भारत में श्रवण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नागों को पूजने का विधान है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग देवता माने गए हैं। नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा, व्रत रखने और कथा पढ़ने से व्यक्ति को कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है, भय दूर होता है और परिवार की रक्षा होती है।दुर्भाग्य ये है कि हमने जहरीले नागों को पूजने के साथ ही सम्प्र्दायुक्ता के जहर से भरे खादीधारी नागों की भी पूजा शुरू कर दी ,आज ये खादीधारी नाग पूरे लोकतंत्र और मानवजाति के लये खतरा बन गए हैं।
आज से पांच दशक पहले हमारी माँ जीवित नागों की पूजा करतीं थीं । गली-गली में सपेरों के दल नागों को लेकर घर-घर दस्तक देते थे ।सपेरों की बीन की धुन सुनकर मन झूमने लगता थ। घर आये नागों को अक्षत,चंदन लगाकर पूजा जाता था ,उन्हें दूध पीने को दिया जाता था,हालाँकि वे दूध पीते कभी नहीं दिखाई दिए। सपेरों को नगद दक्षिणा के साथ नए-पुराने वस्त्र दिए जाते थे। नाग मंदिरों पर नाग प्रतिमाओं की पूजा के लिए कतारें लगतीं थीं । लोग भक्तिभाव से नागों को पूज कर कृतार्थ अनुभव करते थे ,ताकि नाग व्याधि से बचे रहें।
दुनिया में नागों की 3600 परजात्यां है ,भारत में इनकी संख्या 333 है, लेकिन हम अष्टनागों को ही जानते हैं। ये अष्टनाग अनन्त, वासुकि, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट और शंख है। इन्हें पूजने से ही बाक़ी के नाग भी संतुष्ट हो जाते हैं। मान्यता है कि महाभारत काल में युधिष्ठिर के बाद अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को राजा बनाया गया । एक शाप की वजह से परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाग के डंसने से हो गई थी। परीक्षित के बाद उसका पुत्र जनमेजय राजा बना तो उसने अपने पिता की मृत्यु का बदला नागों से बदला लेने कि लिए पृथ्वी के सभी नागों को एक साथ मारने के लिए नाग दाह यज्ञ करवाया। इस यज्ञ की वजह से नाग खत्म होने लगे। जब ये बात आस्तिक मुनि को मालूम हुई तो वे तुरंत राजा जनमेजय के पास पहुंचे।
कहा जाता है कि दयालु आस्तिक मुनि ने राजा जनमेजय को समाझाया और नाग यज्ञ रुकवाया। जिस दिन ये घटना घटी, उस दिन सावन शुक्ल पक्ष की पंचमी थी। उस दिन आस्तिक मुनि के कारण नागों की रक्षा हो गई। इसके बाद से नाग पंचमी पर्व मनाने की शुरुवात हुई ।
हम तब से अब तक नाग पंचमी तो मनाते हैं लेकिन नागों कि सबसे बड़े दुश्मन हम लोग ही है। हमने उनके आवास छीन लिए । उन्हें मारने को अपना परम धर्म समझ लिया । इसलिए हमारी नाग पूजा एक छद्म से ज्यादा कुछ नहीं। कालांतर में नागों ने मनुष्य से अपना बदला लेने कि लिए नेताओं का रूप धारण कर लिया । आज वे खादीधारण करते हैं और जनसेवा कि नाम पर मनुष्य प्रजाति को हर रोज डसते है।
हमारे पुरखे कहते थे कि अब लोकतंत्र में चारों तरफ नाग ही नाग है। आप इनके संरक्षण में रहने कि लिए अभिशप्त है। आप एक नाग नाथ को गले से उतारेंगे तो दुसरे सांपनाथ को गले में डालना पडेगा। नागों कि नाम इतने विविध हैं कि कहना मुश्किल है कि इनकी प्रजातियां 3600 हैं या 36 हजार। लोकतंत्र में नागलीला आपको पंचायत से लेकर संसद की सीढ़ियों तक देखने को मिल सकती है । इनके नाम कमलनाथ भी हो सकते हैं और ठगराज भी। इन्हें पहचानना आसान काम नही। इसलिए कलियुग में नाग किसी भी नाम से सामने आएं तो इन्हें या तो पूजिये या हाथ जोड़कर विदा कर दीजिये। चुनाव कि समय देश की धरती नागों से भर जाती है।
