प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ.डी.आई.) के मुद्दों पर जहाँ कांग्रेस सरकार को चारो तरफ से आलोचना झेलनी पड़ रही है और नौबत यहाँ तक आ गयी कि उनके सबसे विश्वसनीय सहयोगी ने उनका साथ छोड़ दिया. ऐसी स्थिति में जहाँ सरकार ने अपने तेवर कड़े करके यह साफ़ संकेत भी दे दिया है कि चाहे कोई उनके साथ रहे या ना रहे उन पर कोई फर्क नही पड़ता, तो आम जनता को उसके पीछे का कारण सिर्फ उत्तर प्रदेश की दो पार्टियां ही समझ में आती है समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी जिनके पास क्रमशः २२ और २१ सांसद है. देश के सबसे बड़े राज्य के प्रतिनिधि होने के बावजूद समाजवादी पार्टी ने आम जनता के हितों को ताक पर रख कर सरकार को समर्थन जारी रखा है और उनका बयाँन यह सुनने को मिल रहा है कि वह भारतीय जनता पार्टी को, अगर उनके लफ्जो में बात करें तो “सांप्रदायिक ताकतों को रोकने के लिये उन्होंने सरकार को समर्थन दिया हुआ है” जो निसंदेह जन विरोधी है.
हाल के दिनों में केन्द्र सरकार ने विदेशी निवेश को लेकर बड़े फैसले लिये है और उनके अनुशार ये फैसले इस लिये जरुरी थे कि भारतीय अर्थव्यस्था को और मजबूती के साथ-साथ तेज गति पर लाया जा सके और देश में रोजगार के साधनों के साथ-साथ लोगों को कम लागत पर अच्छी उपभोग कि वस्तुएँ एवं सेवाएँ प्राप्त हो सकें. इन मुद्दों पर जहाँ केन्द्र सरकार चारो तरफ से घिरी दिख रही है वही आम जनता इस बात से परेशान है कि जो चीजे बिना विदेशी निवेश के सरकार के नियंत्रण में है उनके भी दाम उनकी पहुँच से न केवल बाहर होते चले जा रहें है बल्कि अब उनके लिये दो वक्त की रोटी की भी व्यवस्था करने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही है ऐसे में वो विदेशी निवेश से क्या उम्मीद कर सकते है. कुछ लोगों का तो यहाँ तक कहना है कि इस देश में अब गरीबो और आम जनता के लिये कुछ बचा ही नही. अर्थव्यस्था के जानकर एक सज्जन ने इन मुद्दों के बारे में तो यहाँ तक कहा कि जो लोग ए.सी. कार्यालयों में बैठकर देश को चलाते है वो आम आदमी की समस्या कहाँ से समझ सकेंगे. इससे भी बड़ी बिडम्बना है कि एक आम आदमी को अपना घर चलाने में जहाँ २० रुपये ही पर्याप्त है वही देश के प्रधान मंत्री जी के डिनर पार्टी में प्रति व्यक्ति ७ हजार से ज्यादे भोजन पर खर्च किये जाते है. फिर देश की अर्थवस्था कैसे मजबूत होगी. क्या यही जमीनी हकीकत है इस देश की, कि आजादी के दशको बाद हमारा विकास सिर्फ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर ही सिमट कर रह गया है. क्या वास्तव में सरकार के इस पहल से देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी ?
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एक ऐसा जरिया है जिसके माध्यम से एक देश की कंपनी दूसरे देश में कार्य करने का मौका प्राप्त कर लेती है, यदि सरल शब्दों में बात की जाय तो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से आशय विदेशी कंपनियों को अपने देश में कार्य करने के लिये खुला आमंत्रण देना है. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से फायदा किसे होगा देश को आम जनता को या फिर किसी और को यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है पर कुछ आँकड़े वैश्विक स्तर पर उपलब्ध है जो यह निसंदेह यह स्पष्ट कर देंगे कि क्या भारत सरकार का यह फैसला देश हित में है या अन्य किन्ही देश को लाभ पहुचाने के लिये ऐसा किया गया है.
