जौनपुर। सन्तानों की लंबी आयु के लिए रखा चौथ का निर्जला व्रत

जौनपुर। गणेश चौथ का पर्व पुत्रवती माताओं ने आस्था और विश्वास के साथ मंगलवार को मनाया, इस अवसर पर महिलाओं ने निर्जला व्रत रखकर गणेश भगवान का विधि विधान से पूजन किया। कहते हैं कि भगवान गणेश ने इसी दिन माघ के चतुर्थी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की परिक्रमा की थी। चौथ का व्रत भगवान गणेश जी के पूजा.अर्चना कर अपने सन्तानों की लंबी उम्र और उन्के सुख.सौभाग्य की वृद्धि के हेतु महिलाएं रखती हैं। माताएं इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं। रात के समय चन्द्रमा को अर्घ्य देकर हीं व्रत पारण किया जाता हैं। चौथ के दिन भगवान गणेश जी के साथ सकट माता की भी पूजा की जाती है। पंचांग के अनुसार माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सकट चौथ का व्रत रखा जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि ये व्रत स्त्रियां संतान की लंबी आयु और सुख.समृद्धि के लिए रखती हैं। इस व्रत की पौराणिक कथा में बताया गया है कि  सत्ययुग में महाराज हरिश्चंद्र एक प्रतापी राजा थे। उनके राज्य में कोई अपाहिजए दरिद्र या दुखी नहीं था। सभी लोग व्याधि से रहित व दीर्घ आयु थे। उन्हीं के राज्य में एक ऋषिशर्मा नामक तपस्वी ब्राह्मण रहते थे। एक पुत्र प्राप्ति के बाद वे स्वर्गवासी हो गए। पुत्र का भरण.पोषण उनकी पत्नी करने लगी। वह विधवा ब्राह्मणी भिक्षा के द्वारा पुत्र का पालन.पोषण करती थी। उसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया पर आवां पका ही नहीं। बार.बार बर्तन कच्चे रह गए। अपना नुकसान होते देख उसने एक तांत्रिक से पूछाए तो उसने कहा कि किसी बलि देने से ही तुम्हारा काम बनेगा। उसी दिन विधवा ब्राह्मणी ने माघ माह में पड़ने वाली संकट चतुर्थी का व्रत रखा था। वह पतिव्रता ब्राह्मणी गोबर से गणेश जी की प्रतिमा बनाकर सदैव पूजन किया करती थी। इसी बीच उसका पुत्र गणेश जी की मूर्ति अपने गले में बांधकर बाहर खेलने के लिए चला गया। तब वही कुम्हार उस ब्राह्मणी के पांच वर्षीय बालक को पकड़कर अपने आवां में छोड़कर मिटटी के बर्तनों को पकाने के लिए उसमें आग लगा दी। इधर उसकी माता अपने बच्चों को ढूंढने लगी। उसे न पाकर वह बड़ी व्याकुल हुई और विलाप करती हुई गणेश जी से प्रार्थना करने लगी। रात बीत जाने के बाद प्रातःकाल होने पर कुम्हार अपने पके हुए बर्तनों को देखने के लिए आया जब उसने आवां खोल के देखा तो उसमें जांघ भर पानी जमा हुआ पाया और इससे भी अधिक आश्चर्य उसे जब हुआ कि उसमें बैठे एक खेलते हुए बालक को देखा। इस घटना की जानकारी उसने राज दरबार में दी और राजा के सामने अपनी गलती भी स्वीकार की। तब राजा ने अपने मंत्री को बाहर भेजा जानने के लिए कि वो पुत्र किसका है और कहां से आया था। जब विधवा ब्राह्मणी को इस बात का पता चला तो वे वहां तुरंत पहुंच गई। राजा ने वृद्धा से इस चमत्कार का रहस्य पूछाए तो उसने सकट चौथ व्रत के विषय में बताया। तब राजा ने सकट चौथ की महिमा को मानते हुए पूरे नगर में गणेश पूजा करने का आदेश दिया। उस दिन से प्रत्येक मास की गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगे। इस व्रत के प्रभाव से ब्राह्मणी ने अपने पुत्र के जीवन को पुनः पाया था।

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