Dr. Ajay Kumar Mishra
(PhD, MBA, M.COM, AIII)
किसी भी उद्योग का विकास तभी संभव हो पाता है जबकि उस उद्योग को संरक्षित करने वाला नियामक अपनी भूमिका का सही रूप से संपादन करें. और उस उद्योग को सही दिशा एवं कारोबारी माहौल प्रदान करके उसकी उत्रोत्तर वृद्धि के लिये उस देश कि आधारभूत सरंचना के अनुरूप कार्य करें. यदि वह ऐसा करने में सफल होता है तो निश्चित रूप से देश में उपलब्ध संसाधनों के दोहन के साथ साथ विकास संभव है. इसके ठीक विपरीत देखा जाय तो यदि नियामक ऐसा करने में असफल होता है तो परिणाम अवश्य ही चिंता जनक होते है जो कहीं न कहीं देश के आर्थिक विकास में बाधक सिद्ध होते है. एक कदम और आगे की बात करते है यदि कोई नियामक ऐसी गतिविधि करता है जो प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से उस उद्योग के हित में न हो तो आप क्या कहेंगे ? जी हा यहाँ बात हो रही है देश के प्रमूख नियामकों में से एक बीमा बिनियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDA) कि जिसने देश कि प्रमुख एवं तेजी से बढने वाली जीवन बीमा उद्योग की गति पर ब्रेक स लगा दिया है और स्थिति में सुधार कि कोई झलक भी दिखाई नही पड़ रही है. आपमे से कुछ लोगों को मेरे ये सारे शब्द, शब्दों के बाण से प्रतीत हो रहे होंगे, पर वास्तव में जमीनी हकीकत यही है और यह सिर्फ हम नही कह रहें आगे जो भी तथ्य एवं आँकड़े प्रस्तुत करेंगे वो इस बात कि पुष्टि जरुर कर देंगे कि “क्या बीमा उद्योग को गर्त में ले जाने कि हो रही गहरी साजिश ?.
किसी भी तथ्य आंकडो एवं हकीकत को दर्शाने से पहले यह जानना अत्यंत ही आवश्यक है कि बीमा बिनियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDA) कौन है और किस तरह से उसकी प्रत्येक छोटे बड़े निर्देशों ए़वं नियमों का प्रभाव बीमा कंपनियों एवं देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है. वर्ष २००० के पूर्व जीवन बीमा क्षेत्र में भारतीय जीवन बीमा निगम का अधिपत्य था और कई वर्षों से यह कोशिश जारी थी कि निजी क्षेत्र को भी इस व्यवसाय में आने की अनुमति दी जाय. विभिन्न कमेटी के सुझावो के आधार पर भारत सरकार ने बीमा बिनियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDA) का गठन किया, जिसकी जिम्मेदारी है कि बीमा उद्योग के विकास एवं ग्राहकों के हितों को सुरक्षा प्रदान करें, एवं कार्यों में प्रमुख रूप से निजी क्षेत्र कि जीवन बीमा कंपनियों को अधिनियम के अधीन पंजीकरण का प्रमाण पत्र जारी करें और उनके साथ मिलकर देश में जीवन बीमा व्यवसाय का प्रचार प्रसार के साथ साथ बीमा की पहुँच को आम लोगों तक बढाये. यानि की बीमा बिनियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDA) सीधे तौर पर भारत सरकार के अधीन रहकर कार्य करता है एवं बीमा कम्पनियों के नियंत्रक के रूप में स्थापित है. बीमा कम्पनियां प्रत्येक कार्य चाहे छोटा हो या फिर बड़ा इन्हीं के दिशा निर्देशों एवं अधिनियमों के अंतर्गत रह कर सम्पादित करती है. यहाँ तक कि जीवन बीमा कंपनिया एक ब्रांच कि भी अपनी मर्जी से शुरुआत नही कर सकती. और नियमों निर्देशों के पालन में कोई भी त्रुटि पाये जाने पर इरडा द्वारा जुरमाना भी लगाया जाता है. यदि सरल शब्दों में समझा जाय तो यह ठीक उसी तरह कार्य करता है जिस तरह रिजर्व बैंक, बैंको के लिये, सेबी मुचुअल फंड के लिये एवं ट्राई मोबाईल कंपनियों के लिये.
पिछले कुछ वर्षों के इरडा के जारी किये गये नियमों का परिणाम देखा जाय तो निःसंदेह यह कहा जा सकता है की इरडा ने चाहे जिस भी उद्देश्य के साथ ये परिवर्तन किये हो पर इन परिवर्तनो का परिणाम प्रतिकूल ही देखने को मिला है जो कही न कही बीमा उद्योग कि तरक्की में बाधक सिद्ध हुआ है. आइये देखते है इरडा द्वारा जारी किये गये नियम और बीमा कंपनियों के विकास पर उसका प्रभाव.
