“बेटी और बीमा, भारत की उम्मीद समृद्धि और भविष्य है”
माँ चाहिए, बहन चाहिए, पत्नी चाहिए फिर बेटी क्यों नहीं ?
सुरक्षा चाहिये, अच्छा रिटर्न चाहिए फिर बीमा क्यों नहीं ?
बेटी होगी तभी माँ, बहन, पत्नी मिलेगी, बेटी बचाओ अभियान में सहभागी बने ।
बीमा लोगे तभी सुरक्षा और रिटर्न मिलेगा, बीमा के प्रचार प्रसार के अभियान में सहभागी बने ।
कितनी बड़ी बिडम्बना है आज के समाज में प्रत्येक व्यक्ति एक अच्छी माँ चाहता है, बहन चाहता है, पत्नी चाहता है, पर बेटी नहीं चाहता । यदि ताजा जनसंख्या आँकड़ो को देखा जाय तो ग्रामीण क्षेत्र में १००० पुरुषों पर ९४६ महिलाये, शहरी क्षेत्र में १००० पुरुषों पर ९०० महिलाये और देश स्तर पर देखा जाय तो १००० पुरुषों पर मात्र ९३३ महिलाये है। यह आँकड़ा कही न कहीं हमारी जमीनी हकीकत को बयाँ करता है जिसे सुधारने की अत्यंत ही आवश्यकता है । ठीक इसी तरह यदि बीमा पेनरेसन कि बात कि जाय तो १.२१ अरब कि आबादी में वित्तीय वर्ष २०११-१२ तक मात्र ५.०१% ही रहा है । सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता, हम चाहे जितनी तरक्की कर ले पर वास्तविक तरक्की तभी होगी जब हम बेटा-बेटी में सामान रूप से प्यार बाँट पाये और दोनों के भविष्य के लिये बराबर का प्रयास करें । उनमे आपस में मतभेद न पैदा करें ।
एक तरफ जहाँ बीमा सुरक्षा के साथ-साथ देश के विकाश में भागीदारी दिखा रहा है वही बेटी अपने नित नये कारनामो से माँ-बाप के साथ-साथ देश का भी सीना गर्व से ऊँचा कर रही है । जरुरत है तो बस दोनों को सही दिशा प्रदान करने कि और आपस में व्याप्त कुविचारों को समाप्त करने की । यदि देखा जाय तो अक्सर लोग कहते हुये पाये जाते है कि बेटे का नाम अच्छी स्कूल में लिखना है उसे अच्छा भविष्य देना है अछे कपडे पहनाने है उसका पर्याप्त बीमा करवाना है, और बेटी के नाम पर सिर्फ यही कहते पाये जाते है बेटी को अच्छी सुख सुविधाए देकर क्या करेगे अंततः उसे तो दूसरे के घर ही जाना है । जरा सोचिये अगर आप कि पत्नी अच्छी योग्यता होगी तो वो एक नये समाज के निर्माण में सहयोग दे सकेगी जो आपके साथ साथ देश भर के लोग उस पर गर्व करेंगे । याद रखिये हमें और आपको बनाने में सबसे अहम योगदान हमारी माँ का है अगर वो और अधिक योग्य समझदार होती तो शायद हम कही और होते । हमें धृण संकल्प के साथ आज से ही नहीं बल्कि अभी से अपनी सोच बदलनी होगी और खिचीं गयी अंतर कि दिवार को समाप्त करना होगा जो कि सबके हित में है ।
ठीक इसी तरह जब बीमा कि बात आती है तो लोग अक्सर कहते हुये पाये जाते है क्या मारना है कि बीमा कराये । जी नहीं अपनी सोच को सिर्फ बदलिए जरा सोचिये आज के इस भागम-भाग जिंदगी की दौड़ में सुबह आँख खुलने से लेकर शाम को आँख बंद होने तक हर जगह जोखिम ही दिखता है । सच्चाई भी यही है जिस तरह से हमने तरक्की कि है वह कबीले तारिफ है पर उसी अनुपात में हमने जोखिम को भी खुला निमंत्रण दिया है जिसका जीवंत उदाहरण मुंबई कि त्रासदी हो या जापान कि सुनामी दोनों से हम सीख ले सकते है और अगर ऐसा न भी हो तो बुडापे में आश्रितों पे जीने से अच्छा है कि खुद अपने बूते जिंदगी जी जाय और यह तभी हो सकता है जब हम बीमा का सहारा ले । प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आज बीमा हमारी हर जरूरतों में सबसे सर्वोपरि हो गया है । समय चक्र के साथ साथ जिस तरह से सयुंक्त परिवार कि प्रथा समाप्त हुई है उसी के नये विकल्प के रूप में बीमा के विश्वास को और मजबूती मिली है । एक सच्चाई और भी है यदि देखा जाय तो बीमा आर्थिक उत्पन्न समस्याओ को समाप्त करने का सबसे सशक्त और प्रभावशाली माध्यम है ताभी तो कहते है कि बीमा बेमिशाल है और इसका कोई सानी नहीं ।
