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नवदुगा उत्स्व के पहले ही संसद का विशेष सत्र देश की महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण का क़ानून बनाने के साथ समाप्त हो गया। ये विशेष सत्र का तोहफा है देश की महिलाओं के लिए। ये सरकारी तोहफा नहीं बल्कि देश कि और से दिया गया तोहफा है । अब बारी है राजनीतिक दलों की और से महिलाओं के सामने इस झुनझुने को बजाने की। जो जितनी जोर से ये झुनझुना बजायेगा ,वो उतना ज्यादा महिलाओं का समर्थन हासिल करेगा। दरअसल इस क़ानून का श्रेय अकेले सत्तारूढ़ दल नहीं ले सकता ,क्योंकि ये क़ानून संसद की आम राय से यानि सर्व सम्मति से बना है। देश में अदावत की राजनीति के इस युग में सर्व्सम्मत्ति निश्चित ही एक बड़ी उपलब्धि है। ये क़ानून उस नारियल को फोड़ने जैसा है जिसे चार महाबली सरकारों ने तोड़ने के लिए 11 वार किये तब कहीं इसमें से मृदुजल निकला।
सत्तारूढ़ भाजपा ने अपनी खिसकती जमीन बचने के लिए जितने भी मिसाइल छोड़े वे एक के बाद एक फुस्स होते गए। यहां तक की सनातन पर हमला और जी-२० की कथित सफलता भी काम नहीं आई ,क्योंकि ये दोनों मुद्दे जनता के गले से नीचे उतरे ही नहीं। ऐसे में हारकर सरकार और सरकारी पार्टी को संसद का विशेष सत्र आहूत कर महिला आरक्षण विधेयक को देश के सामने लाना पड़ा । सरकार विधेयक में नया कुछ जोड़ नहीं सकी इसलिए इस विधेयक का नाम ही बदल दिया गय। लेकिन नाम बदलने से मकसद तो नहीं बदलता। सरकार का दांव था की चुनावी मौसम में विपक्ष इस विधेयक को लेकर उलझ जाएगा ,किन्तु ऐसा हुआ नही। ये नारी शक्ति वंदन विधयेक विपक्ष के गले की फांस नहीं बन पाया। कांग्रेस ने तो विशेष सत्र शुरू होने से पहले ही सरकार को पात्र लिखकर इस विधेयक को लाने कीमांग रख दी थी । खुद कांग्रेस की श्रीमती सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री जी को इस बाब्ड पात्र लिखा था।
अब जब एक विकलांग विधेयक संसद में पारित हो गया है तो सरकार और सरकारी पार्टी के हाथ से इसका श्रेय भी जाता रहा । अब इस विधेयक को क़ानून बनाने का श्रेय सभी दलों को देना होगा ,यदि नहीं दिया जाएगा तो सरकार की बेईमानी जनता के सामने आ जाएगी। जहाँ तक सवाल सरकारी पार्टी की ईमानदारी का है तो इस बारे में मुझे कुछ कहना नहीं है ,क्योंकि देश इस बात को लेकर पूरी तरह वाकिफ है। सरकार ने पिछले ९ साल में किस तरह से अपनी ईमानदारी का प्रदर्शन किया है वो किसी से छिपा नहीं है सरकार ने जनता से इस कालखंड में जो कहा सो किया नहीं और जो नहीं कहा वो सब किया। अच्छे दिनों की बात का उल्हाना देना भी अब जनता ने छोड़
दिया है ,क्योंकि सरकार के कान पर जून ही नहीं रेंगती ।
सरकार और सरकारी पार्टी के लिए ये मौका है कि वो इस कथित उपलब्धि के लिए नेहरू -गांधी खानदान के सदस्यों की ही तरह बेशर्मी का प्रदर्शन करते हुए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के गले में ' भारत - रत्न ' का तमगा भी डाल ही दे । पता नहीं फिर ये मौक़ा हाथ में आये या न आये । हालाँकि सरकारी पार्टी भाजपा का ख्वाब 2047 तक देश की सत्ता में रहने का है। ख्वाब देखना कोई अपराध नहीं है । भाजपा को इस मामले में हमारी हार्दिक शुभकामनाएं है। कांग्रेस ने भी शायद ऐसा ही कोई ख्वाब संजोया होगा ,लेकिन उसका ख्वाब भी एक अरसे बाद टूटा hi। ख्वाब वैसे भी टूटने के लिए होते है। बहुत कम ख्वाब ऐसे होते हैं जो साकार हो पाते हैं।
