How life insurance industry will able to return in the pace of Growth?
कैसे जीवन बीमा उद्योग तीव्र-गति विकास के रस्ते पर वापस होगा ?

बीमा का इतिहास उतना ही पुराना है जितनी कि हमारी सभ्यता. निसंदेह निजी जीवन बीमाकर्ता के इस व्यवसाय में आ जाने से बीमा का प्रचार प्रसार तीव्र गति से हुआ है तथा आम लोगों में इसके बारे में गहरी समझ का जन्म हुआ है. इस उपलब्द्धि के लिये भारत सरकार बधाई की पात्र है जिसने बीमा के त्वरित विकास एवं आम जनता के सम्मुख इसकी पहूँच बढाने के लिये इस व्यवसाय का निजीकरण किया और निजी कंपनियों को इस व्यवसाय में आने कि अनुमति प्रदान की. बीमा व्यवसाय की प्रगति वर्ष २००० से लेकर वर्ष दर वर्ष अप्रत्याशित रूप से होती रही परन्तु वित्तीय वर्ष २०१०-११ से इनके व्यावसायिक वृध्दि में ग्रहण स लग गया जिसका खामियाजा न केवल बीमा कंपनियों को उठाना पड़ रहा है बल्कि उससे जुड़े प्रत्येक लोगों को चाहे वह बीमा सलाहकार हो या बीमा धारक हो या फिर स्वयं भारत सरकार ही क्यों न हो.

जहाँ एक तरफ भारत कि आर्थिक विकास, बीमा का विकास न हो पाने कि वजह से सुस्त पड गया वही आज आम आदमी बीमा सलाहकारों/बीमा उत्पाद बेचने वालों एवं बीमा कंपनियों को संदेह की दृष्टि से देख रहा है. वजह चाहे जो हो पर खामियाजा सभी को उठाना पड रहा है. यदि इरडा द्वारा जरी उपलब्ध आकडों को देखा जाय तो (कैलेंडर वर्ष में) २०१०-२०११ में भारत कि कुल आबादी का ४.४० प्रतिशत ही लोगों का बीमा हुआ और यदि इसी दौरान औसत प्रति व्यक्ति प्रीमियम आय को देखा जाय तो वह रुपया ३००० के करीब था जो अपने आप में यह इंगित करता है कि अपने देश में बीमा की आपार संभावनाएं है.

यदि वास्तव में देखा जाय तो समस्त बीमा कंपनिया कुछ बातों को लेकर परेशान है जो उनके पक्ष में नही रहा है जिसकी वजह से उन्हें तरह-तरह कि समस्यायों का सामना करना पड़ रहा है. जो उनके विकास में बाधक सिद्ध हो रहा है. जीवन बीमा के सभी पहलुओ को समझाने के पश्चात कुछ प्रमुख बदलाव के जरुरत महसूस हो रही है और मुझे पूरा विश्वास है कि इस आगे दिये जाने वाले तथ्यों से आप सब एवं समस्त जीवन बीमा कम्पनियाँ सहमत होगी और दिये गये बदलाव के पक्ष में होंगी. ये बदलाव न केवल बीमा कंपनियों में नई उर्जा का संचार करेंगे बल्कि विकास कि गति के पुराने रस्ते पर ला देंगे जो न केवल बीमा कम्पनियाँ बल्कि समस्त उससे जुड़े प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लोगों के हित में होगा.

 Changes in Appointment Process of Life Insurance Advisors:- बीमा सलाहकारों के नियुक्ति में बदलाव लाकर उनकी प्रशिक्षण और परीक्षा कि आधुनिक व्यवस्था को मूल रूप से समाप्त करके जीवन बीमा सलाहकारों कि नियुक्ति सीधे तौर पर बीमा कंपनियों के विकास अधिकारी / विक्रय अधिकारी के हाथों में दे देनी चाहिये जो उनकी कुशलता के आधार पर उनका चुनाव बीमा उत्पाद के विक्रय के लिये करें. बीमा कंपनिया उन बीमा सलाहकारों के प्रशिक्षण के लिये समय-समय पर प्रबंध करेंगी और उसके लिये पूर्ण उतरदायी हो. इस व्यवस्था से न केवल रोजगार के नये अवसरों का आरंभ होगा बल्कि बीमा का विकास तीव्र गति से होगा. हां एक समस्या जरुर होगी कि इरडा कि आय का एक मुख्य जरिया अवश्य ही समाप्त हो जायेगा.

