अभी हाल ही में मैंने दो पहिया वाहन को क्रय किया था नियमानुशार मुझे आर.टी.ओ. आफिस के द्वारा मालिकाना हक को अपने पक्ष में करने के लिये आवश्यक कार्यवाही पूर्ण कर नया प्रमाणपत्र लेना जरुरी था | मुझे आज के पहले कभी भी आर.टी.ओ. आफिस के कार्य पद्धति की जानकारी नही थी | मैंने सोचा क्यू न किसी कि मदद ली जाये जिससे मेरा कार्य आसानी से हो सके | मैंने एक सज्जन से बात कि मेरा यह कार्य है उन्होंने कहाँ आप एक हजार रूपये हमें दे दीजिए हम सब कार्य करवा कर आपको अपने दो पहिया वाहन के मालिकाना हक कि आर.टी.ओ. द्वारा प्रमाणित कापी आपको प्रदान कर देंगे | मैंने उनसे बातों बातों में यह जानने का प्रयास किया कि क्या वास्तव में एक हजार रूपये इस कार्य में लगते है तो उन्होंने दो टुक में जबाब दिया भैया ये तो हम है जो एक हजार में आपका कार्य करवा देंगे अन्यथा दूसरा कोई और होता तो पन्द्रह सौ के निचे बात ही नही करता, आप चाहो तो पता कर लो | मैंने सोचा शायद ये सज्जन सही कह रहे है, मैंने उनसे कहा ठीक है जैसे ही सारे प्रपत्र तैयार हो जाते है मै आपको बताता हु | इसके तत्पश्चात मैनी कई लोगों से बात किये पांच सौ से लेकर पन्द्रह सौ के बीच लोग पैसो की मांग इस कार्य को करने के लिये कर रहे थे |

मुझे लगा कि इन सब से कार्य करवाने के बजाय क्यू न मै खुद कोशिश करू और इस विचारधारा से कि अगर मै किसी को घूस देता भी हु इस कार्य को करवाने को तो उसका नकारात्मक प्रभाव घूम फिर कर हम पर हमारे समाज पर ही पड़ेगा और वैसे भी मै घूस के बिलकुल खिलाफ हु न मै घूस लेता हु न देता हु |

जैसे ही मैंने 18 दिसम्बर 2013 को मैंने आर.टी.ओ. आफिस के सामने अपनी बाइक खड़ी कि कई लोगों ने मुझे घेर लिया बोले क्या काम है आएये हम करवा देते है | मैंने कहा धन्यवाद हम स्वय ही अपना कार्य करावा लूँगा | किसी सज्जन ने उसी बीच से कहा कि बिना पैसो के यहाँ कुछ नही होने वाला आप चाह रहे हो तो कोशिश कर लो | समस्त आवश्यक प्रपत्रो के साथ दो पहिया वाहन के मालिकाना हक को परिवर्तित करने के लिये निवेदन बड़े बाबु के समक्ष प्रस्तुत किया | मुझसे तो बड़े बाबु ने कुछ नही बोला पर मैंने यह देखा कि प्रत्येक लोग जो उससे मिलने आ रहे थे किसी भी काम को लेकर वह लक्ष्मी कि बात जरुर कर रहा था और लोग खुशी खुशी दे भी रहे थे | वहाँ का माहौल देखकर मेरे मन में एक ख्याल आया कि लोग अनावश्यक रूप से पुलिस वालो को बदनाम करते है वास्तविक घूस खाने कि बीमारी तो आर.टी.ओ. आफिस में विद्यमान है जहा सीधे तौर पर मांग की जाती है |

मेरे डाकुमेंट्स चेक करने के बाद बड़े बाबू ने कहा आप 22 दिसंबर को आइये आपका काम हो जायेगा और उसने मुझे एक रसीद भी प्रदान कि जो कि तीस रूपये कि थी | मै 22 दिसंबर को सुबह 11 बजे सीधे आर.टी.ओ.  आफिस पहुँचा और उन बाबू से बात कि उन्होंने कहा इधर बीच कुछ दिन छुट्टिया थी इस वजह से आपका काम नही हो सका है आप 26 दिसम्बर को आइये और अपना सर्टिफिकेट ले जाएये | मुझे थोड़ा अजीब लगा कि सिर्फ नाम पता ही तो परिवर्तीत कर नया सर्टिफिकेट देना है इसके लिये इतना समय लगता है क्या ? मैंने सोचा चलो ठीक है थोड़ा और इन्तजार कर लेते है | मैंने बड़े बाबू से कहा आपने पहले 22दिसम्बर को बुलाया था और मुझे आपने सर्टिफिकेट नही दिया और अब आप २६ दिस्मबर को बुला रहे है मै आपको एक और दिन देता हु अब मै 27 दिसम्बर को आऊंगा पर आप यह सुनिश्चित करिये कि मेरा काम हो जाएगा | बड़े बाबू ने मेरी फ़ाइल निकलवाकर उस पर 27 दिसम्बर का दिनाक डाला और कहा हाँ आपका काम हो जायेगा आप जाएये | जैसे ही मै वहाँ से बाहर निकला आर.टी.ओ. आफिस के दलाल मुझे देखकर मुस्कुराने लगे क्या हुआ आपका काम हुआ मेरा कहा माना होता तो एक घंटे में सब करवा कर दे चूका होता आपको | मै कुछ नही बोला और 27 दिसम्बर का प्रतीक्षा करने लगा |

