राजकुमार गुप्ता
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बीबीसी पर आयकर के छापों के बाद बीबीसी के साथ ही कांग्रेस भी बिलबिला गयी है. कहती है की देश में अघोषित आपातकाल  है .आपातकाल तो आपातकाल होता है, कभी घोषित होता है तो कभी अघोषित आता है,लेकिन मै नहीं मानता कि देश में घोषित या अघोषित आपाकाल है .मुझे लगता है कि देश में संक्रमणकाल है .आपातकाल और संक्रमणकाल में भेद होता है .
आयकर वाले कोई पालतू श्वान तो हैं नहीं जो मालिक ने ' छू ' कहा और बेचारे लपक कर टूट पड़े सामने वाले पर .माना कि सरकार ने अनेक संवैधानिक संस्थाओं से तोते,मैना  और केंचुए का काम लेना शुरू कर दिया है ,लेकिन आयकर विभाग ऐसा नहीं है. इसे जहाँ आयकर की चोरी और सीनाजोरी दिखती है,वहीं छापामारी की जाती है. अब समय ही गड़बड़ हो जाये तो कोई क्या करे ? कहता रहे कि-' खिसियाना बिल्ला खम्भा नोंच रहा है '.संक्रमणकाल में संवैधानिक संस्थाओं को पालतू बनाना मजबूरी होता है .
दुनिया जानती है कि बीबीसी यानि ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन ने पिछले महीने  दो कड़ियों वाला वृत्तचित्र  ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ प्रसारित किया था. यह डॉक्यूमेंट्री वर्ष 2002 में गुजरात में हुए दंगों पर आधारित है, तब  नरेंद्र मोदी गुजरात  के मुख्यमंत्री थे.  भारत सरकार और सरकारी पार्टी भाजपा ने इस डॉक्यूमेंट्री को ‘दुष्प्रचार का एक हिस्सा’ करार देते हुए कहा था कि यह एक विशेष ‘गलत आख्यान’ को आगे बढ़ाने के लिए दुष्प्रचार का एक हिस्सा है.अब आप ही बताइये कि जब एक संस्था किसी विश्वगुरु के बारे में वृत्तचित्र बना सकती है तो एक सरकार का आयकर विभाग बीबीसी पर छापा भी नहीं मार सकता ? ये तो ' ले पपरिया,दे पपरिया ' वाला व्यवहार है .
मुझे अपने देश के आयकर विभाग पर सीमा से ज्यादा भरोसा है.मै या आप इससे अधिक कुछ कर नहीं सकते. कोई नहीं कर सकता .एक अविश्वसनीय सरकार पर भरोसा करना अवाम की मजबूरी है .अब यदि आयकर विभाग कहता है कि आयकर विभाग ने  कथित कर चोरी की जांच के तहत दिल्ली और मुंबई में बीबीसी के कार्यालयों में ‘सर्वे ऑपरेशन’ चलाया है तो इसे सही मान लेना चाहिये .आयकर विभाग ने   कहा है कि-'‘बीबीसी द्वारा ट्रांसफर प्राइसिंग नियमों के जानबूझकर गैर-अनुपालन और इसके मुनाफे के विशाल डायवर्जन के मद्देनजरआयकर अधिकारियों ने दिल्ली में बीबीसी के परिसर में सर्वे किया.'
जाहिर है कि बीबीसी ने हमारे विश्वगुरु की फिल्म बनाई तो हमारी सरकार ने बीबीसी की फिल्म  बना डाली .हिसाब बराबर.अब बीबीसी कोई दूध की धुली संस्था तो है नहीं.बीबीसी भी करचोरी कर सकती है. जब गौतम अडाणी सर खेल कर सकते हैं तो बीबीसी तो बीबीसी है .मुझे याद है कि एक जमाने में जब देश में घोषित आपातकाल था तब भाजपा वाले बीबीसी के लिखे-पढ़े को ब्रम्हवाक्य मानते थे .आज भाजपा की बीबीसी के प्रति धारणा बदल गयी है .अब भाजपा बीबीसी को ' बिलकुल बकवास कार्पोरेशन ' कहती  है तो कहती है. समय-समय की बात है.
