लक्ष्मण रेखा,मर्यादा और समाज के सन्दर्भ में सीता की सीख रामायण एक ऐसा महाकाव्य है जो भारतीय संस्कृति और परम्परा का प्रतीक है। इसके हर पात्र और कथा का समाज में एक गहरा प्रभाव है। रामा यण केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं,बल्कि यह मानव जीवन और रिश्तों को समझाने का एक आदर्श उदाहरण भी है। इसके हरअध्याय में हमें रिश्तों,संस्कारों और कर्तव्यों का महत्व पर समझाया गया है। इसमें पिता-पुत्र, भाई-भाई, पति-पत्नी, और माता-पुत्र के रिश्तों को भी बड़ी खूब सूरती से चित्रित किया गया है। रामायण में एक विशेष पहलू है जो हर किसी को सबसे अधिक प्रभावित करता है,वह है माता सीता का चरित्र। माता सीता का जीवन,उनकी शक्ति,  त्याग और समर्पण महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत रहा है। लेकिन रामायण का एक पक्ष जो हमें गहराई से समझने की जरूरत है,वह है कि"लक्ष्मण रेखा"और इसका सीता के जीवन में महत्व। यह रेखा केवल एक रेखा नहीं थी, बल्कि एक मर्यादा की सीमाओं को दर्शाने का प्रतीक था। *लक्ष्मण रेखा का अर्थ और सीता का निर्णय* लक्ष्मण रेखा वह सीमा थी जिसे लक्ष्मण ने सीता की सुरक्षा के लिए खींचा था। उन्होंने सीता माता से विनती की थी कि वह इस रेखा के भीतर रहें, क्योंकि यह रेखा उन्हें किसी भी अनहोनी से बचा सकती थी। लेकिन रावण के छल के कारण, माता सीता ने इस मर्यादा से हटकर रेखा का उल्लंघन कर दिया। इस घटना का विश्लेषण यदि हम आज के समाज की दृष्टि से करें, तो यह हमें एक महत्वपूर्ण शिक्षा देती है। जब भी कोई व्यक्ति अपने जीवन में स्थापित मर्यादाओं का उल्लंघन करता है, उसे कुछ न कुछ परिणामों का सामना करना पड़ता है। रामायण की यह सीख सीता के माध्यम से हम तक पहुँचती है कि मर्यादा केवल बंधन नहीं, बल्कि हमारी सुरक्षा और सम्मान का प्रतीक है। *महिलाओं के लिए माता सीता का संदेश* माता सीता का यह संदेश आज के समाज की बहनों, बेटियों,और महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण सीख है। जब भी कोई स्त्री अपने कर्तव्यों और मर्यादाओं का पालन करती है, वह अपने परिवार और समाज का सम्मान भी करती है। मर्यादा का उल्लंघन करने से न केवल वह स्वयं कठिनाइयों का सामना करती है,बल्कि समाज में भी उसका प्रभाव भी पड़ता है। लक्ष्मण रेखा का पालन करना केवल भौतिक सीमा का पालन करना नहीं है,बल्कि यह आत्म-संयम, धैर्य, और अपनी आत्मा की मर्यादा को बनाए रखना है। इसका अर्थ यह नहीं कि महिलाएं अपने अधिकारों का त्याग करें। या अपनी स्वतंत्रता को सीमित करें,बल्कि यह है कि वे अपने निर्णयों में संतुलन बनाए रखें और समाज की भलाई के लिए भी सोचें। *आधुनिक समाज और मर्यादा का पालन* आज के समाज में,जहाँ महिलाएं हर क्षेत्र में प्रगति कर रही हैं, वहां मर्यादा और संस्कारों का पालन और भी आवश्यक हो जाता है। समाज की संरचना इस तरह की होनी चाहिए जहाँ सभी लोग अपनी-अपनी सीमाओं का पालन करें। मर्यादा का मतलब केवल भौतिक सीमाओं से नहीं है, बल्कि यह हमारे आचरण, विचारों और क्रियाओं का भी प्रतिनिधित्व करता है।
जब महिलाएं अपने जीवन में मर्यादा का पालन करती हैं, तो वह न केवल खुद को, बल्कि अपने परिवार और समाज को भी सुरक्षित रखती हैं। हर महिला को अपने आत्म सम्मान और गरिमा का ध्यान रखना चाहिए और अपनी सुरक्षा के लिए बनाई गई मर्यादाओं का सम्मान करना चाहिए। *संदेश*
रामायण का संदेश हमें यही सिखाता है कि मर्यादा और अनुशासन का पालन करना हमारे जीवन के लिए कितना महत्वपूर्ण है। माता सीता की कहानी हर स्त्री को यह समझने की प्रेरणा देती है कि वह अपने निर्णयों में सशक्त और मर्यादित बनी रहे। दशहरा का पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। इस पर्व पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम सभी अपनी मर्यादा और नैतिकता को हमेशा सर्वोपरि रखेंगे और समाज में एक सकारात्मक दृष्टिकोण को बनाए रखेंगे। माता सीता का संदेश हमें यह याद दिलाता है कि मर्यादा का पालन ही हमारी सच्ची सुरक्षा है।

         हिन्दी संवाद न्यूज से
          रिपोर्टर वी. संघर्ष
           

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