27दिसम्बर को मै जैसे ही आर.टी.ओ. आफिस के बाहर पहुँचा आर.टी.ओ. आफिस के एक दलाल ने कहा बताएये क्या काम है ? मैंने सीधे पलट कर उनसे कहा आप बताओ आप का क्या काम है ? मेरे इस जबाब से वह सन्न रह गया और वहाँ से चला गया | मै सीधे बड़े बाबू के पास गया और रसीद दिखा कर उनसे कहा मेरा काम हो गया है क्या ? उसने इधर - उधर देखा फिर कुछ फाइलों में सर्च किया फिर बोला अभी नही हुआ है आप या तो शाम को आएये या फिर कल | मैंने सोचा शायद यह मेरा शक्ल देखकर पैसे नही मांग पाया हो और अब अप्रत्यक्ष रूप से हमें परेशान कर रहा है उकसा रहा है पैसो के लिये | मैंने यह भी नोटिस किया कि इतनी देर में वह तीन चार लोगों को प्रमाणपत्र दे चूका था | मैंने उससे पूछा कि आप तो हमें 26 दिस्मबर को ही बुला रहे थे एक दिन का और समय देने पे भी मेरा काम नही किया आपने | वह इधर उधर कि बातें करने लगा, मैंने कहा मुझे आपसे अब इस विषय में कोई बात नही करनी है आप मेरी फ़ाइल वापस करिये और ये बताएये आपसे ऊपर के अधिकारी कौन है मै उनसे बात करता हु | उसने मौके की नजाकत को समझते हुये फ़ाइल देते हुये बगल वाले कमरे कि तरफ़ इशारा किया |

मै सीधे उस कमरे में घुसा तो वह पर एक महिला अधिकारी विद्यमान थी उन्होंने कहा आप अंदर कैसे आ गये ? मैंने उनसे कहा आप हम आम नागरिक कि ही सेवक है और मै आपके आफिस में आया हु जहाँ आप हमारी ही सेवा करने बैठी है न कि आपके घर में मै घूस आया हु | जब मैंने उन्हें सारा वृतांत सुनाया तो उन्होंने कहा आप शाम तक प्रतीक्षा कर लीजिए आपका काम हो जायेगा | जबकि मैंने ये देखा कि जो व्यक्ति अभी अभी बड़े बाबू के पास फाइल जमा करके गया था उसकी फ़ाइल उनके पास फ़ाइनल अप्रूवल के लिये रखी हुई है | मुझे बहुत चीड़ हुई मैंने कहा कि इस काम के लिये कोई निर्धारित समय सीमा है कि नही ? मै १८ दिसम्बर से परेशान हु और अब तक मेरा कार्य नही हुआ जबकि लोग इस तरह के काम एक दो घंटे में ही करा लेते है क्या ऐसा इसलिये है कि मैंने दलालो का सहारा नही लिया ? मुझे अब थोड़ा गुस्सा भी आने लगा था और वहां पर एकत्रित भीड़ के लिये मै आकर्षण का केन्द्र भी बन चूका था | मौके कि नजाकत को देखते हुये उस महिला अधिकारी ने मेरे सारे कार्य मात्र २ मिनट में निपटा दिये और अगले ५ मिनट में मेरे हाथ में सर्टिफिकेट था |

वहाँ का सारा माहौल देखकर लगा कि जो काम मात्र ३० रुपये में होना निर्धारित है उसके लिये लोगों से पाँच सौ से पन्द्रह सौ रूपये लिये जा रहे है | यह घिनौना कार्य क्या किसी अधिकारी के मिले बिना हो रहा होगा  आप ही सोचिये ? ऐसा महानगर, लखनऊ आर.टी.ओ. आफिस जो कि उत्तर प्रदेश कि राजधानी है में धडल्ले से प्रतिदिन हो रहा है | जिसके लिये कोई कार्यवाही नही हो रही है | मेरा मानना है कि आपको न केवल प्रत्येक मुद्दे जो आपसे प्रत्यक्ष या फिर अप्रत्यक्ष रूप से सम्बंधित है आपको स्वयं में जागरूक होना है बल्कि आने वाली पीड़ी को भी जागरूक करना है जिससे ये भ्रष्टाचार और समाज में ब्याप्त बुराईया समाप्त हो सके | याद रखे लोग आपको कुछ समय तक तो परेशान कर सकते है पर आपके कार्य को रोक नही सकते |

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