“भारत में निजी क्षेत्र कि बीमा कंपनियों के कार्य व्यवहार का विश्लेष्णात्मक अध्ययन”
Activities of Private Insurers in India - An Analytical View
(Past Present & Future)

जीवन बीमा अपने आधुनिक स्वरुप में भारत में इंग्लैण्ड से सन् १९१८ में आया जो कोलकाता में ओरिएंटल इंश्योरेंश कंपनी की स्थापना से प्रारम्भ हुआ जिसमें यूरोप के लोगों के विधवाओं और उनके सम्बन्धियों कि आर्थिक सहायता करने के लिये प्रावधान किया गया था. पहले बीमा कम्पनियाँ कंपनी अधिनियम १८६६ से प्रशासित होती थी. १८७० तक १७४ कंपनियों के बंद होने के बाद ब्रिटिश संसद द्वारा बीमा कानून बनाया गया है ये कंपनिया अधिकांशतः यूरोपीय लोगों के जीवनों का ही बीमा करती थी. यद्यपि इसके वर्तमान स्वरुप में बीमा भारत, एशिया और अफ्रीका में ब्रिटिश लोगों द्वारा अन्य उपनिवेशीय शक्तियों द्वारा लाया गया पर सामूहिक सहयोग कि भावना जिसमें एक विशेष जोखिम को बाटना था वह तो उतनी ही पउरानी है जितनी कि मानवीय सभ्यता. प्राचीन काल में भारत एक प्रमुख व्यावसायिक शक्ति था और जो जोखिम को बाटने के तरीको का जिक्र पुराने साहित्य में ढूढा जा सकता है. भारत में सयुंक्त परिवार कि पद्धति जीवन बीमा के मूल विचारों का मूर्त रूप ही.

यह एक विश्व व्यापी सत्य है कि जो इस संसार में जन्मा है, उसकी मृत्यु अवश्य है अर्थात व्यक्ति की मृत्यु एक न एक दिन निश्चित है परन्तु मृत्यु का समय अनिश्चित है अल्प आयु में जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो उनके आश्रितों को तरह तरह की कठिनाइयों विशेषतः जीवन निर्वाह के लिये आर्थिक कष्ट का सामना करना पड़ता है दीर्घ आयु में जब वह व्यक्ति कार्य करने में असमर्थ हो जाता तो उस समय भी उस व्यक्ति के सामने समस्याओं के झड़ी सी लग जाती है जिससे उसे मानसिक व शारीरिक कष्ट उठाने पड़ते है अतः इस कारण वर्तमान समय में बीमा आवश्यक हो गया है.

आज चरों तरफ भागम-भाग मची हुई है किसी के पास इतना समय नही रह गया है कि वह किसी अन्य के सुख दुःख में शामिल हो सके हर जगह पहले से ज्यादा जोखिम विधमान हो गया है इस लिये मनुष्य जोखिम से बचने हेतु बीमा का सहारा लेना चाहता है यधपि जीवन बीमा द्वारा बीमित मृतक व्यक्ति को पुनः जीवित तो नहीं किया जा सकता परन्तु फिर भी मृतक व्यक्ति के परिवार वालों कि बहुत सी सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं का समाधान कर उनके जीवन को कुछ सरल तो अवश्य ही बनाया जा सकता है और इसके साथ साथ भविष्य की अनिश्चितताओ की निश्चितता में बदला जा सकता है जोखिम और बीमा दोनों एक दिसरे पर आधारित है जहाँ अनिश्चितता होती है वहाँ जोखिम अवश्य ही विधमान रहता है भविष्य अनिश्चित है अर्थात कल क्या होगा यह कोई नहीं जनता और न ही बता सकता है सभी लोगों अज्ञात आशंका से भयभीत है, कि न जाने कब किसके साथ कौन सी घटना घट जाय.