 Changes in Appointment process of Other Sale Channels:- कार्पोरेट अभिकर्ता, बीमा दलाल, सीधी विक्रय, बैंकास्योरेंस इत्यादि चैनल कि नियुक्ति का अधिकार सीधे बीमा कंपनियों के मुख्य कार्यालय को दे दी जाय और बीमा कम्पनियों के दिये गये नियमों के अधीन ये बिक्री के चैनल कार्य करें. जिससे इनकी संख्या के साथ साथ बीमा का विकास भी होगा. अभी इन बीमा प्रतिनिधियों को इरडा से लायसेंस प्राप्त होने में कई कई महीने लग जाते है.

 Changes in structure of ULIP policies:- इरडा द्वारा यूलिप में किया गया परिवर्तन कही न कही सेबी के दबाव में लिया गया परिवर्तन प्रतीत होता है जबकि यह सास्वत सत्य है कि बीमा उत्पाद आज के इस आधुनिकतम युग में भी बेचना बहोत कठिन कार्य है जिसके लिये बीमा सलाह्कारों को इनके विक्रय के लिये दिये जा रहे कमीशन दर को बदकर १० प्रतिशत किया जाना चाहिये जिससे इसकी पहूँच आम जनता तक हो सकें. ऐसा होने पर भी लंबी अवधि में बीमा धारक को अच्छा रिटर्न प्राप्त होगा. यूलिप उत्पाद का अपना अलग स्थान एवं खासियत है अतः इसे म्यूच्युअल फंड से लिंक करके न देखा जाय. पुराने यूलिप में बहोत सारे ग्राहकों ने अच्छा लाभ भी प्राप्त किया था.

 Changes in Investment pattern of Life Insurance funds:- बीमा कंपनियों को प्राप्त प्रीमियम आय को अपने ढंग से निवेश करने की आजादी होनी चाहिये जिससे बीमाकर्ता बीमा धारक को अच्छा रिटर्न दे सकें. इरडा द्वारा वर्तमान समय में लगाया गया नियंत्रण बिलकुल समाप्त कर देना चाहिये. इरडा को सिर्फ इनके निवेश पर निगाह रखनी चाहिये जिससे की आम जनता का पैसा सुरक्षित रहें. यदि ऐसा हो तो बीमा कंपनियों में अच्छा रिटर्न देने कि एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का जन्म होगा जिसका लाभ आम जनता को ही प्राप्त होगा.

 Changes in designing of Pension plans:- पेंशन उत्पाद को बनाने कि आजादी बीमाकर्ता को होनी चाहिये और वह उनपर लाभ को सुनिश्चित करें. आज २४ कंपनिया जीवन बीमा व्यवसाय में कार्यरत है जिसका लाभ अच्छा होगा ग्राहक उसका ही उत्पाद खरीदेगा. इरडा को इन उत्पाद में लाभ को निश्चित करने की कोई जरुरत नही प्रतीत होती जो वर्तमान में चल रही है.

 Changes in process of Approval of New Products:- अभी इरडा नये उत्पाद कि संस्तुति में अत्यधिक समय लगा देता है और इसके लिये कोई समय सीमा भी निर्धारित नही है. जिसका खामियाजा बीमा कंपनियों और बीमा के संभावित खरीददार को उठाना पड़ता है अतः इरडा को प्रत्येक स्थिति में नये उत्पाद की संस्तुति एक सप्ताह में दे देनी चाहिये.

