जौनपुर। छत्रपति शाहूजी महाराज की जयन्ती धूमधाम से मनाया गया
जौनपुर। जिले के नगर पंचायत कजगांव में सरदार सेना के कार्यकर्ताओं के द्वारा छत्रपति शाहूजी महाराज की जयन्ती धूमधाम से मनाया गया।
जयन्ती समारोह के अवसर पर सरदार सेना के जिलाध्यक्ष अरविन्द कुमार पटेल ने साहू जी महाराज की जीवन काल में किए गए तमाम कार्यों के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि छत्रपति साहू महाराज एक भारत में सच्चे प्रजातंत्रवादी और समाज सुधारक के रूप में जाने जाते थे। वे कोल्हापुर के इतिहास में एक अमूल्य मणि के रूप में आज भी प्रसिद्ध हैं। छत्रपति साहू महाराज ऐसे व्यक्ति थे,जिन्होंने राजा होते हुए भी दलित और शोषित वर्ग के कष्ट को समझा और सदा उनसे निकटता बनाए रखी। उन्होंने दलित वर्ग के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू की थी।गरीब छात्रों के लिये छात्रावास स्थापित किए और बाहरी छात्रों को शरण-प्रदान करने के आदेश दिए। साहू जी महाराज के शासन के दौरान ‘बाल विवाह’ पर ईमानदारी से प्रतिबंधित लगाया गया। उनके पिता का नाम श्रीमंत जयसिंह राव आबासाहब घाटगे था। छत्रपति साहू जी महाराज का बचपन का नाम ‘यशवंतराव’ था। छत्रपति शिवाजी महाराज (प्रथम) के दूसरे पुत्र के वंशज शिवाजी चतुर्थ कोल्हापुर में राज्य करते थे। राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज का जन्म 26 जून 1874 में हुआ था। उनके बचपन का नाम यशवंत रॉव था। बाल्य-अवस्था में ही बालक यशवंतराव को छत्रपति साहू जी महाराज की हैसियत से कोल्हापुर रियासत की राजगद्दी को सम्भालना पड़ा थ। छत्रपति साहू जी महाराज की माता राधाबाई मुधोल राज्य की राजकन्या थीं। पिता जयसिंग रॉव उर्फ़ अबासाहेब घाटगे कागल निवासी थे। उनके दत्तक पिता शिवाजी चतुर्थ व दत्तक माता आनंदी बाई थी। राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज केवल 3 वर्ष के थे तभी उनकी सगी माँ राधाबाई 20 मार्च 1977 को मृत्यु को प्राप्त हुई।छत्रपति संभाजी की माँ का देहांत बचपन में ही हुआ था। इसलिए उनका लालन-पालन जिजाबाई ने किया था। छत्रपति साहू जी महाराज की उम्र जब 20 वर्ष थी,उनके पिता अबासाहेब घाटगे की मृत्यु(20 मार्च1886 ) हुई थी। छत्रपति शिवाजी महाराज ( प्रथम) के दूसरे पुत्र के वंशज शिवाजी (चतुर्थ) कोल्हापुर में राज्य करते थे। ब्रिटिश षडयंत्र और अपने दीवान की गद्दारी की वजह से जब शिवाजी (चतुर्थ )का कत्ल हुआ तो, उसकी विधवा आनंदीबाई ने अपने एक जागीरदार अबासाहेब घाटगे के पुत्र यशवंतराव को 17 मार्च सन् 1884 में गोद लिया था। उनका नाम शाहू छत्रपति महाराज हो गया था। छत्रपति शाहू जी महाराज की शिक्षा राजकोट के राजकुमार विद्यालय में हुई थी। प्रारंभिक शिक्षा के बाद आगे की पढ़ाई रजवाड़े में ही एक अंग्रेज शिक्षक ‘स्टुअर्ट मिटफर्ड फ्रेज़र ‘ के जिम्मे सौपी गई थी। अंग्रेजी शिक्षक और अंग्रजी शिक्षा का प्रभाव छत्रपति शाहू जी महाराज के दिलों-दिमाग पर गहराई से पड़ा था। वैज्ञानिक सोच को न सिर्फ वे मानते थे बल्कि इसे बढ़ावा देने का हर संभव प्रयास करते थे। पुरानी प्रथा,परम्परा अथवा काल्पनिक बातों को वे महत्त्व नहीं देते थे। दलितों की दशा में बदलाव लाने के लिए उन्होंने दो ऐसी विशेष प्रथाओं का अंत किया जो युगांतरकारी साबित हुईं.