भारतीय बीमा व्यवसाय में कुल 52 बीमा कम्पनियाँ कार्यरत है | इनमे से 24 जीवन बीमा क्षेत्र की कम्पनियाँ है, एवं शेष 28 गैर जीवन बीमा क्षेत्र की कम्पनियाँ है | बैंक, बीमा कंपनियों, ई.पी.एफ.ओ. और पी.पी.एफ. के पास करोड़ो रुपये ऐसे पड़े हुए है जिनके लिये किसी ने दावा प्रस्तुत नहीं किया | यानि की एक भारी मात्रा में लावारिस धन विभिन्न जगहों पे पड़ा हुआ है | अभी हाल ही में देश के केन्द्रीय बैंक ने, बैंको के पास पड़े लावारिस धन के लिये यह प्रस्ताव दिया है कि, 10 वर्ष या उससे अधिक समय से लावारिस धन का उपयोग जमाकर्ताओ की शिक्षा और बैंकिंग जागरूकता में खर्च किया जायेगा | दिसंबर, 2012 के अंत में बैंकों के पास कुल 3,652 करोड़ रुपये की ऐसी जमाएं थींजिनका कोई दावेदार सामने नहीं आ रहा । वहीं मार्च, 2013 के अंत में बीमा कंपनियों के पास 4,865 करोड़ रुपये की ऐसी पॉलिसियां थींजिनके लिए कोई दावा नहीं किया गया । कर्मचारी भविष्य निधि संगठन  के पास 22,000 करोड़ रुपये की जमाओं का कोई दावेदार नहीं आ रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्र “टाइम्स आफ इंडिया” की 10 अगस्त 2012 के प्रकाशन अनुशार भविष्य निधि में (पी.पी.एफ.26,000 करोड़ रुपयों की जमाओं का कोई दावेदार नहीं आ रहा | यानि कि कुल 56,517 करोड़ रुपये विभिन्न उद्योगों में आम जनता के लावारिस पड़े हुए है |

बीमा उद्योग में लावारिस धन :- बीमा के सन्दर्भ में लावारिस धन से आशय “मृत्यु दावा (Death Claim) पूर्णावाधि दावा (Maturity Claim) उत्तरजीविता लाभ, (Survival Benefit) प्रीमियम वापसी के लिए देय (Premium Due for Refund) संगृहीत प्रीमियम पर समायोजित नहीं (Premium Deposit but not adjusted) और क्षतिपूर्ति दावा (Indemnity Claim) का वह धन जो देय तिथि से छः माह के पश्चात् भी उसके लिए किसी ने दावा नहीं प्रस्तुत किया, तो वह धन लावारिस माना जाएगा | पिछले चार वर्षो का बीमा उद्योग में लावारिश धन (करोड़ में) का विवरण निम्नाकिंत है :-

Financial Year
2009-10
2010-11
2011-12
2012-13
Unclaimed Amount
1372.64
1945.93
3037.46
4865.81
Growth%
0
41.77
121.29
254.49

“इंडियन एक्सप्रेस” समाचार पत्र की 27 फरवरी 2012 की रिपोर्ट ने यह प्रदर्शित किया था की अकेले भारतीय जीवन बीमा निगम के पास 30 सितम्बर 2011 तक, लावारिश बीमा पालिसियां जिनकी पूर्णावधि तो हो चुकी थी पर कोई दावा नहीं आया, उनकी संख्या 1,80,031 है | ये सारे आकड़े स्वतः ही यह बयां कर रहें है कि इन तरह के मामलों में बीमा कंपनियाँ चाह कर भी पालिसीधारको की मदद नहीं कर पा रही है | वास्तव में ये आँकड़े न केवल प्राधिकरण के लिए बल्कि बीमा कंपनियों के लिए, बीमा मध्यस्थों के लिए और आम जनता के लिए भी चिंता का विषय है |