 Stop the deduction of Service tax in Life Insurance industry:- जीवन बीमा व्यवसाय एक समाज सेवा है समाज सेवा में कर का कोई स्थान नही है अतः सेवा कर को पूर्ण रूप से जीवन बीमा व्यवसाय से समाप्त कर देना चाहिये. चाहे वह बीमा धारक से हो या बीम सलाहकार से या बीमाकर्ता से. यहाँ लोग अपनी भविष्य के जोखिम का बीमा करवाने आते न की महंगी गाड़ी टीवी इत्यादि उपभोग के लिये खरीदने.

 Changes in Tax Benefits of Life Insurance policies:- अभी भारत सरकार द्वारा बीमा प्रीमियम पर १ लाख तक की कर छूट है जिसमे म्यूच्युअल फंड, पब्लिक प्रोविडेंट फंड, पोस्ट आफिस की योजनाएं भी सम्मलित है. जबकि जीवन बीमा इन सबसे हट करके है और अत्यधिक महत्वपूर्ण भी अतः भारत सरकार को चाहिये की बीमा के लिये अलग से रूपये १ लाख की कर में छूट मिलनी चाहिये वर्तमान में मिल रही छूट के आलावा जिससे लोग अत्यधिक बीमा करवाएं, और सरकार को प्रत्यक्ष रूप से न सही पर अप्रत्यक्ष रूप से आम जनता का धन देश के विकास में लगाने को प्राप्त होगा साथ ही बीमा का विकास भी.


 Withdraw the rules of AML in Life Insurance Sector:- लोग बीमा से अपने जीवन के जोखिम को सुरक्षित करवाने आते है न की काले धन को सफ़ेद करने अतः जीवन बीमा व्यवसाय से AML की अनिवार्यता को समाप्त कर देना चाहिये.

 Relaxation in the target of micro insurance and Group Insurance Sector:- जीवन बीमा कंपनियों को सामाजिक एवं ग्रामीण क्षेत्र में जीवन बीमा करने के लिये बाध्य नही किया जाना चाहिये बल्कि जीवन बीमा की पहूँच सामाजिक पिछड़े और ग्रामीण पिछड़े लोगों तक हो इसके लिये सरकार को निजी जीवन बीमाकर्ता के साथ प्रीमियम अनुदान देना चाहिये जिससे निजि बीमाकर्ता खुद आगे आये इन क्षेत्रो के लोगों का बीमा करने के लिये.

 Changes in Approval of Opening of New Branches of Insurers:- जीवन बीमाकर्ता के पास पूरा अधिकार हो की वह कही भी देश में नये कार्यालय आरम्भ कर सकें जिससे वो ग्राहक को अत्यधि सरल तरीके से सेवा दे पाये और बीमे का विकास भी, हाँ किसी भी कार्यालय के आरंभ की सूचना इरडा को बीमा कर्ता को देनी होगी और कार्यालय समाप्त करने के लिये इरडा की लिखित अनुमति अवश्य ही प्राप्त करनी होगी.

 Policy surrender time should be minimum 10 years for all plans:- सभी तरह के जीवन बीमा उत्पाद में पॉलिसी को समर्पण करने का न्यूनतम समय १० वर्ष कर देना चाहिये जिससे बीमाकर्ता को लंबी अवधि तक आम जनता का पैसा निवेश करने की छूट मिल सकें. जिससे वह आम जनता को अधिक लाभ भी प्रदान कर सकें. चूकी बीमा लंबी अवधि का होना चाहिये ऐसे में १० वर्षों से कम के जीवन बीमा उत्पाद पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिये और न्यूनतम अवधि १० वर्ष रखनी चाहिये.

 Delay in claim payment Customer also will responsible:- कई बार यह देखा जाता है की बीमा दावों का भुगतान ग्राहक की वजह से रुका रहता है क्योकि वह समय पर जरुरी प्रपत्र नही देता और ऐसे में देरी होने पर बीमा कंपनिया दावे से ६ माह पश्चात ब्याज देने पर बाध्य है जबकि ग्राहक को भी इसके लिये बाध्य किया जाना चाहिये की सारे प्रपत्र की पूर्ति वह समय से कर दे अन्यथा दावे के भुगतान में हो रही देरी के लिये वह खुद जिम्मेदार होगा.

