ग्वालियर चंबल अंचल की राजनीति के एक सितारे स्वर्गीय एडवोकेट श्री सूबेदार सिंह सिकरवार बाबूजी जिनका जन्म बागी बाहुल्य चंबल इलाके के ग्राम खांडोली में उस समय हुआ जब देश आजाद भी नहीं हुआ था । खांडोली गांव के शिक्षक स्वर्गीय श्री रामदयाल सिंह सिकरवार जी के घर में खुशियों की पहली किलकारी उस समय गूंजी जब 5 जून 1941 को पुत्र रत्न के रूप में पहले पुत्र सूबेदार सिंह सिकरवार उनके घर में जन्मे। बाबूजी अपने चार भाइयों केशव सिंह, रामेश्वर सिंह, रामप्रकाशसिंह में सबसे बड़े थे। बाबूजी को संस्कार विरासत में मिले इसलिए एक पढ़े-लिखे शिक्षित परिवार में जन्म लेने की छाप जीवन परयंत्र बाबूजी के विचारों में दिखती रही।
उनके पिता शिक्षक स्वर्गीय श्री रामदयाल सिंह सिकरवार शिक्षक होने के साथ-साथ धार्मिक ग्रंथो के विशेष ज्ञाता रहे उन्हें रामायण, भागवत गीता, वेद ,पुराण का मुखाग्र ज्ञान था। जिसका असर एडवोकेट स्वर्गीय सूबेदार सिंह सिकरवार बाबूजी पर भी बचपन काल से ही पड़ा।
उनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा ग्राम खांडोली में ही हुई। जिसके बाद उच्च शिक्षा के लिए वह मुरैना आ गए और उन्होंने जिला मुख्यालय मुरैना में रहकर हायर सेकंडरी और बीकॉम तक की शिक्षा ग्रहण कर वकालत के लिए ग्वालियर अध्ययन किया।
स्वर्गीय श्री सूबेदार सिंह सिकरवार बाबूजी अपने छात्र जीवन काल से ही समाजवादी राजनीति के पुरोधा डॉ राम मनोहर लोहिया के विचारों से काफी प्रभावित थे और लोहिया के विचारों का अध्ययन करते हुए समाजवादी आंदोलन से जुड़ गए। अपने छात्र जीवन काल में ही छात्र राजनीति में भाग लेकर प्रथम मर्तबा महाविद्यालय के छात्र संघ चुनाव में भाग लिया और जनरल सेक्रेटरी चुने गए।
इस दौरान उन्होंने समाजवादी आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। नतीजतन वह ग्राम पंचायत से जनपद सदस्य चुने गए। यह उनकी राजनीतिक शुरुआत थी फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और उन्होंने बढ़ चढ़कर सामाजिक आंदोलन में भाग लेते रहे। दलित -आदिवासी ,गरीब मजलूमों के उत्थान के लिए मजदूरों का हक अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष दर संघर्ष करते रहे।
इस दौरान उन्होंने जिला सहकारिता में मुरैना जिले में चुनाव लड़ा और जिला संघ के अध्यक्ष पद पर सुशोभित हुए। समाजवादी आंदोलन के जरिए अपनी पहचान बनाने वाले स्वर्गीय बाबूजी पूर्व प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर जी के संपर्क में आए और पहली बार उन्होंने जौरा विधानसभा से सन 1977 में विधायक पद का चुनाव लड़ा तथा विधायक बन विधानसभा में पहुंचे।
अपने विधायक कार्यकाल के शुरूआती समय में एक बार बानमोर सीमेंट फैक्ट्री जिसकी एक इकाई कैलारस में भी थी उसके मजदूरों के वेतन भुगतान और एरियर भुगतान के लिए मजदूरों का आंदोलन चल रहा था। तब सीमेंट फैक्ट्री प्रबंधन एवं सरकार के खिलाफ विधायक रहते हुए बाबूजी मजदूरों के धरने में कूद गए। तत्कालीन सरकार ने आंदोलन का दमन करने की कोशिशें की लेकिन बाबूजी पीछे नहीं हटे और मजदूरों के साथ जेल चले गए। यह अपने आप में उनकी जनहितेसी सोच को दर्शाता है।