बीमा उद्योग में लावारिस धन का कारण :- ऐसी क्या वजह है कि लोग अपने ही धन के लिए दावा नहीं करते वजह बहुत सी हो सकती हैंपर जमीनी हकीकत यह है कि यह अब एक विकट समस्या का रूप धारण कर चूका है । यदि स्पष्ट शब्दों में बात करें तो एक मुख्य कारण यह भी निकल कर सामने आता है कि लोगों में जानकारी का व्यापक आभाव है | अन्य कारणों में आमतौर पर इसलिए दावा नहीं किया जाता क्योंकि मृतक पॉलिसीधारक के परिवार को पॉलिसी के बारे में पता नहीं होता है जिससे वो समय पर धन ले लिए दावा नहीं कर पाते । ज्यादातर मामलों में दावे का निपटान चेक या बैंक ड्राफ्ट के जरिये किया जाता है । अगर ये लाभार्थी के पास इन्हें भुनाने की अंतिम तारीख के बाद पहुंचते हैं तो इस धन का दावा नहीं हो पाता है | साथ ही आम लोगों का पता परिवर्तन भी एक प्रमुख समस्या है, लोगों का पता तो परिवर्तित हो जाता है पर वो बीमा कंपनियों को इसकी सुचना नहीं देते है जिससे बीमा कंपनियों को सेवाएँ देने में समस्याएं आती है और वो चाह कर भी सेवाएँ नहीं दे पातें हैं |

किसी ग्राहक और उसके परिवार के सदस्यों के बीमा पॉलिसी के बारे में भूलने की घटना समूह बीमा के मामले में ज्यादा होती हैक्योंकि पॉलिसीधारक के पास दस्तावेज नहीं होते । दावा न किए जाने की एक अन्य वजह यह भी हो सकती है कि चाहे मनोनीत व्यक्ति ने दावा कर दिया होलेकिन यह राशि उत्तराधिकारी को ही दी जाती है और वारिस की वैधता की जांच करने में समय लगता है।

प्राधिकरण द्वारा उठाये गए कदम :- 17 फरवरी 2014 को बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDA) ने एक सर्कुलर जारी किया हुआ हैजिसमें बीमा कंपनियों से सैटलमेंट की तारीख के बाद महीने तक बिना दावे वाली पॉलिसियों की जानकारी अपनी वेबसाइट पर प्रदर्शित करने को कहा गया है। आईआरडीए ने कंपनियों से कहा है कि वे अगर राशि एक सीमा जीवन बीमा के लिए 10,000 रुपये और सामान्य जीवन बीमा पालिसियों के लिए 25,000 से ज्यादा हो तो बैंक ड्राफ्ट या चैक के जरिये ही दावों का निपटान न करें | इन दावों का निपटान इलेक्ट्रानिक क्लियरिंग सैटलमेंट (नेफ्ट, एसीएस, आरटीजीएस, आई.एम्.पी.एस., ए.सी.एच.) के जरिये किया जाना चाहिए।

लगभग समस्त बीमा कम्पनियाँ यह बात स्वीकार करती है कि ग्राहक के साथ संपर्क करना एक प्रमुख मुद्दा है | प्राधिकरण के इस पहल से ग्राहकों के लिए अपने धन के लिए दावा करना आसान होगा |

ग्राहकों को भी अब जागरूक होना होगा :- समस्त समस्याओं के पीछे एक ही कारण होता है, वो है व्यक्ति का अपना ज्ञान | सदी के महानायक अमिताभ बच्चन जी का एक वाक्य हर जगह सटीक बैठता है जहाँ पे भी समस्यायें विद्यमान है “सिर्फ ज्ञान ही आपको आपका हक़ दिलाता है” | इस तरह की समस्याओं से बचने के लिए पॉलिसी धारक क्या करें ? बीमा पॉलिसी के बारे में अपने परिवार को बताएं, बैंक खाते या पते में बदलाव की सूचना बीमा कंपनी को समय पर दें | पॉलिसी खरीदते समय किसी व्यक्ति को नामित जरूर करें। एक छोटा सा प्रयास आपके कठिन श्रम से अर्जित धन को लावारिस होने से बचा सकता है |

आम लोगों के मध्य बीमा के विषय पर गहराई से जागरूकता लाने के लिए प्राधिकरण कई प्रयास कर रहा है जिनमे “बीमा बेमिसाल” के नाम से प्रिंट प्रचार, ग्राहक जागरूकता अभियान - समाचार पत्रों के माध्यम से, रेडियो चैनल्स के माध्यम से, टी.वी. चैनल्स के माध्यम से, बीमा विषय पर सेमिनार का आयोजन, बीमा जागरूकता से सम्बंधित कार्यक्रमों को स्पाँसर करना, निबंध प्रतियोगिताओं का आयोजन, बीमा जागरूकता दिवस, बीमा ग्राहकों के लिए विशेष वेब पोर्टल का निर्माण (http://www.policyholder.gov.in/) और कई महत्वपूर्ण जानकारी आम जनता के लिए सार्वजनिक करके कर रहा है (http://www.irda.gov.in/) | जिसका प्रभाव आम जनता में अब देखने को मिलने लगा है | निसंदेह प्राधिकरण का प्रयास अत्यंत ही सराहनीय है और यह आगामी वर्षो में लावारिस बीमा धन में भी काफी कमी लायेगा |