“संयुक्त राज्य अमेरिका दुनिया भर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से लाभ प्राप्त करने वाला सबसे बड़ा देश है. वर्ष २०१० में उसने देश कि कुल आय का ८४ प्रतिशत लगभग १९४ अरब डालर ८ देशो में कार्य करके (स्विट्जरलैंड, ब्रिटेन, जापान, जर्मनी, फ़्रांस, लक्समबर्ग, नीदरलैंड, और कनाडा) प्राप्त किया है. अमेरिका के पश्चात कोई अन्य देश है जिसे भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति से फायदा होगा तो वो है चाइना जिसने पिछले कई वर्षों से विदेशी व्यापर पर ध्यान केंद्रित किया हुआ है.”
भारत दुनिया के उभरते हुये और तेजी से विकासशील देशो में से एक है यही वजह है कि विदेशी कंपनियों को यहाँ का बाजार बहुत लुभावना लग रहा है. सयुंक राज्य अमेरिका की इस देश के बाजार पर बहुत पहले से नजर केंद्रित है. और देश की सरकार ने उसकी ख्वाहिसो को एक साथ कई क्षेत्र में विदेशी निवेश को आमंत्रण देकर पूरा कर दिया है. १४ सितम्बर २०१२ से लेकर अब तक भारत सरकार ने विदेशी कंपनियों को रुझाने में कोई कसर नही छोड़ी है, विमानन उद्योग में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ४९ प्रतिशत तक, प्रसारण क्षेत्र में ७४ प्रतिशत तक, मल्टी ब्रांड रिटेल में ५१ प्रतिशत तक और एकल ब्रांड रिटेल में १०० प्रतिशत तक के साथ-साथ बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा २६ प्रतिशत से बढाकर ४९ प्रतिशत जो की पेंशन के क्षेत्र में भी लागू होगा करके देश के लगभग सभी प्रमुख व्यावसायिक कार्यों में विदेशी निवेश को अनुमति देने की शुरुआत कर दी है.
व्यापार की यह सार्वभौमिक सच्चाई है कि “बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों को खा जाती है” इतिहास गवाह रहा है कि जब विदेशी कंपनिया जिस भी देश में जाती है वह छोटे व्यवसाइयों को समाप्त करने के लिये प्रारम्भ में लागत से भी कम कीमत पर वस्तुओ एवं सेवाओ का विक्रय करती है, क्योंकि उनमे घाटा वहन करने की असीम क्षमता होती है और जब उनके प्रतियोगी उस बाजार से बिलकुल समाप्त हो जाते है और उनका एकाधिकार स्थापित हो जाता है तो वो मनमाने ढंग से वस्तुओ एवं सेवाओं की कीमते निर्धारित करती है.
पर इस स्थिति में यदि देखा जाय तो कांग्रेस की दशो उंगलिया घी में है समाजवादी और बहुजन समाजवादी दोनों उनके साथ में है ऐसे में आने वाले दिनों में सरकार और कड़े निर्णय ले कर लोगों को और हैरत में डाल सकती है. हम सब इस बात के गवाह बनकर रह जायेगे. स्थिति ऐसी आने वाली है कि हम अपने ही घरों में विदेशियों के गुलाम बन कर रह जायेंगे. एक गुलामी से तो बड़ी मुश्किल से हमें आजादी मिली है फिर से हम नये गुलामी की राह पर अग्रसर हो रहें है जिसे हम आर्थिक गुलामी कह सकते है. इतनी सम्पदा, श्रम शक्ति होने के बावजूद हमें अब सिर्फ विदेशी निवेश और उनकी नीति पर निर्भर रहना पड़ेगा. क्या कांग्रेस सरकार यह बता सकती है कि जब विदेशी कंपनिया हिन्दुस्तान में काम करेगी तो क्या वह अपने लाभ का हिस्सा अपने देश में नही ले जायेगी ?.
