जौनपुर। गौरव बढ़ाने वालों की स्मृति संजोएगी सरकार- गिरीशचन्द्र यादव
जौनपुर। जिन महान विभूतियों ने राष्ट्रीय अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर जनपद का गौरव बढ़ाया है, उनकी पावन स्मृति को अक्षुण्य बनाये रखने के लिये सरकार दृढ़ संकल्प्ति है। उक्त उद्गार प्रदेश के खेल एवं युवा कल्याण राज्यमंत्री गिरीशचन्द्र यादव ने क्षेमस्विनी संस्था द्वारा साहित्य वाचस्पति डा. श्रीपाल सिंह के जन्म शताब्दी पर आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किया। उन्होंने कहाकि साहित्य, राजनीति, समाजसेवा, विज्ञान सभी क्षेत्रों मे जौनपुर की मिट्टी ने अपना परचम लहराया है। समारोह की अध्यक्षता कर रही राज्यसभा सदस्य सीमा द्विवेदी ने कहाकि डा. क्षेम ने साहित्य के क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान दिया है। उन्होंने कविताओं के माध्यम से लोकतांत्रिक एंव मानवीय मूल्यों को स्थापित करने का कार्य किया है।
विशिष्ट अतिथि विधान परिषद सदस्य ब्रजेश कुमार सिंह प्रिंसू ने डा. क्षेम को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहाकि डा. क्षेम की कविताएं समाज को लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति सजग करती है। अपने अध्यक्षीय संबोधन में राज्यसभा सदस्य सीमा द्विवेदी ने कहाकि डा. क्षेम साहित्य एंव समाज के प्रति समर्पित रहे। उनके कारण साहित्य जगत में जौनपुर को गौरव मिला। उन्होंने कहा कि इस तरह की महान विभूतियों की पावन स्मृति को संजोए रखने हेतु वे संसद में प्रस्ताव ले आएगी। कार्यक्रम के आरंभ में अतिथिगण द्वारा दीप प्रज्जवलन एंव साहित्य वाचस्पति के चित्र पर माल्यार्पण किया गया। अतिथियो को क्षेमस्विनी संस्था द्वारा बुके, अंगवस्त्रम् एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। इसके बाद दीपक पाठक ने क्षेम जी की कविताओं-रस के हास झरो तथा एक पल ही जियो, फूल बनकर जियो की संगीतमय प्रस्तुति से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम के द्वितीय चरण में कवि सम्मेलन का शुभारंभ कवयित्री सरोज यादव ने-भाव, पावन नीर से करते तुम्हारा आचमन। शारदे! तुमको नमन, मां शारदे! तुझको नमन।। वाणी वंदना से किया। इसके पश्चात बाराबंकी से पधारे कवि गजेन्द्र प्रियान्शु ने-न थे लायक कभी भी जो, अब लायक हो गये होंगे। जो बैसाखियों पर थे सहायक हो गये होंगे। गये परदेश तो फिर घर नहीं लौटे, महाराष्ट्र जा करके विधायक हो गये होंगे। जैसी कविताएं सुनाकर वाहवाही लूटी। मंच संचालक श्लेष गौतम ने-कोई धन के लिये, केाई मन के लिए, कोई जीता है बस तन बदन के लिये। याद रखती है दुनियां मगर बस उसे, जान दे दे जो अपनी वतन के लिए।। जैसी पंक्तियों से देशभक्ति कीधारा प्रवाहित की तो कवयित्री आराधाना शुक्ला, ने-तुम खामोशियां गुनगुनाते रहो, मै तरन्नुम खड़े गीत गाती रहूं। तुम गेसू को मरे संवारा करो, मै दुपट्टे का कोना चलाती रहूं।। जैसे गीतों से श्रृंगार रस की छटा बिखेरी। वाराणसी से पधारे पं. हरिराम द्विवेदी ने अपने अध्यक्षीय काव्य पाठ में-बदरा बरसै त बरसै सिवनवां, अंगनवा न भी जई हो, तथा माई अस केहू नाहीं माई, माई होले जैसे गीतों से गांव की मिट्टी की सुगंध बिखेरी। आभार ज्ञापन शशिमोहन सिंह क्षेम ने किया।
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