बरसाना और नंदगांव के मध्य में मोती कुंड विद्यमान है। यह कुंड तीन ओर से पीलू के पेड़ों से घिरा हुआ है। इस पेड़ में मोती जैसे फूल होते हैं। ऐसी मान्यता है कि इन पेड़ों को कान्हा ने नंदबाबा के दिए बहुमूल्य मोतियों को बो कर उगाया था।
बरसाना के विरक्त संत रमेश बाबा बताते हैं कि गर्ग संहिता, गौतमी तंत्र सहित कई ग्रंथों में इस महान कुंड और राधा-कृष्ण की सगाई का वर्णन है। गोवर्धन पर्वत उठाने की लीला के बाद दोनों की सगाई हुई थी। सगाई के दौरान राधा के पिता वृषभानु ने नंदबाबा को उपहार में मोती दिए तब नंद बाबा चिंता में पड़ गए कि इतने बहुमूल्य मोती कैसे रखें?
श्रीकृष्ण चिंता समझ गए। उन्होंने मां यशोदा से लड़कर मोती ले लिए। घर से बाहर निकलकर कुंड के पास जमीन में मोती बो दिए।
जब यशोदा ने कृष्ण से पूछा कि, मोती कहां है? तब उन्होंने इसके बारे में बताया।
नंद बाबा भगवान कृष्ण के कार्य से नाराज हुए और मोती जमीन से निकालकर लाने को लोगों को भेजा। जब लोग यहां पहुंचे तो देखा कि यहां पेड़ उग आए हैं और पेड़ों पर मोती लटके हुए हैं तब बैलगाड़ी भरकर मोती घर भेजे गए तभी से कुंड का नाम मोती कुंड पड़ गया।
माना जाता है कि श्रीकृष्ण और राधा के मध्य सांसारिक रिश्ते नहीं थे लेकिन नंदगाव का यह मोती कुंड आज भी दोनों की सगाई की गवाही देता है। आज भी ब्रज 84 कोस यात्रा के दौरान लोग यहां पर मोती जैसे फल बटोरने आते हैं। यह डोगर (पीलू) का पेड़ है। पूरे ब्रज में कुछ ही स्थानों पर ये पेड़ हैं, लेकिन मोती जैसे फल केवल मोती कुंड के पास विद्यमान वृक्ष में ही मिलते हैं।
राधे राधे🙏🏻
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