नारी शक्ति वंदन विधेयक को तो पारित होना ही था ,लेकिन अब असली अग्निपरीक्षा सभी राजनितिक दलों की है कि वे क़ानून लागू होने की प्रतीक्षा किये बिना पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के साथ ही अगले आम चुनाव में बिना किसी कानूनी प्रावधान के ही 33 फीसदी महिलाओं को अपना उम्मीदवार बनाकर दिखाएँ । क़ानून को अमल में आने के लिए परिसीमन और जनगणना का इन्तजार क्या करना ? अब बारी राजनितिक दलों में काम करने वाली महिलाओं की भी है कि वे अपने-अपने दल से अपना-अपना हिस्सा मांगें और जो आनाकानी करे उसकी ' कान-कुच्ची ' कर डालें। अन्यथा थोथा चना घना बजेगा ही।
आजादी के अमृतकाल में सियासत यदि देश जुमलेबाजी से मुक्ति के खिलाफ भी संघर्ष का श्रीगणेश कर ले तो बेहतर है । इसके लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की भी जरूरत नहीं ह। सब जानते हैं कि जुमलेबाजी ने इस देश का बहुत नुक्सान किया है।देश रोज नए क़ानून बनाता,बिगाड़ता है इसलिए ये मौक़ा है कि एक ऐसा क़ानून भी बनाया जाये जिसमें ' जुमलेबाजी ' को गैर जमानती और जघन्य अपराध घोषित कर इसकी सजा आजन्म चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध और जुर्माना दोनों हों। राजनीति से जिस दिन जुमलेबाजी का खात्मा हो जाएगा आप तय मानिये देश की राजनीती ही नहीं देश की तस्वीर भी बदल जाएगी।
देश का दुर्भाग्य है कि देश के नेता न जनार्दन से डरते हैं और न जनता -जनार्दन से। नेताओं को किसी से डर लगता ही नहीं है । इतने निडर नेता मैंने दुनिया भर में नहीं देखे । लोग भगवान से न डरें ,जनता से न डरें लेकिन कम से कम अपने जमीर यानि अंतरात्मा से तो भय खाएं,किन्तु इनके भीतर अब आत्मा भी नहीं है जो इन्हें डरा सके। देश को इस तरह के आत्माविहीन ,निर्दयी नेताओं से मुक्ति चाहिए। देश की नयी पीढ़ी और अब आधे आबादी यानि देश की महिलाओं का दायित्व है कि वे ऐसे निर्मम नेताओं को चिन्हित करें और उन्हें राजनीति से बाहर का दरवाजा दिखाएं।
नारी शक्ति वंदन विधेयक के संसद में पारित होने से होंसे -फूले फिर रहे नेताओं से किसी ने ये नहीं पूछा कि इस क़ानून के बाद भी क्या देश की गरीब महिलायें देश की बेहद मंहगी हो चुकी चुनाव प्रक्रिया में हिस्सेदारी कर पाएंगी ? या ये क़ानून भी खानदानो की महिलाओं के लिए संसद की सीढ़ी बनकर रह जाएगा । नारी शक्ति वंदन क़ानून पर अमल के लिए ये भी आवश्यक है कि चुनावों का खर्च बांधा जाये ताकि एक आम अहिला भी इस प्रक्रिया में भाग ले सकें। अन्यथा वो ही कहावत चरितार्थ हो जाएगी कि -' हाथ न मुठी-खुरखुरा उठी । नारी शक्ति की वंदना के लिए क़ानून बनाने के साथ ही संसद का आंगन सीधा कीजिये ताकि लोकतंत्र की राधा वहां जमकर नाच सके ,झूम सके। देश की महिलाओं को एक बार फिर से बधाइयाँ और शुभकामनाएं।
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