जोखिम प्रबंध हेतु यह आवश्यक है कि जोखिम को पहचाना जाय इसके पश्चात उसका आकलन और उसके साथ व्यवहार किया जाय इस प्रकार बीमा के द्वारा आर्थिक जोखिम कि अनिश्चितता को समाप्त किया जा सकता है.

बीमा मनुष्य की आर्थिक समस्या का निदान करता है जब उसे उसकी आवश्यकता होती है. भविष्य अनिश्चित है भूत काल एक कहानी बन जाता है वर्तमान हमेशा चलता रहता है अर्थात जो समय व्यतीत हो गया, उस अवधि में पुनः जोखिम की कोई आवश्यकता नही होती और न ही वह जोखिम से कुछ लेना देना है. भविष्य ही एक मात्र अवधि है जिसके लिये बीमा किया जा सकता है भविष्य के गर्भ में क्या है यह कोई नही जानता. विभिन्न प्रकार की उत्पन्न आकस्मिक दुर्घटनाये संकटो की एक लंबी श्रंखला की तरह होती है जिससे व्यक्ति उसके आश्रित तथा उसके सगे सम्बन्धियों को हानि उठानी पड़ती है. विभिन्न तरह की बीमारी दंगे, यंत्रो की खराबी, आतंकवाद, मार्ग दुर्घटनाओ के कारण ये समस्याएं उत्पन्न होती है इन विभिन्न कारणों से उत्पन्न समस्याओ को तो रोका नही जा सकता परन्तु इससे उत्पन्न आर्थिक क्षति की पूर्ति अवस्य ही बीमें माध्यम से की जा सकती है अर्थात बीमा व्यक्ति की बिभिन्न प्रकार की आर्थिक समस्याओं जो कि व्यक्ति कि मृत्यु के बाद या निर्धारित अवधि के पश्चात उत्पन्न होती है उनकी पूर्ति करता है बीमाकर्ता एक निश्चित धनराशि प्रीमियम के रूप में समय समय पर बीमित व्यक्ति की मृत्यु अर्थात पूर्णावधि के पूर्व तक लेता रहता है और उस प्रतिफल को वचन के रूप में क्षतिपूर्ति का वचन देता है जो कि रुपयों में होती है.

बीमा एक संविदा है जिसमे बिमार्थी बीमाकर्ता को एक निश्चित धनराशि प्रीमियम के रूप में भुगतान करता है तथा बीमाकर्ता एक निश्चित घटना के घटित होने पर बिमार्थी को जोखिम वहन करने के प्रतिफल में देता है बीमें में मात्र व्यक्ति विशेष और उनसे सम्बंधित महत्वपूर्ण वास्तु का ही बीमा किया जाता है, जिसमे बीमित द्वारा समान दर से धनराशि प्रीमियम के रूप में निश्चित समयावधि तक दी जाती है. इस धनराशि के प्रतिफल के रूप में बीमाकर्ता बीमित को वित्तीय संकट की क्षतिपूर्ति का आश्वासन देता है.

सन् १९१४ में केवल ४४ बीमा कम्पनियाँ भारत में कार्यरत थी लेकिन स्वदेशी लहर के चलते सन् १९४० तक बीमा कंपनियों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई और इनकी संख्या १९५ हो गयी जब बीमा व्यवसाय को नियंत्रित करने के लिये सर एन.एन. सरकार द्वारा जनवरी १९३७ में विधान सभा में एक बिल प्रस्तुत किया जिससे बीमा अधिनियम १९३८ कि स्थापना की गयी और व्यापक तरीके से बीमा कंपनियों को नियंत्रित किया गया. सन् १९४७ -४८ के आस पास बीमा व्यवसाय करने वाली कंपनियों कि संख्या बढकर २०९ हो गयी.

