मथुरा।कोसीकलां,ब्रजांचल के कण कण में योगीराज भगवान् श्री कृष्ण की नित्य लीलाओं का वर्णन मिलता है, इसी प्रकार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम के भक्तों व् उनके वंशजों के आधिपत्य का भी उल्लेख #सनातन धर्म के शास्त्रों सहित इतिहास के पन्नों में दिखाई देता है ! बृज में कान्हा गुजरात में द्वारकाधीश ग्वाल वालों का गोपाल रसिकजनों का कन्हैया विरक्तजन का #गोविंद के पालनहार नंदबाबा की कोषस्थली, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के पुत्र कुश के आधिपत्य की स्थली प्राचीन काल में कुशवन के रूप में विख्यात औधौगिक नगरी के नाम से सुशोभित कोसीकलां का भरत मिलाप मेला उत्तर भारत में अपनी अनूठी शान समेटे हुए है !
जिसकी बानगी यहां प्रतिदिन निकलने वाली झाँकियों में दिखाई देती है, सवारियों के स्वरूप के सजाने के बाद उन्हीं श्रंगरियों का सहज भाव में प्रभु के आगे नतमस्तक हो जाना अतिवंदनीय अनुकरणीय संस्कारों को प्रदर्शित करता है !
ठीक इसी प्रकार यहां के लीला मंचन का दायित्व निभाने वाले परिवारों का योगदान मुक्त कंठ से प्रशंसनीय है !
भारतीय सनातन संस्कृति में श्रीराम लीला मंचन का महत्वपूर्ण स्थान है। वैसे तो सम्पूर्ण भारत में रामलीला बडे़ ही उत्साह के साथ होती है।
कोसीकला में कालांतर से धार्मिक आयोजन होते रहते हैं जिसमें श्री रामलीला महोत्सव को विशेष धार्मिक कार्यक्रम के रूप में प्रत्येक वर्ष बड़ी धूमधाम से मेले के रूप में मनाया जाता है !यह मेला 15 दिन निरंतर चलता रहता है, रामलीला की तैयारियां करीब एक माह पूर्व ही प्रारम्भ हो जाती हैं । कोसीकलां की रामलीला मर्यादा एंव भाव प्रधान होती है। यहां रामलीला में बनने वाले मुख्य स्वरूपों की भूमिका अविवाहित ब्राहमण बालक ही निभाते हैं, पंच रूपों में श्रीराम सीता लक्ष्मण व भरत शत्रुध्न की 16 वर्ष के कम आयु के ब्राहमण बालक भूमिका निभाते हैं तथा धर्मपरायण जनता उनमें भगवान् की छवि का अनुभव कर नतमस्तक होती है।
रामलीला का मंचन पुरूष के आदर्श, पिता_पुत्र भ्राता_मित्र सेवक_भक्त के विविध रूप दर्शाता है वहीं नारी के भी आदर्श, माता_पत्नी बहिन_सेविका और भक्त के विविध रूपो को दर्शाता है ! रामलीला में भूमिका निभाने वाले सभी पात्रो का श्रृंगार बनारस की तर्ज पर किया जाता है, किसी भी प्रकार की कोई कृत्रिम वस्तु का प्रयोग पात्रों के श्रृंगार में नहीं किया जाता ! संपूर्ण रामलीला महोत्सव में श्रंगारी सहित कलाकार निशुल्क सेवायें प्रदान कर भाव से सेवा करते हैं ! रामलीला के सभी पात्र प्रशिक्षण के समय से ही पूर्ण निष्ठा के साथ महीनों भूमि पर शयनादि नियमों का पालन करते हैं ! पूर्व में कोसीकलां रामलीला छोटे पर्दे पर होती थी। आज यही रामलीला ने वृहद स्वरूप ले लिया है। यहां आयोजित होने वाले रामलीला महोत्सव को देखने के लिये दूर दराज से हजारों की संख्या में नर नारी आते हैं । विशेष रूप से कोसीकलां की श्रीराम बारात, वन गमन की पैदल सवारी, मां काली का मेला व दशहरा अपनी अमिट छाप छोडते हैं लेकिन रामलीला के दौरान होने वाला भरत_मिलाप मेला अपनी विशिष्टिता के कारण देश के दूर दराज तक अपनी पहचान बनाये हुये है ! इस दौरान दर्जनों की संख्या में भव्य व आर्कषक झाँकियां झाँकी निर्माताओं के द्वारा निकाली जाती हैं, जिनको देखने के लिये हजारों की संख्या में मौजूद लोग सडकों पर चहुँओर छा जाते हैं ! मेले के दौरान पुष्पक विमान में सवार होकर श्रीराम लक्ष्मण माता जानकी हनुमानजी के साथ अवधपुरी बने भरतमिलाप चौक पर पहुचते हैं ! अवधपुरी से कुछ दूरी पर स्थित पुष्पक विमान रूक जाता है और पुष्पक विमान के आने का समाचार हनुमानजी के द्वारा श्रीभरत जी को दिया जाता है, भरतजी अपने भाई शत्रुध्न और तीनों माताओं के साथ पुष्पक विमान के पास पहुचते हैं ! इस मौके पर उपस्थित जनसमूह पुष्पक विमान से लेकर भरतजी के स्थान तक कंधों की मानव श्रृखला बना देते हैं ! भरतजी एवं शत्रुध्नजी मानव श्रृंखला से होकर पुष्पक विमान तक पहुचते हैं मानव श्रृखंला में लगा प्रत्येक व्यक्ति बस मन में यही कामना करता है कि भरतजी या शत्रुध्नजी का चरण कंधे पर लग जाये तो जीवन धन्य हो जाये, इसी कामना को लेकर नमतस्तक होकर मानव श्रृखंला में प्रभु से विनती करता है। जैसे ही भरतजी एवं शत्रुध्नजी पुष्पक विमान पर पहुचते हैं तो भरतमिलाप चौक पर मौजूद हजारों की संख्या में लोगों के द्वारा सारा वातावरण श्रीराम माता जानकी के जयकारों से गुजायंमान हो जाता है ! चारों भाईयों के मिलन का समय मौके पर मौजूद प्रत्येक श्रद्वाुल अपने मन में कैद कर ले जाता है ! कोसीकलां का यही दृश्य भ्रात् प्रेम की छाप लोगों के दिलों पर छोड़ जाता है और प्रत्येक व्यक्ति अगले वर्ष पुनः मेले की सुन्दर कामना लिए अपने गंतव्य को प्रस्थान कर जाता है !
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