राजकुमार गुप्ता देश की राजधानी दिल्ली कहें या इंद्रप्रस्थ में जी-20  देशों के सम्मेलन में जो घोषणा पत्र स्वीकार किया गया है वो सचमुच एक इतिहास है। इसी दिल्ली ने एक जमाने में दुनिया में गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत से वाकिफ ही नहीं कराया था बल्कि उस पर चलना सिखाया था। एक जमाना है कि जब यही दिल्ली दुनिया में बहुपक्षवाद को पुनर्जीवित कर रही है। जी -20  का सम्मेलन खट्टी-मीठी यादें छोड़कर जाएगा ,क्योंकि इस सम्मेलन में जहाँ कुछ स्वर  समवेत हैं तो कुछ के स्वर कड़वाहट से भरे भी है।  ख़ास तौर पर चीन के।
हमारे प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी पहले ' आपदा को अवसर में बदलने ' में सिद्धहस्त माने जाते थे लेकिन उन्होंने इस बार अवसर को ही  इतिहास में बदलने की कोशिश कर दिखाई है। मोदी जी के प्रशंसक बुरा न मानें लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए कि हमारे प्रधानमंत्री जी की रूचि आरम्भ से इतिहास में रही है भूगोल में नही।  जी -20  समूह का सदस्य चीन शुरू से हमारा भूगोल बिगाड़ने की कोशिश करता आया है ,लेकिन हम कभी अपने इस ताकतवर मित्र के खिलाफ तनकर खड़े नहीं होते ।  जी- 20  के दिल्ली सम्मेलन में भी हमने चीन को घेरने की कोशिश खुलकर नहीं की ,केवल उसे अलग-थलग करने की कोशिश करते दिखाई दिए।
विदेशी मामले और पड़ौसियों से रिश्तों का चूंकि मै जानकार नहीं हूँ अन्यथा मै अधिकारपूर्वक लिखता की जी-20  समूह का सम्मेलन एक ' मेगा शो ' के अलावा कुछ नहीं है ,लेकिन मै ऐसा नहीं लिख सकता क्योकि  इस मेगा शो पर हमारे देश के हजारों करोड़ रूपये खर्च हुए है। इसलिए मैं ये मानकर चलता हूँ कि इस मेगा शो के जरिये सचमुच दिल्ली ने एक नया इतिहास लिखा है जो गुटनिरपेक्षता से एकदम अलग है। आज दुनिया जिस दौर से गुजर रही है उसमें बहु पक्षता के बजाय गुटनिर्पेक्ष्ता पहले की तरह कहीं ज्यादा मुफीद है। दुर्भाग्य से दुनिया क्या, हम खुद इसे भुला चुके हैं और खुद एक गुट बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
दिल्ली और भारत का भक्तमंडल भले ही कितना शोर  मचाये कि हम इस सम्मेलन के जरिये विश्व गुरु बन गए हैं किन्तु हकीकत इसके ठीक विपरीत है।  ये सम्मेलन हर साल एक नए सदस्य देश की मेजबानी में होता है ,इसलिए इसकी मेजबानी किसी देश को यदि विश्वगुरु बनाती है तो हमसे पहले इंडोनेशिया  और दुसरे मुल्क विश्वगुरु बन चुके हैं। ये सम्मेलन विश्वगुरु बनने या बनाने के लिए गठित नहीं किया गया।  इसका उदेश्य कुछ अलग ही है। हमें इसी उद्देश्य को हासिल करने में कितनी कामयाबी मिली ये देखना चाहिए। इस लिहाज से मै जी-20  समूह के इस सम्मेलन को कामयाब मानता हूँ कि इसमें एक घोषणा पात्र स्वीकार किया गया। मुझे इस सम्मेलन को देखकर अपने मध्यप्रदेश में कांग्रेस द्वारा नौवें दशक में आयोजित किया गया ' डबरा सम्मेलन ' याद आता है ।  इसके  जरिये कांग्रेस में गुटबाजी समाप्त करने की कोशिश की गयी थी ।  मुझे लगता है कि जी -20  के दिल्ली सम्मेलन में जिस तरह का घोषणा पात्र स्वीकार किया गया है उससे सदस्य देशों में एकजुटता के बजाय गुटबाजी बढ़ेगी।
आइये अब जी- 20  के दिल्ली सम्मेलन के घोषणापत्र पर एक नजर डालें।  इसमें कहा गया है कि -' सदस्य देश मजबूत, दीर्घकालीक, संतुलित और समावेशी विकास ,सतत विकास लक्ष्यों पर आगे बढ़ने में तेज़ी,दीर्घकालीक भविष्य के लिए हरित विकास समझौता,21वीं सदी के लिए बहुपक्षीय संस्थाएं और बहुपक्षवाद को पुर्नजीवित करने के लिए मिलजुलकर काम करेंगे। नई दिल्ली घोषणा पत्र में कहा गया, "यूक्रेन में युद्ध के संबंध में बाली में हुई चर्चा को दोहराते हुए हमने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासभा प्रस्तावों पर अपने राष्ट्रीय रुख को दोहराया और इस बात पर ज़ोर दिया कि सभी देशों को संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उद्देश्यों और सिद्धांतों के अनुरूप कार्य करना चाहिए."
आपको बता दूँ  कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर के मुताबिक़, सभी देशों को किसी भी अन्य देश की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता या राजनीतिक स्वतंत्रता के ख़िलाफ़ क्षेत्रीय अधिग्रहण की धमकी या बल के उपयोग से बचना चाहिए. परमाणु हथियारों का उपयोग या उपयोग की धमकी अस्वीकार्य है."लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि इस चार्टर का उललंघन कौन करता है ? शायद इसे चीन के खिलाफ माना गया है जबकि ऐसा नहीं ह।  ये धमकियां देने वाले देश हमारे साथ गलबहियां डालकर खड़े दिखाई दे रहे हैं।
सम्मेलन से हमें क्या हासिल होगा या हम क्या हासिल नहीं कर पाएंगे,इस पर चर्चा बाद में की जाएगी । फिलहाल  अच्छी बात ये है कि हमने इस मौके का फायदा अनेक देशों के साथ अपने द्विपक्षीय रिश्ते सुधरने के लिए भी किया है ।  हमने इस सम्मेलन में वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा को भी चिन्हित करने की कोशिश की है ।  सम्मेलन में एक ' धरती,एक भविष्य' के अलावा भारत के सियासी मुद्दे ' भारत ' को भी शामिल करने की कोशिश की है। हमारी कोशिशों के हासिल का इस्तेमाल कल की सियासत के लिए एक अच्छा मसाला है।  संसद के विशेष सत्र में और संसद के बाहर अगले महीनों में होने वाले देश के पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी ये दिल्ली घोषणापत्र का झुनझुना बजाया जाएगा। क्योंकि कुछ तो नया चाहिए !। बहरहाल सम्मेलन राजी-ख़ुशी सम्पन्न हो जाये यही हम सब की कामना है ।  इस सम्मेलन के जरिये भारत की उस छवि को भी सुधरने की कोशिश की जाना चाहिए जो पिछले दिनों मणिपुर जैसी दर्दनाक घुटाओं के कारण बिगड़ी थी। सम्मेलन की सफलता के लिए शुभकामनाएं और बधाई। 

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