इरडा द्वारा जीवन बीमा अभिकर्ताओं के लिये किया गया परिवर्तन:- जीवन बीमा अभिकर्ताओ की न्युक्ति कि प्रक्रिया में बदलाव (२३ दिसंबर २००९ से विभिन्न परिवर्तन) – प्रमुख परिवर्तन निम्नलिखित किये गये – १- पैन कार्ड कि अनिवार्यता नये एवं पुराने अभिकर्ताओं के लिये २- बीमा अभिकर्ताओं के चयन के लिया अनिवार्य परीक्षा पाठ्यक्रम को परिवर्तित कर के चार्टर्ड इंश्योरेंश इंस्टिट्यूट लन्दन द्वारा नया पाठ्यक्रम लाना. ३- लिखित परीक्षा के स्थान पर कंप्यूटर द्वारा परीक्षा अनिवार्य किया जाना. वित्तीय वर्ष २०१०-११ में कुल १०.४१ लाख अभिकर्ता हटाये गये जबकि उसी वित्तीय वर्ष में सिर्फ ७.०२ लाख ही नये जीवन बीमा अभिकर्ता जीवन बीमा कम्पनियाँ जोड़ पायी थी. वित्तीय वर्ष के आरंभ में जीवन बीमा उद्योग में कुल २९.७८ लाख जीवन बीमा अभिकर्ताओ में से वित्तीय वर्ष के अंत तक २६.३९ लाख ही बीमा अभिकर्ता बचे रह पाये. वित्तीय २०११-१२ के पहले तीन तिमाही (अप्रैल से दिसंबर) में ४.७१ लाख अभिकर्ता हटाये गये जबकि इसी अवधि में सिर्फ २.०५ लाख अभिकर्ता हीजोड़े गये. लाइफ काउन्सिल के अनुशार ३१ मार्च २०१२ तक सिर्फ २३.४६ लाख ही अभिकर्ता बचे है.
इरडा द्वारा पेंशन प्लान में किया गया परिवर्तन:- यदि पेंशन उत्पाद कि बात की जाय तो इरडा यह चाहता है कि जीवन बीमा कम्पनियाँ न्यूनतम भुगतान वापसी कि ग्यारंटी, यहाँ तक कि यदि पॉलिसी अवधि में पॉलिसी सरेंडर कर दी जाय तो भी, बीमा कम्पनियाँ ग्राहक को अवश्य प्रदान करें. यधपि यह बीमा लेने वालों के हित में है पर बीमा कंपनियों के लिये इस तरह का उत्पाद बनाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है यही कारण है कि बहुत सी कम्पनियाँ पेंशन उत्पाद ग्राहकों के लिये लाना ही नही चाहती है और आज बाजार में पेंशन उत्पाद किसी के पास भी उपलब्ध नही है कही न कही यह भी मुख्य वजहों में से एक है जो जीवन बीमा व्यवसाय को व्यापक रूप से प्रभावित कर रहा है और उसकी वृद्धि में रुकावट भी.
इरडा द्वारा यूलिप प्लान में किया गया परिवर्तन:- हालांकि यूलिप में किया गया परिवर्तन ग्राहको के हित में है पर कही न कही यह कदम उठाने में इरडा ने बहुत देर कर दी. अगर यू कहा जाय कि बीमार कि दवा तब करनी चाहिये जब बीमारी का पता चले और अगर बीमारी का पता चलने के बावजूद बीमार कि मृत्यु के समय में इलाज किया जाय तो आप क्या कहेगें ?. ठीक इरडा ने भी ऐसा ही किया जब वास्तव में उसे सही कदम उठाने चाहिये थे यूलिप उत्पाद को लेकर तब उसने नही उठाये. और जब उठाये तो वह प्रभावशाली साबित होने के बजाय लोग उन्हें लेना तो दूर उनके बारे में सुनना भी नही चाहते. और ऐसा इस लिये है कि बहोत सरे ग्राहकों को यूलिप उत्पाद में बहोत घाटा हुआ है. अगर यूलिप पालिसियों में ग्राहकों को हुये घाटे को देखाजाय तो यह देश में हुये सभी घोटालों से बड़ा होगा. और इस घोटालों को राशि को बीमा कंपनियों ने जम कर उपयोग इरडा कि सहमति पर किया है. एक निजी बीमा कपंनी का बीमा उत्पाद नये नियम आने के पहले था जिसमे ग्राहक द्वारा दिये गये प्रीमियम का सिफ २० प्रतिशत के भाग का नैव जारी होती थी शेष ८० प्रतिशत बीमा कंपनी विभिन्न खर्चो के रूप में जब्त कर लेती थी. आप ही सोचिये उस ग्राहक का पैसा लाभ देने के बजाय कई वर्षों तक जितना उसने निवेश किया था उतना होना भी शायद मुश्किल होगा. इस तरह कि गलत हरकतों के लिये इरडा भी उतनी ही जिम्मेदार है जितनी कि बीमा कंपनिया क्योंकि इरडा ही उत्पाद को संस्तुत करती है बीमा कंपनियों को आम लोगों तक उत्पाद ले जाने और विक्रय के लिये.
