आगरा ।दानपात्र पाठशाला के माध्यम से निःशुल्क शिक्षा अभियान के तहेत बच्चों को शिक्षित करने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है। इस अनोखी पाठशाला में बच्चों को ना फीस की चिंता, ना हाजिरी की, स्कूल ना जा पाने वाले बच्चों को मुफ्त पढ़ा रही आगरा की युवा बिग्रेड, स्किल डेवलपमेंट भी सिखा रहे फाउंडेशन सदस्य शुभम बंसल ने बताया श्याम लाल मार्ग ताजगंज आगरा में चलाई जा रही पाठशाला में वर्ष कपूर, रवि राठौर, लक्की, अनुजा, सन्नी, वर्षा वर्मा, विक्रम सिंह बघेल के सहयोग से स्टेशनरी डिस्ट्रीब्यूशन ड्राइव का आयोजन किया गया, जिसमे बच्चो को पेन, पेंसिल, कॉपी, खिलौने, बाट के बच्चो में खुशियां बाटी गई। इस पाठशाला की अनोखी बात ये है कि यह सिर्फ विषय ही नहीं पढ़ाते बल्कि विभिन्न तरह की रोचक गतिविधियां भी कराते हैं यहां पढ़ रहे बच्चों को कबाड़ से जुगाड़, गुड टच, बैड टच, जूडो कराटे, संविधान की बेसिक जानकारी, म्यूजिक, पेंटिंग, डांस जैसी कई चीजें सिखाई जाती है सोमवार से गुरुवार तक इन्हें विषय पढ़ाएं जाते हैं एवम शुक्रवार और शनिवार को तमाम तरह की गतिविधियां कराई जाती हैं यहां बच्चों को खेल-खेल में रोचक तरीके से पढ़ाया जाता है जिससे उनका रोज पढ़ने आने का मन करें,
ये “दानपात्र” की पाठशाला बेहद खास है। क्योंकि यहां वो बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं जिन्होंने पढ़ने की उम्मीद छोड़ दी थी। यहां पढ़ाने वाले शिक्षक इसलिए खास है क्योंकि वह कोई मनोदय नहीं लेते। “दानपात्र” की पाठशाला के माध्यम से गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जा रही है साथ ही बच्चों को कपड़े, राशन, किताबें, एवं अन्य सामान देकर उनकी मदद की जा रही है जिससे वह बच्चे सड़कों पर भीख ना मांगे और पढ़ लिख कर आगे बढ़ सके यह पाठशाला आगरा शहर के अलग-अलग क्षेत्रों में लगाई जा रही है। “दानपात्र” की नि:शुल्क पाठशाला में करीबन 300 से अधिक बच्चे व महिलाएं शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं कभी बाल मजदूरी करने, कूड़ा करकट बीनने और भीख मांगने वाले बच्चों के हाथों में आज कॉपी और कलम है आज वह सपने देख रहे हैं अपने हौसलों को बुलंद कर रहे हैं, टीम की कड़ी मेहनत से जिन्होंने कभी अ, आ, इ, ई, भी नहीं पढ़ा वह बच्चे व महिलाएं अपना नाम लिखना सीख गए हैं इसमें कई स्कूल व कॉलेज भी बढ़-चढ़कर सहयोग दे रहे हैं स्कूल के स्टूडेंट्स वॉलिंटियर्स के रूप में जुड़ रहे हैं वहीं स्कूलों द्वारा पढ़ाने के लिए जगह देकर इस नेक काम में सहयोग दिया जा रहा है जो महिलाएं आर्थिक परिस्थितियों के चलते पढ़ लिख नहीं पाई वह अब इस पाठशाला के माध्यम से पढ़ लिख कर अपने अधूरे सपनों को पूरा कर रही हैं।
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