बीमा व्यवसाय में कार्यरत अनेक कंपनिया दिवालिया होने लगी कुछ कंपनियों ने गलत ढंग से व्यवसाय करना प्रारम्भ कर दिया था जिस वृद्धि से बीमा का विस्तार होना था वो न हो सका. विभिन्न तरह की समस्यायों से बचने के लिये तथा आम जनता के विश्वास ए़वं हितों को सुरक्षित करने के लिये भारत सरकार ने १ सितम्बर १९५६ को सभी कार्यरत २५० जीवन बीमा कंपनियों को समाहित कर संसद द्वारा अधिनियम पारित कर भारतीय जीवन बीमा निगम की स्थापना की.

उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण की नीतियों के अंतर्गत एक बात सामने आई कि बीमा व्यवसाय का निजीकरण हो अतः बीमा व्यवसाय में निजी क्षेत्र की कंपनियों को कार्य करने की अनुमति प्रदान करने की आवश्यकता ने पुनः जोर पकड़ा. भारतीय जीवन बीमा निगम के द्वारा प्रदान की जा रही, सेवाओ से बीमा व्यवसाय में भारतीय जीवन बीमा निगम का एकाधिकार स्थापित न हो ग्राहकों को बेहतर सुविधाएँ तथा लाभप्रद उत्पाद/योजनाये, मिल सके तथा उदारीकरण के अंतर्गत एक स्वस्थ्य प्रतियोगिता को जन्म देने के उद्देश्य से भारत सरकार ने ७ दिस्मबर १९९९ में बीमा विनायक एवं विकास प्राधिकरण बिल पारित कर निजी कंपनियों को बीमा व्यवसाय करने की अनुज्ञप्ति प्रदान करने का कार्य प्रारम्भ किया. सन् २००० से २०१२ के मध्य निम्नलिखित निजी कंपनियों को जीवन बीमा व्यवसाय करने के लिए अनुमति दी गयी :-

भारत में काम करने वाली निजी जीवन बीमा कंपनिया (सन् २००० से २०१२ तक पंजीकृत)

१. एचडीएफसी लाइफ इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड
http://www.hdfclife.com/
२. मैक्स लाइफ इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड
http://www.maxlifeinsurance.com/
३. आईसीआईसीआई लाइफ इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड
http://www.iciciprulife.com/
४. कोटक लाइफ इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड
http://insurance.kotak.com/
५. बिरला सन् लाइफ इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड
http://www.birlasunlife.com/
६. टाटा एआईए लाइफ इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड
http://www.tata-aig-life.com/
७. यस बी आई लाइफ इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड
http://www.sbilife.co.in/
८. आई एन जी वैश्य लाइफ इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड
http://www.ingvysyalife.com/
९. बजाज अलायंज लाइफ इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड
http://www.bajajallianz.com/
१०. मेट लाइफ इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड
http://www.metlife.co.in/
११. रिलायंस लाइफ इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड
http://www.reliancelife.com/
१२. अविवा लाइफ इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड
http://www.avivaindia.com/
१३. सहारा इंडिया लाइफ इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड
http://www.saharalife.com/
१४. श्रीराम लाइफ इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड
http://www.shriramlife.com/
१५. भारती एक्सा लाइफ इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड
http://www.bharti-axalife.com/
१६. फ्यूचर जनरली इंडिया लाइफ इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड
http://www.futuregenerali.in/
१७. आई डी बी आई लाइफ इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड
http://www.idbifortis.com/
१८. केनरा यच एस बी सी ओरियंटल बैंक आफ कामर्स लाइफ इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड
http://www.canarahsbclife.in/
१९. एगाँन रेलिग्रे लाइफ इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड
http://www.aegonreligare.com/
२०. डी एल एफ प्रमेरिका लाइफ इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड
http://www.dlfpramericalife.com/
२१. स्टार यूनियन दाई-इची लाइफ इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड
http://www.sudlife.in/
२२. इंडिया फर्स्ट लाइफ इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड
http://www.indiafirstlife.com
२३ इडल वाइस लाइफ इंश्योरेंश कंपनी लिमिटेड
http://www.edelweisstokio.in/
२४ भारतीय जीवन बीमा निगम (सरकारी)
http://www.licindia.in/

प्रस्तुत शोध के प्रथम चरण में यह जाना गया कि बीमा के विभिन्न इतिहास और नियम, भारत में बीमा का प्रवेश, बीमा एवं जुआ में अंतर बिमाहित, जोखिम जैसे पहलुओ के बारे में अध्ययन किया गया है इनके आधार पर सही परिणाम प्राप्त किये गये.