हम भारतीय धारणाओं और किवदंतियों पर भरोसा करने वाले लोग है। हमारी दादी बताती थीं कि नाग दाह यज्ञ की आग से बचाने के लिए आस्तिक मुनि ने नागों पर दूध डाल दिया था। इसी मान्यता की वजह से नाग पंचमी पर नाग देव को दूध चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई है।लेकिन इस परम्परा से नागों का जीवन खतरे में पड़ गया। कालांतर में हमारे यहां नाग या तो पथरा गए हैं। उनकी प्रतिमाएं बन गयीं हैं या फिर उन्होंने अपने आपको तांबें कि नागों में तब्दील कर लिया है । आप चढ़ाते रहिये दूध। उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। नाग अपनी पूजा से कितने खुश होते हैं ,ये कोई नहीं जानता ,क्योंकि नाग अपनी ख़ुशी नाच-गाकर प्रकट नहीं करते। खादीधारी नाग अवश्य अपनी ख़ुशी जताने कि लिए रैलियां करते है। पदयात्राएं और रथयात्राएं निकालते हैं।
जमीन कि नीचे बिलों और बामियों में रहने वाले नागों ने मनुष्यों से बचने कि लिए उनकी आस्तीनों को ही अपना घरोंदा बना लिया है । धरती कि नीचे रहने वाले नाग भले ही मणिधारी और इच्छाधारी न होते हों लेकिन सियासत कि खादीधारी सांप मणिधारी भी होते हैं और इच्छाधारी भी। खादीधारी साँपों कि बिलों में यदि ईडी और सीबाई तलाशी ले तो दुनिया बाहर की सम्पत्ति मिल सकती है ,लेकिन दुर्भाग्य ये है कि ऐसा होता नहीं है। ईडी और सीबीआई भी खादीधारी साँपों से डरती है ,क्योंकि अंततोगत्वा नियुक्ति और प्रमोशन में तो इन्हीं नागों और साँपों की चलती है।
चूंकि नागों और साँपों से बचना असम्भव है इसलिए चुनाव कि वक्त कोशिश करना चाहिए की कम से कम जहरीले सांप चुने जाएँ। हमारे पास सिंघासन पर बैठने कि लिए नागों का कोई विकल्प नहीं है। जो भूमिनाग यानि केंचुए हैं वे संविधानिक पदों पर काबिज हो जाते हैं। नागों और भूमि नागों में फर्क ये होता है कि नाग फुफकारते हुए बिना रीढ़ कि भी एक-दो फुट तक खड़ा रह सकता है किन्तु भूमि नाग की तो रीढ़ की हड्डी होती ही नहीं है। नाग को आप मार भी सकते है। पकड़कर अजायबघरमें भी डाल सकते हैं लेकिन भूमिनाग तो अमर है। खंड-खंड होकर भी जीवित रहता है । उसे अपना वंश बढ़ाने कि लिए प्रजनन की भी आवश्यजता नहीं होती। नाग कि पास तो वंश वृद्धि कि लिए नागिन भी होती ह। नागिन अंडे भी देती है । उनसे सपोले निकलते हैं किन्तु भूमिनाग को ऐसा उच्च नहीं करना पड़ता। भोमिनाग बिना अंडे दिए बिना भी अपनी प्रजाति को आगे बढ़ा लेता है ।
सांप उड़ नहीं सकते थे लेकिन खादीधारी सांप सब कुछ कर सकते है। ये उड़ सकते हैं ,दौड़ लगा सकते हैं। छिप सकते हैं। कुलांचें भर सकते हैं। मैंने इन्हें हर गतिविधि में संलग्न देखा है । ये मणिपुर में भी मिल सकते हैं और हरियाणा में भी। ये जहर फैलाने कि साथ आग भी लगा सकते है। हिंसा भी फैला सकते हैं। हत्याएं भी करा सकते है। इसलिए इन्हें दूर से पूजते रहो। आस्तीनों में मत पालो। हम दुनिया के उन लोगों में से हैं जो नागों का जन्म मनुष्य योनि से ही मानते हैं। दंतकथा है कि महाभारतकाल में ऋषि कश्यप का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री कद्रु से हुआ था। इन दोनों से ही नागों का जन्म हुआ। कद्रू ने एक हजार नाग प्रजातियों को जन्म दिया था। इनमें से आठ नाग खास थे। इनके नाम हैं- वासुकि, तक्षक, कुलक, कर्कोटक, पद्म, शंख, चूड़, महापद्म और धनंजय। वासुकि को नागों का माना जाता है। तक्षक नाग ने राजा परिक्षित को डसा था।
बहरहाल नाग पंचमी पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। उम्मीद करता हूँ कि आप लोकतंत्र कि नागों को पहचानकर उनके साथ यथायोग्य व्यवहार करेंगे। नाग भले ही जहरीले होते हों लेकिन मनुष्य को जहरीला नहीं होना चाहिए।
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