पूजा भारद्वाज की यह कविता कलम बोलती है की चंद पंक्तियों के साथ में आज आपके समक्ष पत्रकारिता जगत की विलक्षण हस्ती के बारे में लिखने की कोशिश करने जा रहा हूं जिन को पढ़ -पढ़ कर हमने थोड़ा बहुत लिखना सीखा है
कलम बोलती है कई दिलों के और दलों के राज खोलती है, कलम बोलती है
इन पंक्तियों के साथ मैं अपने पत्रकारिता जीवन काल के गुरु के रूप में जिन को मैंने माना है उनके जीवन वृतांत को शब्दों के माध्यम से लिखने का प्रयास कर रहा हूं
ग्वालियर चंबल अंचल की पत्रकारिता के एक मजबूत स्तंभ राकेश अचल जो ग्वालियर चंबल अंचल ही नहीं अपितु देश भर में अपनी बेबाक और निष्पक्ष लेखनी के लिए पहचाने जाते हैं उत्तर प्रदेश के रामपुरा गांव जिला जालौन जिनका जन्म 25/4 /1959 को हुआ! जिन्होंने कला और विधि से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की तत्पश्चात पत्रकारिता को अपना पेशा बनाया और सन 1979 से ग्वालियर में रहकर पत्रकारिता का कार्य प्रारंभ किया! पत्रकारिता का उनका यह क्रम अभी तक जारी है 64 वर्ष की आयु हो जाने के उपरांत भी निरंतर जिनका लेखन कार्य हमें पढ़ने के लिए प्राप्त होता है और हमारा मार्गदर्शन करता है ऐसी विलक्षण प्रतिभा के धनी है गुरुवर राकेश अचल जी जिन्होंने अपने जीवन काल में 10 से अधिक पुस्तकों की रचना की है जिनमे गद्दार उपन्यास, त्वरित टिप्पणी सहित अन्य पुस्तकें भी है जिन्हें यदि पढ़ा जाए तो वास्तव में लगता है के कलम बोलती है इतना ही नहीं राकेश अचल जी को देश व प्रदेश में कई सम्मान भी प्राप्त हो चुके हैं श्री अचल जी 2005 से स्वतंत्र लेखन का कार्य कर रहे हैं और इसमें सबसे बड़ी खास बात यह है कि इन वर्षों में आए दिनों के दौरान शायद ही कोई एकाध ही दिन ऐसा गया हो जिस दिन उन्होंने लिखा ना हो!
चाहे देश के राजनीतिक हालात की बात हो, सामाजिक सरोकार की बात हो या अन्य कोई विषय श्री अचल जी का लेखन कार्य निरंतर जारी रहा! हर मुद्दे पर अपनी बेबाकी से राय रखने का कार्य भी बखूबी उनकी लेखनी में पढ़ने को मिलता रहा!
*लेखन कार्य के साथ-साथ सरल सहज स्वभाव के भी धनी हैं राकेश अचल*
यह बात उन दिनों की है जब 2006 मैंने पत्रकारिता की शुरुआत की तो मेरे मन में एक जिज्ञासा थी सामाजिक सरोकार के लिए पत्रकारिता करने वाले ईमानदारी से पत्रकारिता का धर्म निभाने वाले पत्रकारों की जानकारी एकत्रित करना उस समय ग्वालियर चंबल अंचल की पत्रकारिता में सर्व श्री डॉक्टर राम विद्रोही जी, सर्वश्री राकेश अचल जी यह दो ऐसे नाम थे जिन से मैं काफी प्रभावित हुआ और मन ही मन इनको मैंने अपना गुरु मान लिया! चुंकि राम विद्रोही सर से मैं पहले ही मिल चुका था लेकिन अचल जी से मुलाकात नहीं हो पाई थी इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए हमने अपनी तहसील कैलारस में एक पत्रकार सम्मेलन करने का जिम्मा उठा लिया और उस पत्रकार सम्मेलन में मुख्य वक्ता के रूप में राकेश अचल जी को रखा और उन्हें मनाने में भी हम सफल हो गए तब वह 2006 हिंदी दिवस का पहला दिन और पहली मुलाकात थी ट्रांसपोर्ट नगर कैलारस में स्थित टाउन हॉल में श्री अचल जी को सुनने और समझने का मौका मिला जब हमने उन्हें करीब से जाना तो उनके अंदर एक लेखक के साथ-साथ एक अच्छे अभिभावक और अच्छे मार्गदर्शक और गुरु की भूमिका भी नजर आई और उस दिन से ही मैं उन्हें गुरुदेव कहने लगा!
जहां तक उनके गद्दार पुस्तिका की बात की जाए तो उन्होंने उस पुस्तिका में बड़े ही सरल सहज भाषा में ग्वालियर के इतिहास को एक बार फिर से जानने का अवसर दिया कि किस प्रकार एक बाल सुलभ मन जब जवाबदारीयों के बंधन में बनता है तो व्यक्तित्व का परिवर्तन कैसे होता है आजादी की लड़ाई में ग्वालियर किले की क्या भूमिका रही यह तमाम सारी बातें जानने और समझने में गद्दार उपन्यास की महत्वपूर्ण भूमिका रही अन्यथा उससे पहले तो केवल जहां तक हमारा सवाल है एक कविता के माध्यम से ही हमने ग्वालियर के इतिहास को जाना लेकिन गद्दार पुस्तिका ने एक बार फिर से ग्वालियर के इतिहास के बारे में जानने की उत्सुकता देशभर में पैदा कर दी!
राकेश अचल लेखक, कवि पत्रकार, संपादक, व्यंग्यकार कुशल वक्ता भी हैं उनकी इस प्रतिभा से देश प्रदेश के सभी लोग वाकिफ हैं उनके द्वारा लिखित लेखों में उनके भीतर बैठा व्यंग कार बड़ी कुशलता से मुखरित होता है सृजन और प्रखरता उनके लेखों में बखूबी झलकती है
जो हम जैसे कई पत्रकार साथियों को लिखने की प्रेरणा देती है और हमारा ज्ञान वर्धन करती हैं! आशा है आगे भी ऐसे ही हमें राकेश अचल जी के लेखों के माध्यम से लिखने और पढ़ने की प्रेरणा मिलती रहेगी आगे उनके बारे में जितना भी लिखा जाए मेरे पास शब्द नहीं है लिखने के लिए अंत में केवल इतना ही कहना चाहूंगा कि आज के पत्रकारों को श्री राकेश अचल जी जैसे लेखकों के लेख और व्यक्तित्व के बारे में जानने का प्रयास जरुर करना चाहिए! ताकि हम अपने पत्रकारिता धर्म का बखूबी पालन कर सकें!
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