वैसे आज के अविश्वास के दौर में न कांग्रेस की बात भरोसे की है ,न भाजपा की .आयकर विभाग की बात फिर भरोसे की कैसे हो सकती है ? फिर भी आयकर विभाग ने कहा है कि -' बीबीसी को कई नोटिस जारी किए गए हैं. हालांकि, बीबीसी लगातार उद्दंड और गैर-अनुपालन करता रहा है और अपने मुनाफे को बड़े पैमाने पर डायर्वट करता रहा है. इन सर्वेक्षणों का मुख्य फोकस टैक्स लाभ सहित अनाधिकृत लाभों के लिए कीमतों में हेराफेरी पर नजर डालना है.
कांग्रेस को इतना नहीं पता कि आयकर अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार टैक्स अधिकारियों द्वारा किए गए उपरोक्त अभ्यास को “सर्वे” कहा जाता है न कि तलाशी या छापेमारी. इस तरह के सर्वेक्षण नियमित रूप से आयोजित किए जाते हैं और इन्हें तलाशी/छापेमारी बताने का भ्रम नहीं होना चाहिए.
सरकार के आयकर छापे यानि सर्वे से बीबीसी से ज्यादा कांग्रस विचलित है. बीबीसी ने तो कहा है कि  वह आयकर अधिकारियों के साथ पूरा सहयोग कर रहा है.ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (बीबीसी) ने आयकर सर्वे को लेकर कुछ ज्यादा विवरण नहीं दिया है. पता चला है कि इस सर्वे के दौरान स्थानीय बीबीसी कर्मचारियों को कथित तौर पर कार्यालय परिसर में प्रवेश करने से रोका गया और उनके मोबाइल फोन बंद कर दिए गए. बीबीसी के एक प्रवक्ता ने इस संबंध में बयान जारी कहा, ‘आयकर अधिकारी इस समय नई दिल्ली और मुंबई में बीबीसी कार्यालयों में हैं और हम पूरी तरह से सहयोग कर रहे हैं. हमें उम्मीद है कि यह स्थिति जल्द से जल्द सुलझ जाएगी.’
वर्षों पहले अपने राम भी इसी बीबीसी के लिए काम किया करते थे .बीबीसी उस समय भी खबर खरीदती थी,भुगतान करती थी ,आज भी करती है. फ़िल्में बनाती है,दिखाती है और पूरी दुनिया में उसकी साख है .बीबीसी की साख नागपुर के शाखामृगों से कहीं ज्यादा है .इस साख को बनाने में वर्षों लगते हैं .इसे एक सर्वे या छापे से मिटाया नहीं जा सकता.डराया तो बिलकुल नहीं जा सकता .वैसे दुनिया के हर देश की सरकार सर्वशक्तिमान होती है. सरकार जो चाहे कर सकती है. सरकार ने चाहा कि भारत के लोग बीबीसी की बनाई  ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ न देखे तो उसने ऐसा ही किया.भारत में इस फिल्म को प्रसारित नहीं होने दिया .लेकिन जिसे देखना थी उसने अपने तरिके से इस फिल्म को देख लिया .
आज का जमाना किसी की फिल्म बनाने और किसी की फिल्म पीटने का ही है .संयोग से भाजपा ने कांग्रेस की फिल्म को पीट रखा है .कांग्रेस की फिल्म ' पठान' की तरह चल नहीं रही ,लेकिन फिल्म तो फिल्म है कभी पीटती है तो कभी हिट भी होती है .कांग्रेस भी भाजपा की फिल्म पीटने की हर सम्भव कोशिश कर रही है. सड़क से लेकर संसद तक हंगामा बरपा है .इस हंगामें में बीबीसी भी शामिल है .अरे बीबीसी को क्या जरूरत थी ये फिल्म बनाने की ? बनाना थी तो हमारे राहुल गांधी पर बनाती .कम से कम राहुल गांधी भाजपा के मनोरंजन के काम तो आते .मोदी जी तो हँसते-हंसाते ही नहीं हैं .वे जनता या कांग्रेस का ख़ाक मनोरंजन करेंगे ?
मुझे याद है कि कांग्रेसी आपातकाल के बाद 'किस्सा कुर्सी का ' और ' आंधी ' नाम की दो फ़िल्में बनीं थीं .इन्हें लोगों ने खूब देखा भी था .कांग्रेस को बीबीसी की मोदी पर बनी फिम पर निर्भर रहने के बजाय अपने लिए कोई और विवेक अग्निहोत्री तलाश लेना चाहिए था.जो बीबीसी से बेहतर फिल्म बनाता .बहरहाल बीबीसी चिरायु हो ,आयकर विभाग अपने सर्वे लगातार करे.लोकतंत्र और हम जैसे लोगों के लिए ये सब बहुत जरूरी है .

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