मथुरा।दानवीर सेठ चौo छाजूराम लांबा का जन्म हरियाणा के एक जाट परिवार में सन् 1861 में भिवानी के अलखपुरा गांव में हुआ था।
1883 में वे रोजगार की तलाश में कलकत्ता चले गए जहाँ धीरे धीरे उनकी गिनती कलकत्ता के बडे व्यापारियों में होने लगी और एक दिन वे अपनी लगन और परिश्रम से कलकत्ता के सबसे बडे जूट व्यापारी बन गए। एक समय ऐसा भी आया जब लोग उन्हें जूट किंग कहने लगे। वे सेठ घनश्याम दास बिड़ला के घनिष्ट पारीवारिक मित्र थे। बिड़ला के बच्चे उन्हें नाना कहा करते थे। चौधरी छाजूराम रहबरे-आज़म चौधरी छोटूराम के धर्म-पिता भी थे। इन्होंने रोहतक में चौ. छोटूराम के लिए नीली कोठी का निर्माण भी करवाया। सेठ छाजूराम की दानदक्षता उस समय भारत में सुर्खियों में रहती थीं। कलकत्ता में रविंद्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन से लेकर लाहौर के डी. ए. वी. कॉलेज तक कोई ऐसी संस्था नहीं थी, जहाँ पर उन्होंने दान न दिया हो। चौधरी साहब ने शिक्षा के लिए लाखों रूपये के दान दिए, फिर वह चाहे हिन्दू विश्वविधालय बनारस हो, गुरुकुल कांगड़ी हो, हिसार-रोहतक (हरियाणा) व् संगरिया (राजस्थान) की जाट संस्थाए हों, हिसार और कलकत्ता की आर्य कन्या पाठशालाएं हों, हर जगह अपार दान दिया। इसके अलावा इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय दिल्ली, डी ए वी कॉलेज लाहौर, शांति निकेतन, विश्व भारती में भी बार-बार दान दिए। चौधरी छाजूराम ने गरीब, असमर्थ व् होनहार बच्चों के लिए स्कालरशिप प्लान निकाले, जिसके तहत वो सैंकड़ों बच्चों की शिक्षा स्पांसर करते थे। बताते हैं कि आजादी की लड़ाई लड रहे लगभग सभी बड़े नेताओं को इन्होंने मुक्त हाथों से दान दिया। महात्मा गांधी से लेकर पंडित मोतीलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, मदन मोहन मालवीय, जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, राजगोपालाचार्य, कृपलानी, जितेंद्र मोहन सैन गुप्ता तथा श्रीमती नेली सेन गुप्ता सहित तमाम आजादी की जंग लडने वाले नेताओं को सेठ छाजूराम ने दिल खोलकर दान दिया। इस विषय में उन्होंने कभी भी अंग्रेजी सरकार के नाराज होने की परवाह नहीं की।
सेठ छाजूराम ने ही सुभाष चन्द्र बोस को जर्मनी जाने के लिए खर्च दिया था। उन्होंने उस समय नेताजी को 5000 रुपये आजादी के संग्राम में लड़ने के लिए दिए थे। जिसका उपयोग नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी और जापान जाने के लिए उस धन का किया था। असहयोग और स्वदेशी आंदोलन के लिए उन्होंने 15000 रुपये दान दिए। कलकत्ता और पंजाब के अकाल पीडितों को सेठ जी ने दिल खोलकर पशुओं के चारे व इंसानों के अनाज के लिए योगदान देकर अनेक जानें बचाईं। चौधरी छाजूराम की दान सूची इतनी बड़ी है कि उसे एक लेख में पूरा लिख पाना संभव नहीं है।
वे एक महान देशभक्त थे। जब 17 दिसंबर, 1928 को भगतसिंह ने अंग्रेज अधिकारी सांडर्स की गोली मारकर हत्या की तो वे दुर्गा भाभी व उनके पुत्र को साथ लेकर पुलिस की आंखों में धूल झोंकते हुए रेलगाड़ी द्वारा लाहौर से कलकत्ता पहुंचे और कलकत्ता के रेलवे स्टेशन से सीधे सेठ चौo छाजूराम की कोठी पर पहुंचे, जहां सेठ साहब की धर्मपत्नी वीरांगना लक्ष्मीदेवी ने उनका स्वागत किया और एक सप्ताह तक अपने हाथ से बना हुआ खाना खिलाया। अमर शहीद भगतसिंह लगभग अढ़ाई माह तक उनकी कोठी की ऊपरी मंजिल पर रहे। उस वक्त इतनी हिम्मत और जोखिम तो सिर्फ एक सच्चा देशभक्त ही उठा सकता था। ऐसे थे महान दानवीर भामाशाह चौधरी छाजूराम।
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