केन्द्र सरकार विदेशी निवेश के पक्ष में जो दलीले दे रही है उनकी प्रमुख बातों को भी समझाना उतना ही महत्वपूर्ण है हो सकता है आप में से कुछ लोग इस बात के पक्षधर हों की विदेशी निवेश की अनुमति दे दी जाये. यहाँ पर कुछ विवरण इस उद्देश्य से प्रस्तुत है कि आप खुद अपने विवेक से यह निर्णय ले कि विदेशी निवेश के लाभ अधिक महत्वपूर्ण है या विदेशी निवेश से नुकसान किस बात का हमें ध्यान रख कर पक्ष या विपक्ष में अपनी राय रखनी चाहिये.
विदेशी निवेश के लाभ :-
यू.पी.ये. सरकार के अनुशार ३ वर्षों में १० लाख लोगों को रोजगार की उम्मीद
अरबो डालरो का निवेश भारत मे अगले कुछ वर्षों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के जरिये अनुमानित
विभिन्न देशो से आयात - निर्यात में वृद्धि
कृषि से जुड़े लोगों को उनके माल की अच्छी कीमत मिलेगी
वित्तीय सेवाओं का विस्तार आम जनता के बीच तक
विदेशी निवेश के नुकशान :-
लाभ वितरण, निवेश अनुपात अभी तक तय नही
एक आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को कीमत बढने से समस्या का सामना करना पड़ सकता है
खुदरा व्यवसायी की समाप्ति
बाजार के स्थान काफी दूर होने से यात्रा व्यय बढना
श्रमिक सुरक्षा एवं नीतिया स्पष्ट तौर पर उल्लेखित नही
मुद्रास्फीति में वृद्धि के संभावना
भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से देश आर्थिक गुलामी की रह पर अग्रसर
बेरोजगारी की समस्या, एवं एकाधिकार की समस्या
यदि उपलब्ध आंकड़ो को देखा जाय तो विदेशी निवेश की अनुमति से देश से ज्यादा विदेशी कंपनियों को लाभ प्राप्त होगा. हमारे देश में उपलब्ध प्रकृति संसाधनों का न केवल वो दोहन करेंगे बल्कि हमारा मूल्य भी निर्धारित करेगें. इस फैसले से यह जरुर संभव है कि कुछ कार्पोरेट घरानों को अच्छा लाभ जरुर मिल जाये पर जमीनी हकीकत यही है कि आम जनता को इसका लाभ नही मिलने वाला. पेंसन और बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और अधिक कर देने से आम आदमी की अब मेहनत की कमाई भी सुरक्षित नही रह पायेगी. यदि हाल की अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संकट को देखा जाय तो भारत इस लिये सुरक्षित था या यू कहे उस पर प्रभाव नही पड़ा क्योकि उसकी स्वदेशीय वित्तीय व्यवस्था में विदेशी हिस्सेदारी नही दी थी. अमेरिका अपनी वित्तीय स्थिति के हाल के संकटो से उबरने के लिये इन सब तकनीकियों का सहारा ले रहा है जिसे सिर्फ और सिर्फ उसे ही लाभ प्राप्त होगा. मजे की बात तो यह है कि हमारी सरकार देश हितों की बात कर स्वयं विदेशी ताकतों के हात देश को नीलाम कर रही है.