अब समस्यायें क्या है :- भारत और समस्यायें एक ही सिक्के के दो पहलु है जहाँ भारत शब्द आता है वहां समस्यायें स्वतः ही चली आती है और जहाँ समस्यायें होती है वहां भारत शब्द स्वतः ही जुड़ जाता है, और ऐसा इसलिये है कि यहाँ की प्रमुख व्यवस्थायों में भी अक्सर खामी देखने को मिल जाती है | यहाँ की एक व्यवस्था अपने आप में पूर्ण न होकर दुसरे पर आधारित रहती है |
लावारिस धन का पता लगाने में एक बड़ी समस्या यह है कि एक आम आदमी को अलग-अलग कंपनियों की वेब साईट पर जाकर अपना नाम, पता, तलाश करना पड़ेगा, जो की अत्यंत कठिन कार्य है और इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस देश की आबादी का बहुत बड़ा भाग कंप्यूटर साक्षरता से आज भी वंचित है | समाचार पत्र “मिंट” की 1 अक्टूबर 2012 की रिपोर्ट के अनुसार मात्र 6.5 % लोग ही भारत में कंप्यूटर साक्षर है |

यदि हम प्राधिकरण के इस निर्देश को “अगर धन एक सीमा जीवन बीमा के लिए 10,000 रुपये और सामान्य जीवन बीमा पालिसियों के लिए 25,000 से ज्यादा हो तो बैंक ड्राफ्ट या चैक के  जरिये दावों का निपटान न करें | इन दावों का निपटान इलेक्ट्रानिक क्लियरिंग सैटलमेंट (नेफ्ट, एसीएस, आरटीजीएस, आई.एम्.पी.एस., ए.सी.एच.) के जरिये किया जाना चाहिए।“ इसका आशय यह है की आम लोगों के पास बीमा पॉलिसी लेने से पहले, बैंक खाता संख्या अवश्य होनी चाहिए | समाचार पत्र मिंट की 4 अप्रैल 2014 की रिपोर्ट के अनुशार भारत में लगभग 50% व्यस्क लोगों के पास आज के इस आधुनिकतम युग में भी बैंक अकाउंट नहीं है, जो यह दर्शाता है की लोगों में आज भी अपने जरूरतों को सही तरह से पूरा होने के लिए जरुरी आधारभूत व्यवस्थाओं का आभाव है |

बीमा उद्योग में लावारिस बीमा धन के वितरण के लिए प्रस्तावित मॉडल :-   बीमा उद्योग में प्राधिकरण के नियमो के तहत अब समस्त बीमा कंपनियों को लावारिस बीमा धन का विवरण अपने वेब पोर्टल पर प्रदर्शित करना होगा एवं तय समय पर विवरण को अपडेट भी करते रहना होगा | आम आदमी के समक्ष यह समस्या आ सकती है कि वो किस कंपनी के पोर्टल पर विवरण में सर्च करे और किस पर न करे | लाइफ और नान-लाइफ दोनों मिलाकर 52 बीमा कम्पनियाँ कार्य कर रही है | लावारिस धन के वितरण को सुनिश्चित करने के लिए प्राधिकरण को चाहिए की वो प्रत्येक कंपनीयों के लावारिस धन का विवरण केन्द्रित तरीके से एक ही जगह प्रदर्शित करें, जिससे एक आम आदमी को अपना विवरण सर्च करने में आसानी हो | साथ ही यह प्रक्रिया और सरल और ग्राहक के अनुकूल हो इसके लिए भी व्यस्था करनी होगी जैसे “कोई भी व्यक्ति सम्बंधित डाकुमेंट के साथ प्राधिकरण को निवेदन कर सके, अपने से सम्बंधित लावारिस धन का विवरण को प्राप्त करने के लिए |” जो लोग कंप्यूटर साक्षर नहीं है उन्हें भी अपनी जानकारी मिल सकें | आगे प्रदर्शित सारणी इस प्रक्रिया को प्रदर्शित करने का एक छोटा सा उदहारण मात्र है |


