जौनपुर। पूर्वजों के प्रति सम्मान और श्रद्धा प्रकट करना कहलाता है पितृ पक्ष

जौनपुर। हिंदू धर्म में पितृ यानी हमारे पूर्वज जो अब इस दुनिया में जीवित नहीं हैं उनके प्रति आस्था, सम्मान और श्रद्धा व्यक्त करना ही पितृ पक्ष कहलाता है। दिवंगत प्रियजनों की आत्माओं की तृप्ति, मुक्ति और श्रद्धा पूर्वक की गई क्रिया का नाम ही श्राद्ध है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष भाद्रपद पूर्णिमा तिथि से लेकर अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक का समय पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष कहलाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान हमारे पूर्वज जो अब इस दुनिया में नहीं हैं वे अपने परिजनों के पास मुक्ति और भोजन प्राप्त करने के लिए उनसे मिलने आते हैं। इस कारण से पितृपक्ष का विशेष महत्व होता है। ऐसे व्यक्ति जो इस धरती पर जन्म लेने के बाद जीवित नहीं है उन्हें पितर कहते हैं। ये विवाहित हों या अविवाहित, बच्चा हो या बुजुर्ग, स्त्री हो या पुरुष उनकी मृत्यु हो चुकी है उन्हें पितर कहा जाता है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए भाद्रपद महीने के पितृपक्ष में उनको तर्पण दिया जाता है। पितर पक्ष समाप्त होते ही परिजनों को आशीर्वाद देते हुए पितरगण वापस मृत्युलोक चले जाते हैं। ज्योतिषशास्त्र के नजरिए से अगर देखा जाए तो जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करते हैं तब ही पितृ पक्ष आरंभ होता है। ज्योतिषीय दृष्टि से इस अवधि में सूर्य कन्या राशि पर गोचर करता है। इसलिए इसे कनागत भी कहते हैं। जिनकी मृत्यु तिथि मालूम नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस्या को किया जाता है। इसे सर्वपितृ अमावस या सर्वपितृ श्राद्ध भी कहते हैं। 
 
यह एक श्रद्धा पर्व है। इस बहाने अपने पूर्वजों को याद करने का एक रास्ता। पितृ पक्ष के दौरान लोग अपने पूर्वजों को प्रसन्न करने के लिए और उन्हें भोजन से तृप्ति के लिए कौए, गाय और कुत्ते को भोजन दिया जाता है। पितृ पक्ष में यम बलि और श्ववान बलि देने का विधान होता है। यम बलि में कौए को और श्वान बलि कुत्ते को भोजन के रूप में दिया जाता है। कौआ और श्वान दोनों ही यमराज के संदेश वाहक हैं। इसके अलावा गाय में सभी 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है इसलिए गाय का महत्व है। वहीं पितर पक्ष में श्वान और कौए पितर का रूप होते हैं इसलिए उन्हें ग्रास देने का विधान है। पितृपक्ष में इनका खास ध्यान रखने की परंपरा है। अन्य मान्यताओं के अनुसार पितृपक्ष में पितरदेव गाय, कौए और श्वान के रूप में अपने प्रियजनों के पास भोजन ग्रहण करने आते हैं। इस कारण से भी इन तीनों का महत्व होता है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में तर्पण और पिंडदान का सबसे ज्यादा महत्व होता है। पिंडदान और श्राद्ध पूजा के लिए गया की धरती को श्रेष्ठ और शुभ माना गया है। शास्त्रों में गया को विशेष महत्व दिया गया है। गया की भूमि को पांचवां धाम भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि गया में पिंडदान और श्राद्ध पूजा करने से पितरों का मुक्ति मिल जाती है। गया भारत के बिहार राज्य में स्थित है। भगवान विष्णु ने इसी जगह पर गयासुर नाम के राक्षस का वध किया था जिसके कारण इसका नाम गया पड़ा। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु के चरण गया में उपस्थित है। पितृपक्ष के दौरान गया में कर्मकांड का विधि विधान अलग-अलग है। श्रद्धालु एक दिन, तीन दिन, सात दिन, पंद्रह दिन और 17 दिन का कर्मकांड करते हैं। अग्नि  जल और अन्न के माध्यम से गया में श्राद्ध पूजा करने पर हमारे पितरों तक पहुँचाकर उन्हें तृप्ति किया जाता है। हिंदू धर्म में चावल को बहुत ही शुभ अन्न माना गया है। चावल को अक्षत कहा गया है। चावल में एक विशेषता होती जो कभी खराब नहीं होते। इसके अलावा चावल ठंडी तासीर वाला भोजन है। पितरों को शांति मिले और लंबे समय तक वो इन पिंडों से संतुष्टि पा सकें, इसलिए पिंड चावल के आटे से बनाए जाते हैं। हिंदू धर्म की मान्यता अनुसार पितृ पक्ष पितरों के लिए समर्पित होता है. ऐसे में इस दौरान घर के किचन में मीट मांस, लहसून, प्याज मसूर की दाल, भूलकर भी न बनाएं. ऐसा करने से पितृ देव नाराज होते हैं और पितृ दोष लगता है. इसके साथ ही इस दौरान जो लोग पितरों का तर्पण करते हैं उन्हें शरीर में साबुन और तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए. पितृ पक्ष के दौरान नए कपड़े, भुमि, भवन सहित सभी प्रकार के मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं।

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