दितीय चरण में यह जाना गया कि निजी बीमाकर्ता के प्रवेश व विकास, बीमा व्यवसाय का निजिकरण, संरचना, प्रतियोगिता नियंत्रण, विनियोग, ग्राहक सेवा, बीमा विनियामक अधिनियम १९९९ तथा बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण विधेयक के आधार पर निष्कर्ष प्राप्त किये गये.

तृतीय चरण में यह जाना गया कि बीमा कंपनियों कि वित्तीय नीति तथा बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (विनियोग) अधिनियम २००० जीवन बीमाकर्ताओं के निवेश का वास्तविक विवरण प्रस्तुत कर बीमा कंपनियों में निवेश धनराशि सुरक्षित है या नही इन पहलुओ को जाना गया.
चतुर्थ चरण में यह जाना गया कि ग्रामीण व सामाजिक क्षेत्र की बाध्यता व उसकी वास्तविक स्थिति का विवरण भी प्रस्तुत किया गया है साथ ही उपलब्ध सूक्ष्म उत्पादों का विवरण से जानकारी प्राप्त की गयी. सामाजिक व ग्रामीण क्षेत्र के आधारभूत अंतर को भी जानकार सही निष्कर्ष प्राप्त किये गये.

पंचम चरण में यह जाना गया कि सार्वजानिक एवं निजी जीवन बीमाकर्ता के व्यावसाय की उत्पादकता, लाभदायकता एवं दक्षता का आपस में तुलनात्मक अध्ययन विभिन्न आधारों पर विश्लेषित कर अध्ययन किया गया तथा दोनों सार्वजनिक एवं निजी बीमाकर्ताओं की वास्तविक उत्पादकता के आधार पर परिणाम के बारे में जानकारी प्राप्त की गयी.

छठें चरण में यह जाना गया गया की सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र द्वारा प्रदान की जा रही विभिन्न बीमा सेवाओ का वर्णन करके तथा आपस में एक दूसरे की बीमा सेवा की तुलना कर बेहतर सेवा प्रदाता कंपनी को जानने का प्रयास किया गया. कुछ सेवाएँ सरकार द्वारा प्रदान करना बाध्य है तथा कुछ बीमाकर्ता स्वयं के प्रयास से कुछ विशेष सेवा भी अपने ग्राहकों को प्रदान कर अच्छी विपणन नीति संचालित कर रहे है. इन पहलुओ के आधार पर भी उनके कार्य पर निष्कर्ष निकला गया.

सप्तम चरण में यह जाना गया की बीमा व्यवसाय की प्रमुख कड़ी बीमा दावा व उसके निस्तारण को कैसे विस्तृत किया तथा इसके वास्तविक स्थिति का भी आपस में मूल्यांकन किया गया. बीमा दावा के माध्यम से हो रहे जालसाजी को भी जानने का प्रयास कर उसे रोकने के लिये उठाये जा रहे कदमो को जाना गया. मृत्यु दावों का अलग अलग श्रेणियों में सार्वजनिक एवं निजी बीमाकर्ताओं का आपस में तुलना की गयी है जिससे वास्तविक स्थिति को सामने रखा जा सके.


निष्कर्ष एवं सुक्षाव:- अध्यायन किये गये समस्त प्राथमिक एवं दितियक समंको के आधार पर तथा बीमा के इतिहास एवं आधुनिक स्थिति के आधार पर निष्कर्ष निम्नलिखित प्रस्तुत है:-

 निजी बीमाकर्ता अपने काम के द्वारा सार्वजानिक बीमाकर्ता में घबडाहट पैदा कर रहे है.

