11 दिसंबर 2013 को भारतीय उच्चतम न्यायालय के दिये गये निर्णय से पूरे देश में यह चर्चा फिर से बढने लगी है कि समलैंगिकता को सामाजिक मान्यता दी जाय कि नही, बहोत सारे लोग इसके पक्ष में है और बहोत सारे लोग इसके विपक्ष में | इसके पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने वर्ष 2009 में समलैंगिकता को वैधानिक अधिकार देकर देश में खलबली मचा दी थी | न्यायधीश जी. एस. सिंघवी और यस. जे. मुखोपाध्याय जी ने यह ऐतिहासिक पैसला दिया हुआ है | इस फैसले के अंतर्गत उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि समलैंगिकता गैर क़ानूनी है और इसपर सजा के तौर पर आजीवन कारावास भी हो सकता है | देश के सारे समाचार पत्र समाचार चैनल इसी खबर से पटे पड़े है |
प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन का प्रमुख हिस्सा सिखने में व्यतीत कर देता है और वह मृत्यु प्राप्त करने के पूर्व तक कुछ न कुछ नया सीखता रहता है | पिछले दो दशको से यदि देखा जाय तो अब लोगों कि कई तरह कि आजादी चाहिये खास कर नई जनरेशन को | आज वह अनेको मामलो में अपने माँ – बाप को भी हस्तक्षेप नही करना देना चाहते उन्हें लगता है वो जो कर रहे है वही सही है बाकी सब गलत | जो लोग उच्चतम न्यायालय के इस फैसले का विरोध कर रहे है उनसे हम पूछना चाहते है कि यदि आप के माँ बाप भी समलैंगिक होते तो क्या आप का जन्म हो पाता ? आज समाज इतना निचे गिर चूका है कि उसे सिर्फ अपनी खुशी में खुशी मिलती है और अपने गम में गम का एहसास होता है | समाज में मूलभूत मान्यताएं, न्याय, दूसरों कि भावनाओ की तो कोई कद्र ही नही | हमारे समाज में जो चल रहा है उसके लिये हम सब मिलकर जिम्मेदार है जो हमारे बच्चों कि अनावश्यक मांग को बचपन से ही पूरा करते चले आते है और अंत में स्थिति ऐसे भी आ जाति है कि प्राकृतिक गतिविधिया भी उन्हें गलत लगने लगती है |
यदि हमारे धर्म ग्रंथो कुरान बाइबल आदी का गहन अध्यन करें तो उसमे यह स्पष्ट प्रमाण मिलते है कि जीवन को चलने के लिये परस्पर विरोधी लिंग से ही दुनिया चलाई जा सकती है और यह प्राकृतिक रूप से मान्य भी है, पर आज दुनिया में कुछ सनकी लोग ऐसे भी है जीन्हे वो सही लगता है जो वो कर रहे है | धर्म ग्रन्थ पुराण कुरान बाइबल के सारी बाते उन्हें निरर्थक लगती है | हमें यह देखकर अत्यंत आश्चर्य होता है कि ऐसे लोग बिना किसी झिझक के आम जनता के बीच बिभिन्न माध्यमो से अपनी गलत बात को सही साबित करतें है | हद तब हो जाती है जब कुछ ऐसे लोग जिनकी समाज में उनके योगदान से खास अहमियत है वो उनको समर्थन देते है |
समलैंगिक रिश्तों में विश्वास करने वाले लोगों को कही से भी स्वस्थ्य मनुष्य नही कहा जा सकता है ऐसे व्यक्ति मानसिक रोगी होते है जिन्हें सनक होती है सिर्फ गलत चीजों को करने की | यदि हम बैज्ञानिक विचार धारा इसमें शामिल करें तो वो भी इस बात कि पुष्टि करते है कि समलैंगिकता से अनेको बिमरियो का जन्म होता है जो आम जिवन जिने के लिये खतरनाक है | यह अत्यंत ही शर्म पूर्ण बात है कि हम अपनी मूल मान्यताओ पर भरोसा न कर विदेशियों के कुकर्मो को धारण करतें चले जा रहें है | आज हम इतनी तरक्की कर चुके है पर सामाजिक मूल मान्यताओं को देखें तो वो विलुप्त सी होती चली जा रही है | आज न सामूहिकता कि भावना रह गयी है न सयुंक्त परिवार कि भावना आज सब अपने में ही खुश रहना चाहते है, जिसका परिणाम इस तरह कि सामाजिक बीमारियाँ उत्पन्न होना है |
हम सब के इन दोनों न्यायधीशों के इस निर्णय के लिये धनयवाद ज्ञापित करना चाहिये जिन्होंने हमारे सासंकृतिक आधार को और मजबूती प्रदान की है | हाँ कुछ लोगों कि सोच को देखते हुये यह आकलन भी लगाया जा सकता है कि शायद हम ऐसे खाई में आने वाले दिनों में गिरने जा रहें है जहाँ से फिर वापस आना नामुमिकन होगा | ऐसे लोगों के द्वारा एक आम बात सुनने को मिल जायेगी कि हमारा सविधान हमें बोलने की आजादी देता है, अरे भाई आज जरुरत सविधान के न्यामो को दोहराने कि नही है बल्कि अपने अंतरात्मा में झाकने की है और सही गलत में फर्क करने की |
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