छठ मैय्या की पूजा नहाय खाय से हुआ शुरु 

  
          गिरजा शंकर गुप्ता ब्यूरों

 अंबेडकर नगर। कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी शुक्रवार से ‘नहाये-खाये के साथ सूर्योपासना का महापर्व डाला छठ प्रारंभ हो गया है।शनिवार को खरना, रविवार को सूर्यदेव को सायंकालीन अर्घ्य तथा सोमवार को प्रात:कालीन अर्घ्य देने के साथ ही व्रत-पर्व संपन्न होगा। लोक आस्था व भगवान सूर्य की आराधना का महापर्व छठ को लेकर व्रती महिलाओं में जबरदस्त उत्साह है। छठ पूजा की पूर्णाहुति सोमवार को उगते हुए भगवान भास्कर को अध्य देने के उपरान्त संपन्न होगा बीते शुक्रवार से नहाये खाये के साथ शुरू हुआ भगवान भाष्कर का यह महापर्व चार चरणो मे संपन्न होता है। उपासना के पहले दिन की पूजा के बाद से नमक का त्याग कर दिया जाता है। छठ पर्व के दुसरे दिन को खरना के रुप मे मनाया जाता है। इस दिन भूखे-प्यासे रहकर महिलायें खीर का प्रसाद तैयार करती है। महत्वपूर्ण बात है कि यह खीर गन्ने के रस की बनी होती है इसमे चीनी व नमक का प्रयोग नही किया जाता है। सायंकाल इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद व्रती महिलायें निर्जल व्रत की शुरुआत करती है। पहले दिन रविवार की शाम डूबते हुए सूर्य को अध्य देगी। चौथे व आखिरी दिन सोमवार को उगते हुए सूर्य की पूजा करेगी। उसके बाद व्रती महिलाए कच्चा दूध व प्रसाद ग्रहण करके व्रत व पूजा की पूर्णाहुतिकरेगीlअस्ताचलगागी सूर्य को अर्घ्यछठ पर्व के तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी रविवार को पूर्ण उपवास रहकर व्रती महिलायें सायंकाल में डूबते हुए सूर्य को अर्घ्‍य देगीउदयाचलगामी सूर्य को अर्घ्यषष्ठी महापर्व की पूर्णाहुति चतुर्थ दिन सोमवार को उगते सूर्य को अर्घ्‍य देने के साथ संपन्न होती है। अर्घ्य देने के बाद व्रती महिलाएं पारन करेंगी।षष्ठी के दिन पूर्वाह्न में वेदी पर जाकर छठ माता की महिलायें पूजा करती है ।अपराहन घाट पर वेदी के पास जाकर पूजन सामग्री वेदी पर चढ़ाते हुए व दीप प्रज्वलित करती हैअस्ताचलगामी सूर्य की आरती कर दूध और जल अर्पित कर दीप जल में प्रवाहित करती है । व्रता वेला (सुबह) में परिजनों के साथ निकल कर पवित्र सरयू तट पर पहुंचती है और व्रती महिलाओं का समूह जलधारा में खड़े होकर पूरे श्रद्धा के साथ सूर्य उदय की प्रतीक्षा करती है । सूर्य उदय पर आरती कर जल, दूध आदि अर्पित कर भगवान भाष्कर की पूजा-अर्चना करती है।
सूर्य षष्ठी पूजा में ऋतुफल के अतिरिक्त आटा, गुड़ और घी से निर्मित ठेकुआ प्रसाद होना अनिवार्य है। पूजा सामग्री में पांच तरह के फल, मिठाइयां, गन्ना, केले, नारियल, पाइनेपल, नींबू, शकरकंद, अदरक नया अनाज शामिल होता है। महिलाएं पूजा सामग्री सजाती है। जिसे पुरुष शाम को नए बांस के डाले में रखकर सरयू तट ले जाते है। महिलाएं पानी में खड़ी होकर अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देंगी। अगले दिन सुबह पूजा सामग्री के साथ अंकुरित चने दही लेकर फिर सरयू तट पर पहुंच पानी में खड़े हो उदय होते सूर्य को अर्घ्य दिया जायेगा। 


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