 जीवन बीमा का निजीकरण होने के पश्चात लोगों में जीवन बीमा के बारे में जागरूकता बड़ी है और आम लोगों में जीवन बीमा के प्रति गहरी समझ का जन्म हुआ है

 यूलिप उत्पाद की कि गयी मिससेलिंग से ग्राहकों का भरोसा जीवन बीमा पर पिछले कुछ वर्षों से बहोत तेजी से कम हुआ है

प्रमुख सुक्षाव निम्नलिखित प्रस्तुत है

 अध्यन से यह तथ्य सामने आया कि लोगों द्वारा जीवन बीमा पॉलिसी लेने की मुख्य वजह निवेश है तथा जोखिम वहाँ दितीय प्राथिमिकता है. यह आकडे दर्शाते है कि लोग आज भी जीवन बीमा पॉलिसी लेने मुख्य उद्देश्य को समझ नही पाये है. अतः यह सुझाव दिया जाता है कि सभी बीमाकर्ता, जीवन बीमा जागृति अभियान चलाकर, विज्ञापन या सामाजिक समूह के माध्यम से जीवन बीमा की वास्तविकता के बारे में लोगों को अवगत कराये विशेषकर नव युवको को.

 निजी बीमाकर्ता द्वारा मृत्यु दावों के भुगतान करने की प्रक्रिया सरल नही है तथा उनके द्वारा अधिक प्रपत्रो की मांग की जाती है तथा यह प्रकाश में आया है कि ओ मृत्यु दावों के भुगतान में लापरवाही बरतते है. अतः उन्हें सुक्षाव दिया जाता है कि अपनी इस प्रक्रिया/व्यवहार में व्यापक सुधार लाए. बहुत बार यह सज्ञान में आया है कि इस तरह कि समस्यायों का जन्म अभिकर्ता द्वारा किये गये गलत वादे और अस्पष्ट संचार से होता है इसलिए अभिकर्ताओ को सलाह दी जाती है कि किसी भी तरह से गलत बातों का प्रचार प्रसार न करें साथ ही साथ झूठे दावों को बीमाकर्ता के समक्ष प्रस्तुत न करें.

 जीवन बीमा कि पहुच बहुत लोगों तक पिछले कुछ वर्षों में बहुत तीव्रता से हुई है परन्तु अभी भी वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अनुशार नही नही है. अतः अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अनुशार जीवन बीमा के विस्तार को विस्तारित करने के लिये सभी बीमाकर्ताओ को यह राय दी जाती है कि विभिन्न आयु वर्ग की आवश्यकताओ को पूर्ण करने वाले सरल तथा आकर्षक उत्पाद का निर्माण कर विभिन्न विपणन माध्यम जैसे, प्रत्यक्ष विपणन, आन लाइन विक्रय, बैक अस्योरेंश माल अश्योरेंश, ब्रोकर रेफरल एजेंट, अभिकर्ता आदी को अपनाकर उत्पाद का विक्रय करे.

 भारतीय जीवन बीमा निगम के पास बीमित लोगों कि संख्या बहुत अधिक है अतः उसे राय दी जाती है कि उन बीमित लोगों के लिये कोई विशेष उत्पाद का निर्माण कर उस उत्पाद को प्रोत्साहन कर और उत्तम व्यवसाय प्राप्त करें.

 यह प्रकाश में आया है कि सभी बीमाकर्ता केवल प्राधिकरण बाध्यता को पूर्ण करने की दृष्टि से ही सामाजिक व ग्रामीण बीमा व्यवसाय करते है जिससे आज भी देश के बड़े भाग के इस क्षेत्र में आने वाले लोग बीमा से वंचित है तथा उन्हें इस तरह के बीमा के बारे में जानकारी का आभाव है अतः सभी बीमाकर्ताओ से अपेक्षा है कि प्राधिकरण बाध्यता से परे होकर सामाजिक व ग्रामीण बीमा व्यवसाय करें तथा व्यक्तिगत उत्पाद की तरह इसमें भी विविधता लाए तथा जन मानस में प्रचार प्रसार करें.

