अपने देश की सियासत पर लिखना,अपना समय बर्बाद करना है, किंतु जब कोई विकल्प ही न हो तो सियासत पर लिखे बिना भी नहीं रहा जाता। दुर्भाग्य ये है कि नीति की बात करने वाले त्रेता में भी लतियाए जाते थे और आज भी लतियाए जा रहे हैं।तब वे विभीषण और माल्यवंत थे,अब वे मल्लिकार्जुन खड़गे और राकेश अचल जैसे असंख्य लोग हैं।
संकट चौथ  के दिन मेरे घर में महिलाएं व्रत रखती हैं। सबसे ज्यादा संकट महिलाओं को ही सहना पड़ते हैं। आदिकाल से अब तक महिलाओं की स्थिति में बहुत ज्यादा सुधार नहीं हुआ। हमारे देश में तो हालांकि तीन तलाक़ तक पर रोक लगा दी गई है। बहरहाल हम विषय से भटक रहे हैं हमें आज चौथ के चंद्रमा के बहाने से नीति - अनीति की बात करना है।
बुंदेलखंड में किसी की आड़ लेकर बात करने की कला को ढाल कर बात करना कहते हैं।विभीषण को भी ये कला आती थी और संयोग से दुनिया भर के सजग मीडिया को भी ये कला आती है। भारत में इस कला को लेकर खेमेबाजी है।जो सरकार की गोदी में बैठे हैं वे न सीधी बात करते हैं और न मारकर ।ढारकर बात करने से बात का तीखापन कुछ कम हो जाता है लेकिन लात तो हर हाल में पड़ती है।
विभीषण ने अपने अग्रज दशानन से नीति की बात करने के लिए जिस चंद्रमा की आड़ ली वो चौथ का ही चंद्रमा था। विभीषण ने कहा -'  “जौ आपन चाहै कल्याना।” 
सो पर नारि लिलार गोसाईं। तजउ चउथि के चन्द कि नाईं।
गुन सागर नागर नर जोउ। अलप लोभ भल कहइ न कोउ।
आज भी नीति की बात करना राष्ट्रद्रोह है। नीति की बात करने वाले से कहा जाता है पाकिस्तान चले जाओ '।
मुसीबत ये है कि कोई अपना कल्याण चाहता ही नहीं है,सब दूसरों का कल्याण करना चाहता है।
‘आज की सियासत में कोई भी राजनीतिक दल हो दशानन की सभा जैसा है। किसी भी दल में श्रुति सम्मति बातों के लिए कोई जगह नहीं। सत्तारूढ़ भाजपा में श्रुति सम्मत बात करने वाले तमाम विभीषण और माल्यवंत मार्गदर्शक मंडल में पटक दिए गए हैं। कांग्रेस के विभीषण और माल्यवंत दूसरे दलों के काम आ रहे हैं।सब एक - दूसरे की लंका जीतने में लगे हैं। किसी भी दल में हाईकमान और सुप्रीमो के खिलाफ बोला उसे विभीषण और माल्यवंत की तरह लतिया दिया जाता है।
आज ' आधा है चंद्रमा,रात आधी' वाली बात हो रही है। अब दौज का चतुर्थी का चांद अलग है और ईद का चांद अलग। चांद भी हिंदू -मुसलमान बना दिया गया है,यानि अब आप चांद की आड़ लेकर भी अपनी बात नहीं कर सकते। करेंगे तो विभीषण और माल्यवंत बना दिए जाओगे।
कालांतर में यदि विभीषण और माल्यवंतों की तादाद बढी तो तय मानिए शीघ्र ही भारत में एक नये दल का उदय हो सकता है जिसका नाम भी शायद विभीषण दल हो। भारतीय शास्त्रीय राजनीति में दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले विभीषणों के लिए संभावनाएं सबसे अधिक हैं।अब या तो आप विभीषण वाद के साथ चलकर कुरसी को चौथ के चंद्रमा की तरह त्याग दीजिए या फिर दशानन गति को प्राप्त होइए।
दशानन बाहुबल से सब कुछ कर गुजरने में कामयाब रहा लेकिन चौथ के चंद्रमा की तरह उसने लोभ मोह काम,क्रोध की सीता का त्याग नहीं किया। बाद में भुगता भी।मुगालतों में रहने या जुमलेबाजी से आप सोने की लंका को राख होने से नहीं बच सकते।एक लाख पुत्रों और सवा लाख पौत्रों वाले दशानन के घर में दिया -बत्ती करने वाला भी नहीं बचा, फिर जब हर तरफ रणछोड़ भाई हों तो आप भविष्य की राजनीति की कल्पना कर सकते हैं।भारत में भी अमेरिका और ब्राजील जैसे दृश्य उपस्थित हो सकते हैं, कोई हथेली नहीं लगा सकता।

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