एक बार फिर राजीनीति की गन्दी हकीकत आम जनता के बीच उजागिर हुई है सच्चाई चाहे जो भी हो पर लोगों के जेहन में ये बात तो जरुर घर करती जा रही है कि राजनीती कि दुनिया जीतनी आकर्षक एवं भव्य दिखती है उसके ठीक विपरीत वह अत्यंत ही काली एवं खुनी रास्तो से होकर गुजरती है जहाँ सिर्फ और सिर्फ धन बनाने की होड़ मची हुई है और वो भी आम जनता के हितों को ताक पे रख करके. चाहे संसद में नोट कांड हो, टेलीकाम घोटाला हो, कामनवेल्थ घोटाला हो या ताजातरीन कोयला घोटाला. ये सभी घोटाले सत्ता दल कि वास्तविकता को बयाँ करते है. वही अगर दूसरे मुद्दे पे बात की जाय तो आम आदमी के जीवन को चलाने के लिये प्रतिदिन २० रूपये पर्याप्त है जबकि हमारे माननीय प्रधानमंत्री की डिनर पार्टी में ७ हजार से ज्यादे खर्च एक व्यक्ति पर किये जाते है. चारो तरफ घोटाला ही घोटाला दिखाई पड़ रहा है और मजे की बात तो ये है की एक आम आदमी को अब अपनी दुर्दशा पे रोने के आलावा कुछ बचा नही है, कम से कम २०१४ के चुनाव तक तो. एक आम आदमी कोई छोटा अपराध भी कर देता है तो प्रशासन उसके पीछे हाथ धो कर लग जाती है और कई मामलो में तो जमानत भी नही होती वही देश में सत्ताधारी पार्टी ने राजा एवं कलमाड़ी जैसे घोटालों के प्रमुखों को संसद में प्रवेश देकर देश के न्याय व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है ? जब देश के रक्षक ही भक्षक का काम करने लगे तो आप क्या कहेंगे? सारे इतिहास इस बात के गवाह है कि देश कि प्रगति और अर्थव्यस्था वहाँ के राजा के विचारों निर्णयों एवं उनके प्रशासनिक क्षमता पर निर्भर करती है. जबकि हमरे राजा तो ऐसे है जो कहते है कि पैसे पेड़ पर नही उगते, इससे भी आश्चर्य कि बात ये है कि वो कई मुद्दों पे बोलना उचित ही नही समझते. कुछ अच्छे एवं प्रतिष्ठित व्यावसायिक घरानों को इर्ष्या और द्वेष वशीभूत होकर प्रताणित किया जा रहा है. क्या होगा इस देश का ? इन्ही घटनाओं के चक्रव्यूह के बीच में अरविन्द केजरीवाल ने नये और आश्चर्य चकित कर देने वाले खुलासे करके कई पहलुओ पर आम जनता को सोचने पर मजबूर कर दिया है. जहा कांग्रेस सरकार कि अध्यक्षा चारो तरफ से घिरी नजर आ रही है वही कांग्रेस पार्टी के प्रत्येक सदस्य उनके दामाद को बचने में जुट गया है और सफाई दे रहें है कि वो टैक्स भरते है इसलिए सारे इल्जाम बेबुनियाद है. मै अरविन्द केजरीवाल कि इस बात से सहमत हु कि सत्ताधारी पार्टी के इशारों पर देश कि प्रतिष्ठित सी.बी.आई. जैसे एजेंसिय भी काम करती है. अगर ऐसा न होता तो लखनऊ के चिरपर्चित सचान केस में सी.बी.आई सारी वास्तविकता को जानते हुये भी सरकार के सहयोगी पार्टी के पक्ष में रिपोर्ट नही लगाती जबकि प्रशासन के भी कई अधिकारी इस बात के गवाह है कि सचान ने आत्म हत्या नही की. सोनिया गाँधी के दामाद राबर्ट वाड्रा को देश के प्रमुख रियल एस्टेट कंपनी डी.एल.एफ. ने ५०० करोड़ देकर एक बार फिर देश और निजी कंपनियों के रिस्तो के शर्मसार किया है और आम जनता को इस बात का सबूत भी कि सरकार से लाभ पाने के लिये उसे कुछ देना तो पड़ता ही है और हुआ भी ऐसा ही कि डी.एल.एफ. को इसके बदले आम जनता कि जमीन कौडियों के भाव दी गयी और यह बात कि ये सारे कारनामे कांग्रेस शासित राज्य में हुये है इस बात कि पुष्टि करते है कि दाल में न केवल कुछ कला है बल्कि पूरी दाल ही काली नजर आ रही है. मेरे प्यारे पाठकों मै यहाँ यह स्पष्ट कर देना चाहता हु कि मै न कांग्रेस का विरोधी हु और न ही अरविन्द केजरीवाल का समर्थक मै ये सारी बाते सिर्फ इसलिए लिख रहा हु कि हमें अभी से २०१४ के लिये न केवल खुद तैयार होना है बल्कि अपने पड़ोसियों सगे संबंधियो और मित्रों को इस बात से अवगत भी कराना है कि हमारे अभेद्य बाण का प्रयोग करने के लिये हम पूर्ण रूप से तैयार रहे, और ऐसी पार्टी को चुने जिससे हम अपने आप को इन समस्याओ से बचा पायें. कई बार तो मुझे यह सोचकर अत्यंत खुशी भी होती है कि राजनीती के बहाने ही सही वास्तविकता कम से कम आम लोगों के बीच आ तो रही है चाहे वह किसी भी माध्यम से आये. मीडिया ने भी अपनी भूमिका का भरपूर निर्वहन किया है. जो इन मुद्दों को पूरी पारदर्शिता के साथ आम आदमी के बीच लाने में कोई कसर नही छोड़ता. उठो जागो और लोगों को जगाओ कि अगर वो अब भी सोते रहे तो निसंदेह जल्द ही दिन आने वाले कि वो अपने घर में ही गुलाम बनकर रह जायेगे और देश के नेता राजनीति के नाम पर ऐसे ही उनके हिस्सों का लाभ उठाते रहेगे. जरा सोचिये क्या यही हमारे पूर्वजो के सपनो का भारत है ? यही देश निर्माण हो रहा है ? हम आने वाली पीदियों को क्या यही सब देकर जायेगे ?

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