आपातकाल के समय भी बाबूजी समाजवादी आंदोलन के चलते समझौताबादी रुख ना अपनाते हुए सच के लिए लड़ने वाले बाबूजी 19 महीने तक मीसाबंदी रहे या यूँ कहें कि जेल में रहे। स्वर्गीय बाबूजी के दो बेटे अवधेश प्रताप सिंह भानु प्रताप सिंह दो बेटिया उमा और मीशा हैं । मीशा नाम से ही आप समझ गए होंगे उनकी बेटी मीसा का जन्म उस समय हुआ जब बाबूजी मीसाबंदी थे। इसलिए उन्होंने अपनी बेटी का नाम भी मीशा रख दिया।।
इतना ही नहीं जहां तक सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन की बात की जाए तो बाबूजी फिजूल खर्ची के सख्त खिलाफ थे। शादी संबंधों में होने वाली फिजूल खर्ची मृत्यु भोज जैसी कुरीतियों के खिलाफ भी बाबूजी निरंतर लड़ते रहे जिसकी शुरुआत भी उन्होंने खुद अपने घर से ही की। शादी विवाह में होने वाली फिजूल खर्ची को पहले उन्होंने अपने घर से ही रोका जिसकी नजीर उन्होंने समाज के लिए पेश की ऐसे कई उदाहरण है जो उनकी एक व्यापक सोच को दर्शाता है।
इस दौरान बाबूजी ने दूसरी बार सन 1990 में जनता दल से जौरा विधानसभा से चुनाव लड़ा और वह दूसरी बार विधायक चुने गए। 1993 तक का उनका कार्यकाल रहा।
सन 2008 में चंबल अभ्यारण के नाम पर लाखों लाख बीघा जमीन तथा चंबल के किनारे बसे गांव के किसानों की जमीन मध्य प्रदेश सरकार ने अपने कुछ पूंजीपति मित्रों के नाम कर दी। उसको लेकर उन्होंने चंबल बचाओ, किसान बचाओ आंदोलन छेड़ा जिसका नेतृत्व स्वर्गीय श्री बाबूजी ने किया। यह आंदोलन काफी बरसों तक चला और सन 2013 में मध्य प्रदेश सरकार ने आंदोलन के आगे माथा टेकते हुए अपने आदेश को वापस ले लिया और आंदोलनकारीयों की जीत हुई किसान की जमीन किसान के पास रही चंबल की जमीन चंबल के किसानों के पास रही। चाहे शक्कर फैक्ट्री कैलारस का सवाल हो, श्योपुर को जिला बनाने का सवाल हो या सबलगढ़ को जिला बनाने का सवाल हो बाबूजी ने मुरैना चंबल अंचल में होने वाले समस्त जन आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
किसान विरोधी तीन कानून के खिलाफ चली लड़ाई में भी बाबूजी की सहभागिता दिखाई दी। राजनीतिक सामाजिक उत्थान के क्षेत्र में बाबूजी ने कभी भी समाजवादी आंदोलन और समाजवादी विचारों से मुंह नहीं मोडा। हमेशा संविधान की रक्षा के लिए गरीब -मजलूम, मजदूरों के हक अधिकार की रक्षा के लिए दलित आदिवासियों की अधिकार की रक्षा के लिए निरंतर संघर्ष करते रहे।
अभी हालिया वर्षों में जब पचोखरा के एक दलित युवक पान सिंह जाटव का हत्याकांड हुआ उस समय बाबूजी अस्वस्थ चल रहे थे। बावजूद इसके भी पान सिंह जाटव को न्याय दिलाने के लिए अपनी अस्वस्थता के बावजूद भी बाबूजी आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लेते रहे।
चंबल क्षेत्र के विभिन्न आंदोलनों में स्वर्गीय श्री बाबूजी की सक्रिय भागीदारी रही। आज जन आंदोलन जब कमजोर पढ़ते चले जा रहे हैं। ऐसे में बाबूजी की कमी हमेशा खलती रहेगी।
चंबल के लोहिया के देहावसान से चंबल के जन आंदोलन को एक दुखद क्षति पहुंची है। जिसकी पूर्ति कर पाना संभव नहीं है। क्योंकि विरले ही होते हैं जो आम जनमानस के उत्थान के बारे में सोचते हैं ,कल्याण के बारे में सोचते हैं ।
विगत बुधवार को जब उनकी श्रद्धांजलि सभा में शामिल सभी की आंखें, सभी के चेहरे एक ही चीज बखां कर रहे थे कि चंबल के लोहिया का अंत हो गया। अब जनता के हित की बात कौन करेगा।
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubts, please let me know