 बीमा क्षेत्र में रोजगार की सम्भावना भी व्यापक है अतः सभी बीमाकर्ता को यह राय दी जाती है कि जीवन बीमा से विषय सम्बंधित योग्यता प्राप्त कर्मचारियों का चयन तथा नियुक्ति करें जिससे भविष्य में उत्पन्न होने वाली समस्या को कम किया जा सकें.

 जीवन बीमाकर्ताओ के प्रति विभिन्न तरह कि शिकायतों का अम्बार सा विभिन्न प्रकोष्ठो में है अतः सभी बीमाकर्ताओ से अपेक्षा है कि इस तरह की शिकायतों की संख्या को कम करने के लिये विभिन्न उपाय उठाये तथा प्राप्त शिकायतों का शीघ्र निस्तारण करें.

 सरकार को चाहिये की जीवन बीमा व्यवसाय में विदेशी पूजी की सीमा का प्रतिशत २६ से बदकर ४९ प्रतिशत तक करना चाहिये जिससे बीमा का विकास तीव्र गति से हो सके तथा नये नये अवसरों का सृजन कर अनुत्पादक धन को गतिशील बनाया जा सके.

 बीमा कंपनी को प्रारम्भ करने के लिये प्राधिकरण से अनुमति प्राप्त करना सरल नही है अतः इस पद्दति में सुधार कर उसे सरल बनाया जाय जिससे कंपनी सुगमता तथा सरलता से अनुज्ञप्ति प्राप्त कर सकें.

 प्रत्येक बीमाकर्ता को यह सुझाव दिया जाता है कि प्रस्ताव पत्र को स्वीकृत करते समय शीघ्रता न करें बल्कि समस्त आवश्यक प्रपत्रो कि पूर्ति के पश्चात ही स्वीकार करे तथा बीमांकन प्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा ही करायें जिससे मृत्यु दावों को कम किया जा सकें.

 प्रत्येक बीमाकर्ता विशेषकर निजी बीमाकर्ता से यह अपेक्षा की जाती है कि प्रस्तावक को छिपे हुए शुल्क के बारे में प्रस्ताव पत्र के समय अवगत करना चाहिये तथा हर सम्भव प्रयास कर मिथ्या कथन, छल कपट द्वारा उत्पाद के विक्रय पर रोक लगानी चाहिये

 सभी बीमाकर्ता को चाहिये के यूलिप पालिसियों के बारे में व्यापक प्रचार प्रसार करे जिससे सभी लोगों को यह पता चल सके कि यूलिप अब ग्राहक के लिये पहले से अत्यधिक लाभप्रद एवं सुरक्षित निवेश भी है

 पूजी बाजार में उतार चढाव के कारण बीमाकर्ताओ से अपेक्षा की जाती है कि वो परम्परागत बीमा उत्पाद के विपणन पर विशेष ध्यान दे अपेक्षाकृत यूनिट-लिंक्ड उत्पाद विपणन पर. इसके लिये आवश्यक है कि यूनिट लिंक्ड उत्पाद के विज्ञापन कि अपेक्षा परम्परागत उत्पाद के विज्ञापन पर अधिक ध्यान दिया जाय.

 निजी बीमाकर्ताओ के पक्ष में प्राधिकरण को विज्ञापन के माध्यम से आम लोगों को बताना चाहिये कि उनमे निवेशित प्रत्येक पैसा सत् प्रतिशत सुरक्षित है.

 सभी बीमाकर्ताओ को सलाह दी जाती है कि अपने बीमा अभिकर्ताओ के प्रत्येक नये नियम एवं जानकारियों से समय समय पर प्रशिक्षित करते रहे जिससे बीमा के प्रचार प्रसार सही ढंग से हो पायेगा और आम लोगों का विश्वास भी.


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