पहला,1917 में उन्होंने उस ‘बलूतदारी-प्रथा’ का अंत किया। जिसके तहत एक अछूत को थोड़ी सी जमीन देकर बदले में उससे और उसके परिवार वालों से पूरे गाँव के लिए मुफ्त सेवाएं ली जाती थी। इसी तरह 1918 में उन्होंने कानून बनाकर राज्य की एक और पुरानी प्रथा ‘वतनदारी’ का अंत किया तथा भूमि सुधार लागू कर महारों को भू-स्वामी बनने का हक़ दिलाया। इस आदेश से महारों की आर्थिक गुलामी काफी हद तक दूर हो गई। दलित हितैषी उसी कोल्हापुर नरेश ने 1920 में मनमाड में दलितों की विशाल सभा में सगर्व घोषणा करते हुए कहा था-‘मुझे लगता है अम्बेडकर के रूप में तुम्हे तुम्हारा मुक्तिदाता मिल गया है मुझे उम्मीद है वो तुम्हारी गुलामी की बेड़ियाँ काट डालेंगे। उन्होंने दलितों के मुक्तिदाता की महज जुबानी प्रशंसा नहीं की बल्कि उनकी अधूरी पड़ी विदेशी शिक्षा पूरी करने तथा दलित-मुक्ति के लिए राजनीति को हथियार बनाने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान किया। किन्तु वर्ण-व्यवस्था में शक्ति के स्रोतों से बहिष्कृत तबकों के हित में किये गए ढेरों कार्यों के बावजूद इतिहास में उन्हें जिस बात के लिए खास तौर से याद किया जाता है और उनके द्वारा आरक्षण की व्यवस्था
सन् 1902 के मध्य में साहू महाराज इंग्लैण्ड गए हुए थे। उन्होंने वहीं से एक आदेश जारी कर कोल्हापुर के अंतर्गत शासन-प्रशासन के 50 प्रतिशत पद पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित कर दिए। कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति शाहूजी ने अपने दलित सेवक गंगाराम कांबले की चाय की दुकान खुलने पर वहाँ चाय पीने जाने का फ़ैसला किया,पिछली सदी के शुरुआती वर्षों में यह कोई मामूली बात नहीं थी। उन्होंने कांबले से पूछा तुमने अपनी दुकान के बोर्ड पर अपना नाम क्यों नहीं लिखा है इस पर कांबले ने कहा कि दुकान के बाहर दुकानदार का नाम और जाति लिखना कोई ज़रूरी तो नहीं महाराजा शाहूजी ने चुटकी ली ऐसा लगता है कि तुमने पूरे शहर का धर्म भ्रष्ट कर दिया है शाहू जी कोई मामूली राजा नहीं थे बल्कि महाप्रतापी छत्रपति शिवाजी महाराज के वशंज थे। कांबले की दुकान पर महाराजा के चाय पीने की ख़बर कोल्हापुर शहर में जंगल की आग की तरह फैल गई। इस अदभुत घटना को अपनी आँखों से देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग जुटे। छत्रपति साहू जी महाराज का निधन 10 मई, 1922 मुम्बई में हुआ। महाराज ने पुनर्विवाह को क़ानूनी मान्यता दी थी। उनका समाज के किसी भी वर्ग से किसी भी प्रकार का द्वेष नहीं था, उन्होंने सामाजिक परिवर्तन की दिशा में जो क्रन्तिकारी उपाय किये थे, वह इतिहास में याद रखे जायेंगे। अपने उद्बोधन के दौरान जिलाध्यक्ष ने यह मांग किया कि 26 जून आरक्षण दिवस के रूप में घोषित होना चाहिए,ताकि सभी समाज के लोग इसे एक त्योहार के रूप में मनाने का काम करें। इस दौरान तमाम पदाधिकारी व कार्यकर्ताओं ने अपनी अपनी बातें रखी। कार्यक्रम के दौरान श्याम सुन्दर पटेल,वृजेन्द्र पटेल,जंगबहादुर,मुन्ना लाल,विकास पटेल,आकाश पटेल,अमन पटेल,सुर्यमणि,लालमन,विशाल पटेल,विनोद गौड़,त्रिलोकी,हरीशंकर पटेल सहित दर्जनों कार्यकर्ता मौजूद रहे।
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