मथुरा।कान्हा की नगरी में 21 दिन तक अब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के जयकारे गुंजायमान होंगे। मथुरा में रामलीला का विधि विधान से पूजन अर्चन कर शुभारंभ किया गया। रामलीला के पहले दिन मुकुट पूजन और प्रथम पूज्यनीय गणपति की शोभायात्रा निकाली गई।रामलीला की शुरुआत गणेश जी के पूजन से हुई। प्रथम पूज्यनीय का पहले पूजन किया गया उसके बाद श्री कृष्ण जन्मभूमि से शोभायात्रा निकाली गई। श्री कृष्ण जन्मस्थान से शुरू हुई शोभायात्रा डीग गेट,भरतपुर गेट,चौक बाजार,स्वामी घाट,विश्राम घाट होकर वापस जन्मस्थान पहुंची।
शोभायात्रा से पहले श्री कृष्ण जन्मस्थान के लीला मंच पर मुकुट पूजन कार्यक्रम आयोजित किया गया। यहां रामलीला सभा के पदाधिकारियों ने मंत्रोचार के मध्य लीला के दौरान स्वरूपों द्वारा धारण किए जाने वाले मुकुट,शस्त्रों की पूजा अर्चना की। करीब 1 घंटे तक पूजा अर्चना करने के बाद शनिवार की देर शाम गणेश जी की शोभायात्रा निकाली गई।
शनिवार देर शाम मुकुट पूजन से शुरू हुई रामलीला 21 दिन तक चलेगी। यहां लीला के दौरान 11 अक्टूबर को राम जन्म,15 अक्टूबर को राम बारात,24 अक्टूबर को दशहरा,25 अक्टूबर को भरत मिलाप,26 अक्टूबर को राज तिलक और 27 अक्टूबर को सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ लीला का समापन किया जायेगा।
भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा के त्रेता में लक्ष्मण जी राजा रहे। यही वजह है कि यहां होने वाली रामलीला देश भर में होने वाली रामलीलाओं में अपना अलग स्थान रखती है। 186 वर्ष पहले शुरू हुई रामलीला बदस्तूर जारी है। यहां कोरोना काल में भी रामलीला नहीं रुकी।
मथुरा रामलीला की खास बातचीत यह है कि यहां अभिनय करने वाले पात्र बाल्य अवस्था के होते हैं। इसके पीछे भाव है कि भगवान कृष्ण ने ब्रज में बाल्य अवस्था में रहते हुए ही लीला की थी। इसलिए वही भाव रामलीला में रखा जाता है। भगवान के बनने वाले स्वरूप बच्चे ही होते हैं।रामलीला में अभिनय निभाने वाले पात्रों को प्रशिक्षण लेने से लेकर रामलीला पूरी होने तक मर्यादा का पालन करना होता है। पात्र सांसारिक मर्यादाओं का पालन करते हैं,किसी भी प्रकार का नशा नहीं करेंगे,ब्रह्मचर्य का पालन किया जायेगा और जमीन पर बिस्तर लगा कर सोएंगे। यही नियम मुकुट पूजन के दौरान होने वाले वर्ण बंधन से रामलीला सभा के पदाधिकारियों को निभाने होते हैं।
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