इरडा द्वारा लगाया जा रहा बीमा कंपनियों पर जुर्माना :- क्या बीमा कंपनियों द्वारा नियमों कि पूर्ति कराने का एक ही साधन है इरडा के पास वो भी सिर्फ जुर्माना लगाना ? विगत के कुछ वर्षों में इरडा ने बीमा कंपनियों पर बहुत ही अधिक बार और अधिक धनराशि का जुर्माना लगाया है जो कही न कही बीमा कंपनियों कि व्यावसायिक गतविधियो को प्रभावित कर रहा है. इरडा कि इस गतिविधि को देखकर तो यही लगता है कि वह अपना पैसा बढाने में लगी है. शायद उसको इस बात का भी आभास नही कि बीमा कंपनिया पैसा कहा से लाती है कही न कही वह पालिसीधारक का ही पैसा होता है जो इरडा के पास जाता है. पर इरडा तो धन बनाने में व्यस्त है. जहाँ वास्ताव में ग्राहकों के हितों को देखना चाहिये वहाँ इरडा देखना सुनना एवं यहाँ तक कि कुछ कहना भी भूल जाता है. उसे भी चाहिये तो सिर्फ पैसा तरीका चाहे जो भी हो. और उसके लिये तो सारे गलत कार्य क्षम्य है हो भी क्यों न आखिर कार वो एक नियंत्रक इकाई जो है. .
इरडा द्वारा जीवन बीमा कंपनियों के नये उत्पाद की संस्तुती, में की जा रही देरी :- अक्सर यह होता है की जीवन बीमा कम्पनियों को नये उत्पाद की संस्तुति प्राप्त होने में कई महीने लग जाते है. जो कही न कही बीमा कंपनीयों की कार्य नीति एवं व्यवसाय दोनों को प्रभावित करते है इरडा को इस पर नये सिरे से सोचने की जरुरत है तथा उत्पाद की संस्तुति अधिक से अधिक एक सप्ताह में अवश्य दे देनी चाहिये जबकि कोई अन्य कारण न हो.
इरडा द्वारा किये गये परिवर्तनों में से ये कुछ प्रमुख परिवर्तन है निसंदेह इनके प्रभाव को देखकर एवं समझकर आप की भी राय अब होगी जो कि हमने इस लेख के प्रारम्भ में दी हुई है. पर वास्तव में क्या यह सब होना चाहिये था ? क्या यल.आई सी ने पिछले कई सालो से इन परिवर्तन के बिना सफलता नही पायी ?. क्या यल. आई सी ने अपने कार्यों से बीमा उद्योग को एक नई दिशा नही दी ? क्या एल आई से के ग्राहक उसके द्वारा दिये जा रहे सेवाओ से संतुष्ट नही थे ? क्या यल. आई सी द्वारा बनाये गये अभिकर्ता सफल नही हुये है ?. यदि हां तो इरडा किस आधार पर यह सब परिवर्तन कर्ता चला आ रहा है परिवर्तनों के परिणाम प्रतिकूल होने के बावजूद. क्या वातानुकूलित कार्यालय में बैठकर नियम पारित कर देना चाहिये, बिना उसकी जमीनी हकीकत और प्रभावित होने वाले लोगों के हितों को जाने बिना. शायद नही पर अफ़सोस इस बात का है कि यह सब अभी भी चल रहा है और इसका अंत कब होगा यह कह पाना मुश्किल. इरडा के इस रवैये से तो यही लगता है कि एक दिन ऐसा आयेगा कि सिर्फ नियम और कानून ही रह पायेंगे शायद उनका पालन करने वाली जीवन बीमा कंपनिया नही.
एक कदम और आगे कि बात करते है इरडा कि कुछ भविष्य कि योजनाओ के बारे में बात करते है जिसके पूर्वानुमान से हमारी बात को जरुर और भी बल मिलेगा जिसे हम बीमा कंपनियों को, आम जनता को और निसंदेह देश के वित्त मंत्री को अवगत करना चाहते है “क्या जीवन बीमा उद्योग को गर्त में ले जाने कि हो रही गहरी साजिश ?”
