गुरव समाज रणजीत क्षेत्र सेवा समिति ने धूमधाम से मनाया गणगौर उत्सव
राऊ विधायक मधु वर्मा भी गणगौर माता के दर्शन हेतु पधारे
हेमंत मोराने, इंदौर। निमाड़ का सबसे बड़ा लोकपर्व गणगौर का उत्सव इंदौर में भी धूमधाम से मनाया गया। जिसमें कई समाजों के द्वारा गणगौर की स्थापन कर रणुबाई और धणीयर राजा की पूजा कर उत्सव मनाया गया। इंदौर के रणजीत क्षेत्र में रहने वाले गुरव समाज जानो ने भी अपने क्षेत्र
विदुर नगर में द्वितीय वर्ष के अवसर पर
रणुबाई और धणीयर राजा का बड़ी धूमधाम से श्रद्धा और भक्ति से बड़ी पूज। कर चल समारोह के साथ आगमन कर दस दिनों तक उत्सव मनाया। जिसमें सामाजिक भोज का भी आयोजन रखा गया। जिसमें महिलाओ ने बड़ा तमोल, भजन, गीत, संगीत, मेंहदी और पाती खेलने के साथ झालरिए दिए। माता जी को पानी पिलाने, खोला भराई की भी रस्म की गई।
गुरव समाज रणजीत क्षेत्र सेवा समिति के बसंत कुवादे ने बताया कि उत्सव के अवसर पर स्थानीय राऊ विधायक महोदय मधु वर्मा जी भी गणगौर माता के दर्शन हेतु पधारे, इस अवसर पर गुरव समाज रणजीत क्षेत्र सेवा समिति के सदस्यों द्वार
उनका जोरदार स्वागत किया गया।
गणगौर उत्सव को सफल बनाने में गणगौर उत्सव समिति के जगदिश बिरारे, कमलेश जाधम, तनाय पांजरे, बसंत कुवादेे, नवीन कुंवादे, देवेन्द गंगाजीवाले, राजेश काले, कपिल वाघे, मनोज चोलकर, महेन्द्र काले, शांतिलाल जी चौहान, महिला मंडल सदस्य अनिता कुवादे, उवर्शी गंगा जी वाले, पुजा जाधम, सरिका काले, मनीषा चोलकर, पूर्णिमा वाघे, छाया कुवादे , गणगौर माता रानी के कार्य वाहक पंडित दिपक प्रदीप जी जाधम द्वारा खुशी हर्ष उल्लास उमंग सनातन धर्म गुरव समाज निमाड़ का सुप्रसिद्ध आस्था विश्वास का पर्व गणगौर उत्सव समिति इन्दौर द्वारा सभी समाज बंधु के सहयोग से मनाया गया।
क्या होता है गणगौर पर्व और कैसे मनाते हैं
अनिता कुवादे ने बताया कि दरअसल, इस पर्व का आगाज होली के बाद होता है. होली की राख से 5 तपे हुए कंकड़ लेकर गौरी की स्थापना की जाती है. साथ ही होली की राख में गेहूं मिलाकर माता की मूठ रखी जाती है, यानी कि स्थापना की जाती है. इसके बाद बांस की टोकनी में मिट्टी डालकर गेहूं बोए जाते हैं और परंपरागत स्थानों पर बाड़ी बोई जाती है. इसे 8 दिनों तक सींचा जाता है. इसके बाद दर्शन के लिए इन बाड़ियों को खोला जाता है और फिर श्रद्धालु जवारों को रथ में रखकर अपने घर ले जाते हैं। रणुबाई और धणीयर राजा की होती है पूजा गणगौर पर्व पर पार्वती स्वरूप रणुबाई और शिव रूपी धणीयर राजा की पूजा-अर्चना की जाती है। श्रद्धालु रणुबाई को बेटी मानते हैं. बाड़ी से जवारे घर लाने के बाद कई श्रद्धालु रणुबाई से बेटी की तरह एक दिन और रुकने की मनुहार करते हैं। सामूहिक रूप से रथ बौड़ाने यानी रुकने की मनुहार भी होती है।
मान मनुहार कर जिन श्रद्धालुओं ने मां पार्वती रूपी रणुबाई को बेटी मानकर रोका था, उन्हें सार्वजनिक भंडारे और सुख-समृद्धि की कामना के साथ जवारों का विसर्जन कर दिया जाता है। हेमंत मोराने ने बताया की निमाड़ में इसकी छटा दिवाली से कम नहीं होती. इस पर्व में शामिल हर चेहरे पर खूब उत्साह नजर आता है. महिलाएं गणगौर के भजन भी गाती हैं. वसंत ऋतु के आगमन पर शिव और पार्वती के विवाह के उत्सव के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है।
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