बीमा से करे बेटी का विकाश और बेटी के बीमा से करे बीमा का विकाश यानि दोनों का विकाश एक दूसरे से और देश का विकाश इन दोनों से । जब हमें भूख लगती है तब हम खाना खाते है उसे हम कुछ देर के लिये तो अवश्य टाल सकते है पर हमेशा के लिये नहीं क्योंकि इसके बिना हमारा जीवन नहीं चल सकता । ठीक उसी तरह हम अपनी बेटी के खुशहाल भविष्य के लिये बीमा को अवश्य लेना चाहेये और यह जितनी जल्दी हो उतना ही लाभ पूर्ण होता है । इसे टाला जा सकता है कुछ देर के लिये पर हमेशा के लिये नहीं और अगर आप हमेशा के लिये टाल देते है तो उसका परिणाम अत्यंत कष्टपूर्ण होता है । जब आपको पैसो कि अत्यंत आवश्यकता होती है बेटी के उच्च शिक्षा के लिये या उसकी शादी के लिये, तो न आपके रिश्तेदार काम आते है और न ही घर के लोग वजह सिर्फ इतनी है कि आज के इस महगाई के युग में कोई चाहकर भी आपकी मदद नहीं कर सकता क्योंकि वह अपने में ही इतना परेशान और व्यस्त होता है कि सिवाय सहानभूति को वह आपको कुछ नहीं दे सकता ।
इसीलिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बेटी और बीमा, भारत की उम्मीद समृद्धि और भविष्य है । यह न केवल आपके लिये जरुरी है बल्कि इनकी एक-एक वृद्धि से देश का विकाश होगा जो हमें आत्म संतोष के साथ-साथ एक नये पथ पर अग्रसर होने के मौके को जन्म देगा । लोगों में व्याप्त रुद्वादिता समाप्त होगी और सही मायने में वही हमारा प्यारा भारत वर्ष होगा जब हमारे समाज में बेटियों को बेटे कि नजर से देखा जाएगा और बीमा को मरने के पश्चात साधन के रूप में न देखकर सुरक्षा और बचत का एक अनूठा साधन । इसकी शुरुआत हो चुकी है और कुछ लोग ऐसे देखने सुनाने में मिल जायेंगे जो दोनों को प्राथमिकता देते है तथा परम्परागत बातों पर भरोषा न करके अपनी बुद्धि का सदुपयोग करते है तथा सही निर्णय से खुद के साथ साथ राष्ट्र को भी लाभान्वित करते है । पर ऐसे लोगों कि संख्या बहोत कम है इनकी संख्या प्रत्येक घर में होने कि जरूरत है तभी इस व्याप्त कुरीतियों से हम बहार आ पायेगे । तब सही मायने में बेटी भी अपनी क़ाबलियत का भरपूर प्रदर्शन कर और तेजी से बेटो के साथ कदम से कदम मिलकर चलेगी और बीमा के जरिये हम बेटी-बेटो दोनों का भविष्य सुरक्षित कर पाएंगे ।
याद रखे उत्पन्न प्रत्येक समस्याओ के समाधान का साधन बीमा नहीं परन्तु उत्पन्न प्रत्येक आर्थिक समस्याओ के समाधान का सबसे अनूठा एवंम प्रभावशाली साधन अवश्य ही है तभी तो कहते है बीमा बेमिशाल है और इसका कोई प्रतियोगी नहीं है चाहे वह म्युचुअल फंड हो, चाहे वह बैंक हो, चाहे वह शेयर मार्केट हो, या फिर डाकघर कि बचत योजनाये । इसका अगर कोई प्रतियोगी है तो वह स्वयं में बीमा ही है जो नित नये लाभ को देने के लिये कटिबद्ध है तभी तो आज हमारे सामने बच्चो से लेकर बडो सब के लिये, शादी शिक्षा से लेकर मकान बनवाने तक के सभी तरह के अलग अलग बीमा उत्पाद बाजार में उपलब्ध है और बीमा में निवेशित धन भी शतप्रतिशत सुरक्षित ।
माँ चाहिए, बहन चाहिए, पत्नी चाहिए फिर बेटी क्यों नहीं ?
