राजकुमार गुप्ता वृन्दावन।वंशीवट क्षेत्र स्थित श्रीनाभापीठ सुदामा कुटी में श्रीरामानंदीय वैष्णव सेवा ट्रस्ट के तत्वावधान में चल रहे
साकेतवासी महांत सुदामादास महाराज के 18 वें पंचदिवसीय पुण्यतिथि महोत्सव में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे विश्व हिन्दी परिषद के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक बड़े दिनेशजी ने श्रीनाभापीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु सुतीक्ष्णदास देवाचार्य महाराज से मिलकर आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा की।
विश्व हिन्दी परिषद के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक बड़े दिनेशजी ने कहा कि साकेतवासी सुदामादास महाराज अत्यंत सेवाभावी संत थे।वे गौसेवा, संतसेवा, विप्रसेवा व निर्धन-असहायों की सेवा को नारायण सेवा माना करते थे। उनकी उसी परम्परा का निर्वाह सुदामाकुटी में आज भी उसी प्रकार हो रहा है। 
श्रीनाभापीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु सुतीक्ष्णदास देवाचार्य महाराज एवं श्रीमहंत अमरदास महाराज ने कहा कि हमारे दादागुरु संत शिरोमणि सुदामा दास महाराज परम वीतरागी व भजनानंदी संत थे।उनके रोम-रोम में संतत्व विराजित था। 
सत्यम पीठाधीश्वर नरहरि दास भक्तमाली (अयोध्या) व संत रामसंजीवन दास शास्त्री महाराज ने कहा कि संत प्रवर सुदामादास महाराज श्रीधाम वृन्दावन के प्राचीन स्वरूप के परिचायक थे। उन जैसी पुण्यात्माओं का अब युग ही समाप्त हो गया है।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. गोपाल चतुर्वेदी व प्रमुख समाजसेवी मोहन शर्मा ने कहा कि संत सुदामादास महाराज सहजता, सरलता,उदारता,परोपकारिता आदि सद्गुणों की प्रतिमूर्ति थे।उन जैसी दिव्य विभूतियों से ही पृथ्वी पर धर्म व अध्यात्म का अस्तित्व है।
इस अवसर पर विश्व हिन्दू परिषद के केंद्रीय अधिकारी अशोक तिवारी, ब्रज प्रांत संगठन मंत्री राकेशजी, ब्रज प्रांत सह संपर्क प्रमुख राजकुमार शर्मा,महानगर अध्यक्ष अमित जैन,उत्तर प्रदेश शासन के पूर्व मंत्री श्यामसुंदर शर्मा,महंत अवधेश दास महाराज(बयाना), बड़ी छावनी आश्रम के महंत राममंगल दास महाराज, महंत जगन्नाथदास शास्त्री, महंत रंगीली सखी,महंत राघवदास महाराज, वैष्णवाचार्य गिरधर गोपाल भक्तमाली, पंडित देवकीनंदन शर्मा (संगीताचार्य), लाली वृन्दावनी शर्मा, पंडित रसिक शर्मा, डॉ. अनूप शर्मा, डॉ. चंद्रप्रकाश शर्मा, महंत किशोरी शरण मुखिया, डॉ. कृष्णमुरारी महाराज, डॉ. राधाकांत शर्मा, निखिल शास्त्री, नंदकिशोर अग्रवाल, भरतलाल शर्मा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।संचालन रामसंजीवन दास शास्त्री ने किया।
इससे पूर्व प्रातःकाल श्रीनाभादास महाराज कृत श्रीमद्भक्तमाल ग्रंथ का संतों के द्वारा संगीतमय सामूहिक गायन किया गया।दोपहर को रासलीला का अत्यंत नयनाभिराम व चित्ताकर्षक मंचन हुआ।

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