भारतीय बाजारों में आने वाले दिनों में सिर्फ विदेशी कंपनियों का बोलबाला होगा क्योकि विदेशी कंपनिया जाब भारत आएँगी तो उनकी प्राथमिकता सिर्फ यह होगी कि वो बाजार से छोटी एवं मझौली कंपनियों को न केवल बंद करवा देंगी बल्कि किसी भी कीमत पर लाभ कमाना भी होगा साथ ही श्रमिकों का भी जम कर शोषण करेंगी. यदि ताजा तरीन उदाहरण देखें तो बीमा क्षेत्र में अभी तक २६ प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति के साथ कई विदेशी कम्पनियाँ भारत आकार बीमे का कार्य आरम्भ किया और आप सब लोगों को जानकर यह आश्चर्य होगा की यूलिप बीमा उत्पाद् के माध्यम से कंपनियों ने आम जनता की मेहनत की कमाई को जमकर लुटा है यह विदेशी कंपनियों की विशेषज्ञता ही थी कि आपके द्वारा जमा प्रीमियम का कई कई बीमा पालिसियों में ८० प्रतिशत तक कम्पनी खर्चो में काट लेती थी. यदि इस पूरे घटनाक्रम को देखा जाय तो यूलिप के माध्यम से अरबो रूपये का आम जनता को नुकशान हुआ है
अभी भी समय है देश को आने वाली इन मुसीबतों से बचाने का, लेकिन ये दोनों पार्टियाँ क्षणिक लाभ प्राप्त करने के लिये इतिहास के सबसे काले दिन को लिखे जाने में अपना पूर्ण सहयोग दे रही है. जिसका खामियाजा आम आदमी ही नही उच्च वर्ग को भी आने वाले दिनों में पिस-पिस कर चुकाना होगा. कांग्रेस के कई फैसले देश विरोधी और जन विरोधी रहें है जिनका खामियाजा लोग आज भी उठा रहे है. यदि देखा जाय, आजादी के पश्चात सबसे ज्यादा समय तक देश में शासन काल कांग्रेस का ही रहा है और इस शासन काल में कांग्रेस देश कि एक भी बुनियादी व्यवस्थाओ में सुधार नही कर सकी और अब उसे सिर्फ एक ही माध्यम दिख रहा है विदेशी निवेश, आने वाले दिनों में सरकार कई और क्षेत्रो में विदेशी निवेश की अनुमति देगी यह उत्तर प्रदेश की दो पार्टियों ने सहयोग देकर स्पष्ट कर दिया है इन सभी पार्टियों को जनविरोधी फैसले लेने और उनके सहयोग करने का खामियाजा निसंदेह २०१४ में होने वाले चुनाव में चुकाना पड़ सकता है. इस पूरे घटनाक्रम में सब पार्टियों कि अलग-अलग भूमिका को देखा जाय तो ममता बनर्जी ने जो जन सहयोगी फैसले लिये है उन फैसलों ने जितना कांग्रेस को आम आदमी से दूर किया है, नरेंद्र मोदी कि दावेदारी को मजबूत किया है उसी कड़ी में प्रधानमन्त्री की दावेदारी में ममता को भी ला खड़ा किया है. ममता बनर्जी ने सरकार के साथ रह कर जिस तरह से जन विरोधी प्रत्येक मुद्दों का विरोध किया है वह सच में कबीले तारीफ़ है. पर क्या समाजवादी और बहुजन समाजवादी पार्टी देश हित को भी ताक में रखकर देश की अर्थव्यस्था के साथ खिलवाड़ करती रहेगी ? अगर मेरी माने तो बिलकुल करेगी और तब तक करेगी जब तक कि हम आप जाती धर्म मजहब से ऊपर उठकर देश हित में सही व्यक्ति के पक्ष में सही पार्टी के पक्ष में मतदान नही करते तब तक यह ऐसी ही चलता रहेगा और हम आप सुबह चाय कि चुस्कियो के साथ ऐसी खबरे पढ़ने के आदी हो जायेगे. इन सब मुद्दों में एक कटु सत्य यह भी है कि इस सारे फैसलों से सिर्फ विदेशी कंपनियों और वहाँ की सरकार को लाभ होने वाला है जिनकी चर्चा दूर दूर तक नही हो रही है.
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubts, please let me know