प्रस्तावित परिवर्तन, बीमा सलाहकारों के लिये पॉलिसी निरंतरता दर कि अनिवार्यता का होना : यदि सरल शब्दों में बात करें तो किसी भी बीमा सलाहकार के द्वारा कि गयी पॉलिसी का ५० प्रतिशत पॉलिसी यदि चालू अवस्था में उसके लायसेंस नवीनीकरण के समय नही होंगी तो उसका लायसेंस नवीनीकृत नही किया जायेगा. यानि कि उसे जीवन जीवन बीमा व्यवसाय करने के अधिकार को समाप्त कर दिया जायेगा. जरा आप सोचिये कोई बीमा सलाहकार क्यों चाह्येगा कि उसके द्वारा कि गयी पलसियाँ कालातीत हो जबकि उसे चालू अवस्था में नवीनीकरण आय का भी लाभ मिलेगा. कई ग्राहक ऐसे होते है जिनकी स्थिति ऐसी नही होती या कुछ विषम स्थिति में पॉलिसी चालू नही रख पाते. पर क्या वास्तव में इरडा का यह तरीका न्यायसंगत एवं व्यावहारिक है. यह नियम वित्तीय वर्ष २०१४-२०१५ से प्रभाव में आयेगा.
यूलिप उत्पाद के बाद अब ट्रेडिशनल उत्पाद में बड़ी फेरबदल करने की तैयारी:- इरडा ने पूरी तरह से यह ठान लिया है कि ट्रेडिशनल जीवन बीमा उत्पाद का भी गला घोट दिया जाय. हम सभी इस बात से सहमत है कि अन्य वित् उद्योग कि अपेक्षा जीवन बीमा उद्योग में जीवन बीमा उत्पाद बेचना अत्यंत कठिन कार्य है यही कारण है कि जीवन बीमा सलाहकारों को आकर्षक कमीशन प्रदान किया जाता है. पर इरडा को यह बात अब रास नही आ रही है इसीलिए उसने जीवन बीमा उद्योग के ट्रेडिशनल उत्पाद पर कैंची चलने का मन बना लिया है जिसे वह जल्द से जल्द अंतिम रूप देने जा रही है. ट्रेडिशनल उत्पाद का यह रूप संभवतः दिसम्बर २०१२ या फिर नये वर्ष के प्रारम्भ से दिखना शुरू हो जायेगा. पर क्या वास्तव में बिमा सलाह्कारों के लिय उस समय भी यह पेशा आकर्षक रहेगा.
प्रस्तावित परिवर्तनो के प्रभाव से न केवल बीमा उद्योग कि बची हुई साख भी समाप्त हो जायेगी बल्कि इस व्यवसाय का जिस उद्देश्य के साथ निजीकरण किया गया था शायद उसकी भी दूर दूर तक पूर्ति नही हो पायेगी. जीवन बीमा कि पहूँच को आम आदमी तक देखा जाय तो वित्तीय वर्ष २०१० -११ कि अपेक्षा २०११-१२ में यह पहुँच कम हुई है. और ऐसे समय में इरडा के एक वरिष्ठ अधिकारी का यह बयान कि “विदेश में कारोबार विस्तार पर ध्यान दें बीमा कंपनिया” न केवल बहुत ही हास्यप्रद बल्कि देश कि अर्थव्यवस्था पर वह प्रश्न चिन्ह भी लगाता है जहाँ कि कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा आज भी जीवन बीमा व्यवसाय के निजीकरण हुये ११ वर्ष होने के बावजूद बीमा के लाभ से अब तक वंचित है. इन सभी बातों को शायद विदेशी बीमा कम्पनियां बहुत ही अच्छी तरीके से जान चूकी है तभी तो कई विदेशी कंपनिया यहाँ से पलायन कर चूकी है और कई इसी राह पर अग्रसर है. आइये पुनः आप सब को मेरे द्वारा कहे गये शब्दों पे ले चलते है जहा पर मैंने कहा था कि मै अपने द्वारा कहे गये इस बात कि पुष्टि अवश्य कर दूँगा कि “क्या बीमा उद्योग के गर्त में ले जाने कि हो रही गहरी साजिश ?. जरा सोचिये.
मुझे अत्यंत खुशी होगी यदि आप अपने बिचारो से मुझे अवगत करायें, हो सकता है कि मेरे द्वारा दिये गये तर्कों से आप सहमत न हो ऐसे में आप अपने तर्क से हमें सहमत जरुर कर सकते है मेरी मेल आई डी है – drajaykrmishra@gmail.com आप सब के विचारों का स्वागत है.
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