वृन्दावन।मोतीझील स्थित अखंडानंद आश्रम (आनंद वृन्दावन)के संस्थापक ब्रह्मलीन स्वामी अखंडानंद सरस्वती महाराज की परम्परा के वर्तमान महंत स्वामी श्रवणानंद सरस्वती महाराज का जीवन बिन्दु से सिंधु की यात्रा जैसा रहा है।
महाराजश्री के जीवन से जुड़े तथ्य बताते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. गोपाल चतुर्वेदी ने कहा कि वर्षा ऋतु में मेघ बिंदु-बिंदु रूप में बरसते हैं।जिस बिंदु को नदियों का संग मिल जाता है,वो सिंधु तक पहुंचकर सिंधु बन जाता है। जिन बिंदुओं को नदियों का संग नहीं मिल पाता,वो नष्ट हो जाते हैं।बिंदु बनना और नष्ट होना यह क्रम अनंत काल से चल रहा है और चलता ही रहेगा।यही दशा इस तुच्छ जीव की है।बिंदु बनकर जन्म लेता है और मर जाता है। किंतु सौभाग्यशाली परमात्मा की कृपा पात्र बिंदु ऐसे होते हैं, जो गंगा जैसी पवित्र नदियों का संग प्राप्त कर पवित्र बनकर आनंद सिंधु परमात्मा तक पहुंच जाते हैं।ऐसे ही एक कृपा पात्र जीव हैं।जिनका नाम श्रवण था। वर्तमान में जिन्हें हम श्रीधाम वृन्दावन के अखंडानंद आश्रम के नए महंत स्वामी श्रवणानंद सरस्वती महाराज के नाम से जानते हैं।
उत्तर प्रदेश राज्य के कानपुर जनपद में कान्य कूब्ज ब्राह्मण कुल में सनातन धर्म में संलग्न माता पिता द्वारा द्वारा जन्म लिया।लगभग 11 - 12 वर्ष तक पूज्य जननी जनक के चरणों में रहकर संस्कार विद्या अध्ययन किया।तत्पश्चात ईश्वर कृपा से परम् संत श्री राजा राम बाबा की शरण मिली।उनके अनुग्रह से पूज्य करपात्री महाराज,पूज्य संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी एवं संत पथिकजी आदि भारत के अनेकानेक संतों का आशीष प्राप्त हुआ।
पूज्य बाबा महाराज की कृपा से श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ स्वामी हंसानंद महाराज की अनेक वर्षों तक सेवा करते हुए उनसे अध्यात्म अध्ययन का अवसर मिला।बाद में ऋषिकेश में रहकर श्रीकैलाश आश्रम में प्रस्थान त्रयी, उपनिषद, श्रीमद्भगवदगीता, ब्रह्म सूत्र आदि ग्रंथों का अध्ययन किया।
फिर पूज्य श्रीस्वामीजी की कृपा से श्रीधाम वृन्दावन में हृदय सम्राट स्वामी अखंडानंद सरस्वती महाराज के आश्रम में निवास मिला।यहां रहकर श्रीमद्भागवत महापुराण, रामायण आदि पवित्र धर्म ग्रंथों का अध्ययन किया।साथ ही आचार्य की परीक्षा उत्तीर्ण की।आश्रम के अध्यक्ष महंत स्वामी ओंकारानंद सरस्वती महाराज से नैष्ठिक ब्रह्मचारी की दीक्षा प्राप्त कर ये श्रवण बिन्दु आनंद सिन्धु में मिलकर श्रवणानंद हो गए।लगभग 11 वर्ष बाद पूज्य स्वामी ओंकारानंद सरस्वती महाराज का शरीर शान्त होने के उपरांत उन्ही की इच्छानुसार आश्रम के तत्कालीन अध्यक्ष महंत स्वामी सच्चिदानंद सरस्वती महाराज से संन्यास दीक्षा प्राप्त की।पूज्य संतों के आशीर्वाद व आज्ञा से विश्व कल्याण के लिए "सर्वजन सुखाय व सर्वजन हिताय" के उद्देश्य से समूचे भारत के अलावा अन्य देशों में भी श्रीमद्भागवत, रामायण एवं अन्य धर्म ग्रंथों के माध्यम से प्रवचन कर सुख-शांति का संदेश दे रहे हैं।श्रीगुरू, ईश्वर शरण ही बिन्दु की सिन्धु यात्रा है।
स्वामी श्रवणानंद सरस्वती महाराज ब्रह्मलीन स्वामी अखंडानंद सरस्वती महाराज के द्वारा स्थापित आनंद वृन्दावन चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष व महंत हैं।स्वामीजी का मानना है कि तन से सेवा, मन से भगवद प्रेम, बुद्धि से भगवद विचार इसी में मनुष्य जीवन की सार्थकता है।
(लेखक वरिष्ठ साहित्यकार एवं आध्यात्मिक पत्रकार
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