जीवन बीमा व्यवसाय कि वर्तमान रफ़्तार को देखते हुये कई विशेषज्ञों ने तो यहाँ तक कह दिया है कि बीमा व्यवसाय में अब कुछ बचा ही नही, न ही बीमाकर्ताओं के लिये और न ही उनके विक्रय प्रतिनिधियों के लिये. यदि उनकी बातों को ध्यान से समझा जाय तो शायद वो सही कह रहें है क्योकि पिछले कुछ वर्षों से बीमा उद्योग की रफ़्तार पर न केवल ब्रेक सा लग गया है बल्कि वह नव व्यवसाय में घाटे को प्रदर्शित कर रहा है और उसकी वर्तमान गति भी बहुत आकर्षक नही है शायद तभी बहुत सी विदेशी कम्पनियाँ यहाँ से जा चूकी है और बहुत सी जाने की राह पर अग्रसर है जो सही मौके की तलाश में है. सच्चाई क्या है इसे जानना बहुत ही जरुरी है कि वास्तव में देश में बीमा व्यवसाय के कितनी सम्भावनाये वर्तमान में है और किस तरह से उसे वास्तविकता में बदला जा सकता है. देश में बीमा के निजीकरण होने के एक दशक बाद भी हम जिस मुकाम पर खड़े है उससे हमें कहीं आगे होना चाहिये था. वर्तमान स्थिति न केवल हास्यपद है बल्कि उपलब्ध संसाधनों का दोहन न कर पाना इंगित कर रहा है. आइये कुछ आकड़ो को समझने का प्रयास करते है.


विवरण
टिप्पणी
इकाई
२०००-०१
२००१-०२
२००२-०३
२००३-०४
२००४-०५
२००५-०६
२००६-०७
२००७-०८
२००८-०९
२००९-१०
२०१०-११
बीमा पहुँच
कैलेण्डर वर्ष
प्रतिशत में
२.१५
२.५९
२.२६
२.५३
२.५३
४.१०
४.००
४,००
४.६०
४.४०
बीमा घनत्व
कैलेण्डर वर्ष
यू.एस.$में
९.१०
११.७०
१२.९०
१५.७०
१८.३०
३३.२०
४०.४०
४१.२०
४७.७०
५५.७०

डेटा स्रोत – बीमा बिनियामक एवं विकास प्राधिकरण वार्षिक रिपोर्ट् (२०००-०१ से २०१०-११)


उपरोक्त आकड़े यह बयाँ करते है कि निजीकरण के एक दशक के पश्चात भी बीमा कि पहुँच आम जनता के बीच सिर्फ नाम मात्र कि है. अगर सरल शब्दों में इसकी विवेचना करे तो वर्ष दर वर्ष कुल जनसँख्या का बीमित जनसँख्या का प्रतिशत दिखाया गया है ‘बीमा पहुँच’ के कालम में और उन बीमित का औसतन प्रीमियम यू.एस. डालर में ‘बीमा घनत्व’ के कलम में वर्ष दर वर्ष दिखाया गया है. भारत में जीवन बीमा कि अपार संभानाए है जरुरत है तो उसे सही दिशा प्रदान करने की. एक समय बीमा उद्योग का यह भी था कि लगभग २५ प्रतिशत से अधिक वार्षिक गति से यह उद्योग प्रगति कर रहा था जिसकी प्रगति पर पिछले कुछ वर्षों में रुक सी गयी है क्योकि बीमा उद्योग के आंतरिक समस्याये बहुत ही घातक सिद्ध हुई है, इस उद्योग को नुकशान पहुचने में. यहाँ तक कि इस उद्योग के नियंत्रक ने भी कोई कसर नही छोड़ी है इस उद्योग की प्रगति में बाधक बनने के लिये और आने वाले कई वर्षों तक स्थिति सुधरने की कोई गुंजाइस नही है. हाँ इन सब के बीच एक जमीनी हकीकत यह भी है कि इस व्यवसाय में अपार सम्भावनाये विद्यमान है. यदि आकड़ो से हट कर बात कि जाय तो हम इसका सीधा उदाहरण अपने घर सगे संबंधियो मित्रों से ले सकते है कि उनके घर में कुल सदस्यों में से कितनो के पास बीमा सुरक्षा उपलब्ध है. फरवरी २०१३ के पश्चात शायद इस उद्योग की सही बीमारी का सही इलाज आरम्भ होना मुमकिन हो सकता है.

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