृश्यों से एक नये रास्तें का निर्माण किया है जो निसंदेह कम से कम कुछ युवा में बदलाव जरुर लाएगी खास कर हमारी मूर्ति पूजा के विरुद्ध. एक बात और भी है सिखाया उसको जाता है जिस में सिखने की इच्छा हो और यह इच्छा हमें अपने आप में जागृत करनी होगी तभी हम फिल्मो को सिर्फ मनोरंजन का साधन न समझकर उनसे कुछ सीख भी ले पायेंगे जिससे न केवल हमारा विकास होगा बल्कि समाज का भी विकास होगा. Oh My God फिल्म के लिये सिर्फ यही शब्द कहें जा सकते है कि सदी के सर्वश्रेष्ठ फिल्म है और इसे एक बार जरुर देखना चाहिये और औरों को देखने के लिये उत्साहित करना चाहोये. ऐसी फिल्मे ही है जो यह बार बार प्रमाणित करती है कि फिल्मे हमारे समाज का आईना है.
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