सुरक्षा चाहिये, अच्छा रिटर्न चाहिए फिर बीमा क्यों नहीं ?
बेटी होगी तभी माँ, बहन, पत्नी मिलेगी, बेटी बचाओ अभियान में सहभागी बने ।
बीमा लोगे तभी सुरक्षा और रिटर्न मिलेगा, बीमा के प्रचार प्रसार के अभियान में सहभागी बने ।
कितनी बड़ी बिडम्बना है आज के समाज में प्रत्येक व्यक्ति एक अच्छी माँ चाहता है, बहन चाहता है, पत्नी चाहता है, पर बेटी नहीं चाहता । यदि ताजा जनसंख्या आँकड़ो को देखा जाय तो ग्रामीण क्षेत्र में १००० पुरुषों पर ९४६ महिलाये, शहरी क्षेत्र में १००० पुरुषों पर ९०० महिलाये और देश स्तर पर देखा जाय तो १००० पुरुषों पर मात्र ९३३ महिलाये है। यह आँकड़ा कही न कहीं हमारी जमीनी हकीकत को बयाँ करता है जिसे सुधारने की अत्यंत ही आवश्यकता है । ठीक इसी तरह यदि बीमा पेनरेसन कि बात कि जाय तो १.२१ अरब कि आबादी में वित्तीय वर्ष २०११-१२ तक मात्र ५.०१% ही रहा है । सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता, हम चाहे जितनी तरक्की कर ले पर वास्तविक तरक्की तभी होगी जब हम बेटा-बेटी में सामान रूप से प्यार बाँट पाये और दोनों के भविष्य के लिये बराबर का प्रयास करें । उनमे आपस में मतभेद न पैदा करें ।
एक तरफ जहाँ बीमा सुरक्षा के साथ-साथ देश के विकाश में भागीदारी दिखा रहा है वही बेटी अपने नित नये कारनामो से माँ-बाप के साथ-साथ देश का भी सीना गर्व से ऊँचा कर रही है । जरुरत है तो बस दोनों को सही दिशा प्रदान करने कि और आपस में व्याप्त कुविचारों को समाप्त करने की । यदि देखा जाय तो अक्सर लोग कहते हुये पाये जाते है कि बेटे का नाम अच्छी स्कूल में लिखना है उसे अच्छा भविष्य देना है अछे कपडे पहनाने है उसका पर्याप्त बीमा करवाना है, और बेटी के नाम पर सिर्फ यही कहते पाये जाते है बेटी को अच्छी सुख सुविधाए देकर क्या करेगे अंततः उसे तो दूसरे के घर ही जाना है । जरा सोचिये अगर आप कि पत्नी अच्छी योग्यता होगी तो वो एक नये समाज के निर्माण में सहयोग दे सकेगी जो आपके साथ साथ देश भर के लोग उस पर गर्व करेंगे । याद रखिये हमें और आपको बनाने में सबसे अहम योगदान हमारी माँ का है अगर वो और अधिक योग्य समझदार होती तो शायद हम कही और होते । हमें धृण संकल्प के साथ आज से ही नहीं बल्कि अभी से अपनी सोच बदलनी होगी और खिचीं गयी अंतर कि दिवार को समाप्त करना होगा जो कि सबके हित में है ।
ठीक इसी तरह जब बीमा कि बात आती है तो लोग अक्सर कहते हुये पाये जाते है क्या मारना है कि बीमा कराये । जी नहीं अपनी सोच को सिर्फ बदलिए जरा सोचिये आज के इस भागम-भाग जिंदगी की दौड़ में सुबह आँख खुलने से लेकर शाम को आँख बंद होने तक हर जगह जोखिम ही दिखता है । सच्चाई भी यही है जिस तरह से हमने तरक्की कि है वह कबीले तारिफ है पर उसी अनुपात में हमने जोखिम को भी खुला निमंत्रण दिया है जिसका जीवंत उदाहरण मुंबई कि त्रासदी हो या जापान कि सुनामी दोनों से हम सीख ले सकते है और अगर ऐसा न भी हो तो बुडापे में आश्रितों पे जीने से अच्छा है कि खुद अपने बूते जिंदगी जी जाय और यह तभी हो सकता है जब हम बीमा का सहारा ले । प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आज बीमा हमारी हर जरूरतों में सबसे सर्वोपरि हो गया है । समय चक्र के साथ साथ जिस तरह से सयुंक्त परिवार कि प्रथा समाप्त हुई है उसी के नये विकल्प के रूप में बीमा के विश्वास को और मजबूती मिली है । एक सच्चाई और भी है यदि देखा जाय तो बीमा आर्थिक उत्पन्न समस्याओ को समाप्त करने का सबसे सशक्त और प्रभावशाली माध्यम है ताभी तो कहते है कि बीमा बेमिशाल है और इसका कोई सानी नहीं ।
