क्या आरक्षण का वर्तमान तरीका सही है ? किसी देश एवं उसके समाज का विकास समुचित रूप से तभी हो सकता है जबकि उस देश में विद्यमान प्रतिभाओं में से श्रेष्ठ प्रतिभाओं को अवसर दिया जाय चाहे वह किसी भी वर्ग का ही क्यूँ न हो, उस देश के प्रत्येक क्षेत्र में अपना योगदान देने को. इसके ठीक विपरीत अगर ऐसा नही होता है तो सही मायने में वह समाज आगे नही बढ़ सकता है. इन दी जा रही दलीलों का यह कत्तई मतलब यह नही निकला जाय कि हम आरक्षण के खिलाफ है, हमारा लेख सिर्फ उस व्यवस्था के खिलाफ है जो आजादी के कई दशकों के पश्चात आज भी प्रभावशाली नही हो रहा है, और सभी राजनीतिक दल प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से उस पर राजीनीति कई दशको से करते चले आ रहें है और भविष्य में करते-रहने के भरपूर आसार है. क्या वास्तव में भारत में चल रही आरक्षण व्यस्था, ही एक मात्र साधन रह गया है किसी विशेष वर्ग को आगे बढाने का ? आइये थोड़ा सा इतिहास टटोलते है कि आखिरकार जाति व्यस्था का प्रारम्भ क्यू और कैसे हुआ, अगर हिंदुओं के प्राचीन ग्रंथो का अवलोकन ले तो यह पता चलता है कि सभी लोग एक ही पिता की संतान है, यदि ऐसा था तो, फिर बात यह निकलकर सामने आती है कि यदि सभी लोग एक ही पिता कि संतान है तो क्यों उनमे जाति व्यस्था को जन्म दिया गया. उपलब्ध साक्ष्य यह बताते है कि लोगों द्वारा उनके कार्यों के आधार पर उनका वर्गीकरण किया गया यही से जाति व्यस्था का आरम्भ हुआ और यह धीरे-धीरे इतने भयानक रूप लेता चला गया कि आज समाज की समस्त बुराइयों में सबसे प्रमुख रूप से विद्यमान है. यदि तथ्यों को गहराई से देखा जाय तो जाति व्यस्था कही न कही गरीबी से भी जुड़ी रही है, अर्थात एक तो किसी जाति विशेष का होना दूसरे गरीब होना. जहा ऐसी जाति के लोगों को तिरस्कार हीन भावनाओ का सामना करना पड़ता है वही इसके ठीक विपरीत जाति के युवा इस बात से कुंठित है कि इतनी काबिलियत होने के बावजूद उन्हें अवसर सिर्फ इस लिये नही मिलता कि वो आरक्षण व्यस्था के कारण उस श्रेणी में आने से वंचित रह जाते है क्या ऐसे युवा विशेष जाति के लोगों को सामान भाव से कभी देखेगे ? सरल रूप से कहें तो नही क्योकि उनके अंदर कही न कही ऐसी भावना जरुर घर कर लेती है कि उनकी दशा सिर्फ इस लिये खराब है कि वह इस जाति के श्रेणी में आते है. क्या सरकार आरक्षण की इस व्यस्था से इस समस्या का निदान कर पायेगी क्या वह दोनों समूह के लोगों में भाईचारा स्थापित कर पायेगी ? जो गहरी खाई का रूप लेता चला जा रहा है. आरक्षण व्यस्था को और मजबूत और सशक्त बनाने का एक ही माध्यम समझ में आता है जिससे न केवल लोगों के बीच खाई समाप्त हो जायेगी बल्कि राजनितिक पार्टियां जाति के नाम पर लोगों में विवाद भी स्थापित नही कर पायेगी, और वो है तो सिर्फ आर्थिक रूप से सहयोग किया जाना. सिर्फ एक जाति वर्ग के लोगों को ही नही बल्कि समाज के प्रत्येक वर्ग के लोगों को जिनकी वार्षिक आय रुपया पचास हजार से कम हो, ऐसे वर्ग के लोगों को रहने के लिये मकान, उनके बच्चों के लियें शिक्षा, बिमारियों का इलाज मुप्त किया जाना चाहिये. साथ ही इस श्रेणी के लोगों को वार्षिक धनराशि सहयोग भी दिया जाना चाहिये. लोगों का रहन-सहन का स्तर अच्छा होगा तो निसंदेह उनकी सोच और कार्य करने की क्षमता में बदलाव जरुर दिखेगा और आरक्षण कि दो धारी तलवार से मुक्ति भी. आज कि आरक्षण प्रणाली न केवल लोगों को सही लाभ प्रदान करने में अक्षम है बल्कि वह लोगों को आपस में लड़ने के लिये उकसाने वाली है. साथ ही अगर देखा जाय तो आजादी के इतने वर्षों के बाबजूद हमारी सरकार जमीनी आवश्यकताओं को पूरा नही कर पायी है अगर वो ऐसा करने में सक्षम होती तो निसंदेह हमें आप सब को अरक्ष्ण के मुद्दे पर सोचने की जरुरत भी न होती. जमीनी आवश्यकताओं का न होना भी कही न कही आरक्षण को बढाने का काम कर रही है. यदि ऐसा समाज में होता है तो निसंदेह लोगों को सामान अवसर मिलेगा अपनी प्रतिभा को दिखाने का. इस लेख को लिखने से पहले मैंने कई प्रमुख देशो की व्यस्थाओ का अध्ययन भी किया पर मुझे यह जानकर बहुत आश्चर्य हुआ कि आरक्षण कि व्यस्था सिर्फ हमारे देश में ही विद्यमान है उन देशो में नही शायद तभी उस देश का विकास सही रूप से हो भी पाया है अन्यथा देश के विकास की बात तो दूर वो लोग भी आरक्षण पर राजीनीति कर रहे होते. इस पूरे विषय पर देखे तो हम आप भी उतने ही जिम्मेदार है अपनी इन सामाजिक व्यस्थाओं के लिये क्योकि हमने या तो अपने मत का प्रयोग नही किया और किया भी तो उन लोगों के लिये जिन्होंने क्षणिक लाभ देकर जीवन पर्यंत एक ऐसी समस्या उपहार स्वरुप दे दी है कि वह समाप्त होने का नाम भी नही ले रही है. पाने वाला और न पाने वालें दोनों के हित में नही दिख रही. यदि आप को मेरे विचार सही लगें तो अपने विचारों से मुझे अवगत जरुर करायें. अंत में मै सिर्फ अपनी बात दुहराना चाहुगा कि मै आरक्षण के खिलाफ नही हूँ बल्कि आरक्षण कि इस व्यस्था के खिलाफ जरुर हु जो किसी भी तरह से लोगों के हित में नही है और इस व्यस्था को तुरन्त परिवर्तित किया जाना चाहिये. जिससे प्रत्येक जगह सिर्फ एक ही बोर्ड दिखे NO RESERVATION. तभी आम आदमी के विकास के साथ साथ देश का सम्पूर्ण विकास भी संभव हो पायेगा.
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