क्रमवार इस प्रक्रिया को निम्न तरह से समझा जा सकता है | यह प्रक्रिया न केवल ग्राहकों के हितों को और सुरक्षित करेगी बल्कि आम जनता में बीमा उद्योग को लेकर मजबूत विश्वास को जन्म भी देगी, साथ ही लावारिस धन के वितरण में पारदर्शिता के साथ-साथ कमी लाएगी, जो की सभी के हित में होगा |

v  52 बीमा कंपनियों की अलग – अलग वेब साईट पर लावारिस राशि का विवरण प्रदर्शित करने के बजाय प्राधिकरण के वेब साईट पर सभी कंपनियों के लावारिस राशि का विवरण प्रदर्शित किया जाय | इससे आम जनता 52 जगह सर्च करने के बजाय केन्द्रित जगह पर सुचना प्राप्त कर सकती है |
v  लावारिस धन का विवरण प्रत्येक माह की पहली तारीख को प्राधिकरण के वेब साईट पर समस्त बीमा कम्पनियाँ उनसे सम्बंधित लावारिस धन का अद्यतन अवश्य करें |
v  आन-लाइन सुचना सर्च करने के अलावा प्राधिकरण यह सुविधा भी प्रदान करें की कोई भी व्यक्ति अपनी सुचना डाक के माध्यम से प्राधिकरण से प्राप्त कर सके | इसके लिए वह व्यक्ति सुचना से सम्बंधित विवरण प्रस्तुत करके प्राधिकरण से सीधे इसकी मांग कर सके | ऐसा इसलिए करना जरुरी है, क्योकि यहाँ पर कंप्यूटर साक्षर लोगों की संख्या बहोत ही कम है |
v  दावेदार से सम्बंधित लावारिस धन का विवरण यदि केन्द्रित वेब पोर्टल पर उपलब्ध हो या प्राधिकरण से प्राप्त हो, तो वह सम्बंधित दस्तावेजो के साथ बीमा कंपनी से संपर्क कर दावा प्रस्तुत करें |
v  सरणी में दिए गए दस्तावेज सिर्फ प्राथमिक दस्तावेज है बीमा कंपनियाँ अपने अनुसार अन्य दस्तावेज की मांग कर सकती है |
v  बीमा कंपनियाँ इन जैसे मामलों को उदारता पूर्वक लेते हुए दावा धन का भुगतान कम से कम आवश्यक कार्यवाही करके सम्बंधित व्यक्ति को करें |
v  प्राधिकरण रुपया 10,000/- जीवन बीमा के सन्दर्भ में और रुपया 25,000/- सामान्य बीमा के सन्दर्भ में, से अधिक होने पर भुगतान चैक/बैंक ड्राफ्ट से करने की जगह इलेक्ट्रानिक क्लियारेंसे के जरिये करने को कहा है | भारत में बैंको की पहूँच को देखते हुए प्राधिकरण रुपया 50,000/- तक का भुगतान चैक/बैंक ड्राफ्ट से करने की अनुमति प्रदान करें |
v  समस्त बीमा कंपनियाँ यह सुनिश्चित करें कि उनके प्रत्येक शाखा कार्यालय से सम्बंधित लावारिस धन का विवरण उस शाखा में एक रजिस्टर में उपलब्ध हो जिसे कोई भी आम आदमी निवेदन पत्र देकर दस्तावेजों में सर्च कर सकें |
v  15 वर्ष से अधिक समय के लावारिस धन को समस्त बीमा कम्पनियाँ प्राधिकरण को हस्तांतरित कर दे, और इस तरह से संगृहीत बीमा धन का उपयोग प्राधिकरण आम जनता में बीमा के प्रचार-प्रसार के लिए करें |

न केवल बीमा उद्योग में बल्कि वित्तीय व्यवसाय में लावारिस धन की संख्या बहुत ही अधिक है | यदि संयुक्त रूप से जागरूकता अभियान चलाया जाय तो इस धन के वितरण में तेजी आएगी | उपरोक्त प्रस्तावित मॉडल को व्यवहार में लाने से आम जनता द्वारा कठिन परिश्रम से अर्जित धन उन्हें या उनके सम्बंधित को प्राप्त होगा | जिससे आम जनता में बीमा और लोक-प्रिय होगा | अभी हाल ही में प्राधिकरण द्वारा बीमा कंपनियों को निर्देशित “बीमा जागरूकता नीति” बन जाने से आम जनता को कई तरह की जानकारियाँ और मिलेगी, जिससे उनकी समझ न केवल बीमा में अच्छी होगी बल्कि बीमा सम्बंधित अधिकारों से भी वो अब जागरूक हो पायेगें |

Post a Comment

If you have any doubts, please let me know

और नया पुराने