बीमा से करे बेटी का विकाश और बेटी के बीमा से करे बीमा का विकाश यानि दोनों का विकाश एक दूसरे से और देश का विकाश इन दोनों से । जब हमें भूख लगती है तब हम खाना खाते है उसे हम कुछ देर के लिये तो अवश्य टाल सकते है पर हमेशा के लिये नहीं क्योंकि इसके बिना हमारा जीवन नहीं चल सकता । ठीक उसी तरह हम अपनी बेटी के खुशहाल भविष्य के लिये बीमा को अवश्य लेना चाहेये और यह जितनी जल्दी हो उतना ही लाभ पूर्ण होता है । इसे टाला जा सकता है कुछ देर के लिये पर हमेशा के लिये नहीं और अगर आप हमेशा के लिये टाल देते है तो उसका परिणाम अत्यंत कष्टपूर्ण होता है । जब आपको पैसो कि अत्यंत आवश्यकता होती है बेटी के उच्च शिक्षा के लिये या उसकी शादी के लिये, तो न आपके रिश्तेदार काम आते है और न ही घर के लोग वजह सिर्फ इतनी है कि आज के इस महगाई के युग में कोई चाहकर भी आपकी मदद नहीं कर सकता क्योंकि वह अपने में ही इतना परेशान और व्यस्त होता है कि सिवाय सहानभूति को वह आपको कुछ नहीं दे सकता ।
इसीलिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बेटी और बीमा, भारत की उम्मीद समृद्धि और भविष्य है । यह न केवल आपके लिये जरुरी है बल्कि इनकी एक-एक वृद्धि से देश का विकाश होगा जो हमें आत्म संतोष के साथ-साथ एक नये पथ पर अग्रसर होने के मौके को जन्म देगा । लोगों में व्याप्त रुद्वादिता समाप्त होगी और सही मायने में वही हमारा प्यारा भारत वर्ष होगा जब हमारे समाज में बेटियों को बेटे कि नजर से देखा जाएगा और बीमा को मरने के पश्चात साधन के रूप में न देखकर सुरक्षा और बचत का एक अनूठा साधन । इसकी शुरुआत हो चुकी है और कुछ लोग ऐसे देखने सुनाने में मिल जायेंगे जो दोनों को प्राथमिकता देते है तथा परम्परागत बातों पर भरोषा न करके अपनी बुद्धि का सदुपयोग करते है तथा सही निर्णय से खुद के साथ साथ राष्ट्र को भी लाभान्वित करते है । पर ऐसे लोगों कि संख्या बहोत कम है इनकी संख्या प्रत्येक घर में होने कि जरूरत है तभी इस व्याप्त कुरीतियों से हम बहार आ पायेगे । तब सही मायने में बेटी भी अपनी क़ाबलियत का भरपूर प्रदर्शन कर और तेजी से बेटो के साथ कदम से कदम मिलकर चलेगी और बीमा के जरिये हम बेटी-बेटो दोनों का भविष्य सुरक्षित कर पाएंगे ।
याद रखे उत्पन्न प्रत्येक समस्याओ के समाधान का साधन बीमा नहीं परन्तु उत्पन्न प्रत्येक आर्थिक समस्याओ के समाधान का सबसे अनूठा एवंम प्रभावशाली साधन अवश्य ही है तभी तो कहते है बीमा बेमिशाल है और इसका कोई प्रतियोगी नहीं है चाहे वह म्युचुअल फंड हो, चाहे वह बैंक हो, चाहे वह शेयर मार्केट हो, या फिर डाकघर कि बचत योजनाये । इसका अगर कोई प्रतियोगी है तो वह स्वयं में बीमा ही है जो नित नये लाभ को देने के लिये कटिबद्ध है तभी तो आज हमारे सामने बच्चो से लेकर बडो सब के लिये, शादी शिक्षा से लेकर मकान बनवाने तक के सभी तरह के अलग अलग बीमा उत्पाद बाजार में उपलब्ध है और बीमा में निवेशित धन भी शतप्रतिशत सुरक्षित ।
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