 Stop in charging unnecessary penalties from Insurers: - इरडा बीमा कंपनियों की सरंक्षक है और यदि बीमा कंपनिया कोई गलत कार्य करती है तो इरडा उन पर जुर्माना लगाती है और उस जुर्माने की राशि का उपयोग किस लिये करती है यह किसी को भी नही पता. इधर के कुछ वर्षों में जुर्माना भारी मात्रा में व भारी धनराशि का जीवन बीमा कंपनियों पर लगाया गया है. इरडा को चाहिये की यदि बीमाकर्ता गलती करता है तो उसकी जिम्मेदारी खुद इरडा ले. क्योकि वह १२ वर्षों में यदि बीमा कंपनियों को सही ढंग से नही नियंत्रित कर पाया तो कही न कही नियंत्रक के रूप में स्थापित इरडा पर प्रश्न चिन्ह लगते है. बीमा कंपनिया जुर्माना देने भर से अपनी कार्य प्रणाली में सुधार कैसे लायेंगी इसकी क्या ग्यारंटी है. यदि जुर्माना लगाना अत्यंत ही जरुरी हो तो बीमा कंपनियों को उतनी राशि तक का प्रीमियम स्वयं गरीब लोगों के जीवन बीमा के लिये भरने के लिये बाध्य किया जाना चाहिये, या यू कहें की जुर्माना राशि तक गरीब लोगों का बीमा बीमाकर्ता द्वारा मुफ्त किया जाना चाहिये जिससे सही मायने में बीमा कंपनियों के कार्य प्रणाली में सुधार के साथ-साथ समाज के गरीब तबके के लोगों को भी इसका लाभ मिलेगा.

यदि उपरोक्त परिवर्तन यथाशीघ्र कर दिये जाये तो निसंदेह बीमा व्यवसाय में जबरजस्त क्रांति आ जायेगी और बीमा व्यवसाय अब तक स्थापित सभी कीर्तिमान को ध्वस्त करके नित नये कीर्तिमान स्थापित करेगा. तभी सही मायने में जीवन बीमा का लाभ समस्त आम जनता को मिल पायेगा. यहाँ तक की बीमा कंपनियों को विदेशी पूंजी की सीमा को बढाने की आवश्यकता भी समाप्त हो जायेगी साथ ही उन्हें शेयर बाजार में आने की जरुरत भी. इरडा जीवन बीमा कंपनियों पर पहले से अधिक एकाग्रता से अपनी वाच बनाये रख पायेगा और निजीकरण का वास्तविक लाभ बीमाकर्ता के माध्यम से आम जनता को मिल पायेगा जिससे न केवल बेरोजगारी की समस्या समाप्त होगी बल्कि स्थिर मुद्रा का सही उपयोग राष्ट्र के विकास में होगा. ऐसा कर देने से और नये जीवन बीमा कर्ता देशी ए़वं विदेशी का इस क्षेत्र में आगमन होगा.

यदि आप मेरे उपरोक्त दिये गये विचारों से सहमत है तो आम आदमी के हितों को सुरक्षित करने के लिये एवं मेरा हौसला बढाने के लिये मेरे इस लेख को अधिक से अधिक लोगों तक शेयर करे जिससे हम सब की आवाज हमारे वित्त मंत्री और इरडा के उच्च अधिकारियो तक अवश्य ही पहूँच सकें. शायद ये तथ्य उन्हें उपरोक्त बदलाव पर सोचने के लिये मजबूर करें. आप में से कुछ लोग मेरे इस तथ्य से शायद सहमत न भी हो ऐसे में यदि आप अपने तथ्यों से मुझे अवगत करायेगे तो मुझे दिल से खुशी होगी. (drajaykrmishra@gmail.com)

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