सूर्य कितना महत्वपूर्ण है चिकित्सा ज्योतिष में - जानते हैं सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्राजी से
सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल
इंटरनेशनल वास्तु अकडेमी
सिटी प्रेजिडेंट कोलकाता
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सूर्य के ही प्रभाव से गर्मी, जाड़ा, वर्षा आदि ऋतुवों का आगमन होता है। सूर्य एवं चन्द्रमा अपने गुण-धर्म के अनुसार व्यक्ति को भी प्रभावित करते हैं। जिस गृह के प्रभाव में बालक पैदा होता है, उसी के अनुसार उसका प्राकृतिक स्वभाव बन जाता है। वास्तव में जीवन के भाव, विचार, रूप, व्यक्तित्व, न्याय-अन्याय, सत्य, असत्य, प्रेम,स्मृति, प्रवृत्ति, कला आदि से सम्बन्धित भावों का प्रतिनिधित्व ग्रह ही करते हैं। सूर्य आन्तरिक सदाचार, प्रभुता, ऐश्वर्य से सम्बन्ध रखते है। ग्रहों का प्रभाव मनुष्य के स्वस्थ पर भी पड़ता है।
डिविशनल चार्ट
एक योग्य ज्योतिषी कुण्डली देखकर भूत, वर्तमान, भविष्य का कथन कर सकता है। गत जीवन के बारे में महर्षि पराशर ने द्रेष्काण से विचारने का निर्देश दिया है। सूर्य एवं चन्द्र के द्रेष्काण से पिछले जन्म की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। सूर्य एवं मंगल पृथ्वी लोक का प्रतिनिधित्व करते हैं।
सूर्य से जुड़ी खगोल शास्त्र की बात
जिस मार्ग से आकाश में सूर्य भ्रमण करता है, उसे क्रान्तिवृत कहते है। यह अण्डाकार हैं। सूर्य एक वर्ष में १२ राशियों की परिक्रमा पूरी करता है। क्रान्तिवृत के उत्तर-दक्षिण ३° -९° की चौड़ाई का एक कल्पित पथ माना जाता है, जिसे राशि चक्र कहते हैं। इस राशि चक्र के १२ बराबर भाग किये गये है। प्रत्येक भाग ३०° मान का है। इससे राशियाँ एवं २७ बराबर भाग करने से (१३. -२०' ) २७ नक्षत्र बने हैं।
सूर्य किन चीजों का करक है
यह आत्मा एवं पिता का प्रतिनिधित्व करता है। लकड़ी, मिर्च, घास, जानवर, हिरन, शेर, ऊन, स्वर्ण, आभूषण, ताँबा आदि का कारक है।
सूर्य कौन कौन सी बिमारिया दे सकता है
बुखार,पेट, आँख, हृदय, चेहरा , सिर, रक्तचाप, गंजापन सम्बन्धी बीमारी होती है।
सूर्य की महादशा में कौन कौन से रोग हो सकते हैं
हमारे जीवन का दशा क्रम निर्धारित है। मान लेते है किसी व्यक्ति की सूर्य के महादशा में ,सूर्य अंतर दशा में उसकी मृत्यु हुई और वो दशा कुछ सेस रह गई थी, तो अगला जन्म जब होगा इस व्यक्ति का तो यहीं से दशा क्रम चलेगी।सूर्य की स्थिति जन्मपत्रिका में रोगकारक हो तो सूर्य की दशा में शारीरिक कष्ट आते है । ८४ लाख योनियों के बाद मनुष्य शरीर और मनुष्य जीवन मिलता है। अब बात आती है सूर्य महादशा की और इस में होने वाली बीमारियों की साधारणतः रोग का प्रकार, तीव्रता, होना या न होना सूर्य की स्थिति, यति एवं दृष्टि पर निर्भर होता है।
गोचर का सूर्य
गोचर में मंगल जब-जब सूर्य से युति करे या दृष्टि डाले तो साधारणतः जातक को ज्वर होते देखा गया है।
सूर्य नीच हो, पापी ग्रहों से दृष्ट हो, तो चोर, राजा एवं ज्वर का खतरा रहता है।
मनोविकार, वात-विकार, नेत्ररोग, पिता को कष्ट, हृदयरोग, नेत्ररोग आदि ऐसे रोग हैं, जो दशा में उत्पन्न हो सकते हैं, शर्त है कि सूर्य की स्थिति रोगकारक हो।
वास्तु और सूर्य
वास्तु शास्त्रों में द्वादश आदित्य के रूप में ही है सूर्य देव, इसेके अलावा सूर्य नाम का द्वार भी है। पुरे वास्तु मंडल का सबसे सशक्त स्थान विवस्वान को माना गया है। जिनको भी शासक बनना है, देश पे, घर पे, अपने कार्यछेत्र पे राज्य करना है तो उन्हें विवस्वान में ही अपना सब कुछ करना चाहिए।
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