लेखक: प्रेम शुक्ल भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय प्रवक्ता
मां काली का स्वरूप भारत की अधिष्ठात्री देवी के स्वरूपों में एक है। वह हम सबकी पूज्या और आराध्या हैं। सुसंस्कृत परंपराओं के आग्रही और संस्कारों के भद्रलोक बांग्ला समाज में तो मां काली का विशेष स्थान है।आज मां काली से जुड़ी धार्मिक, आध्यात्मिक और आस्था के विषय पर राजनीतिक चर्चा आहत करने वाली है।

 एक टीवी कार्यक्रम में तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा द्वारा की गई टिप्पणी ने संपूर्ण विश्व के देवी आराधकों और उपासकों को आहत किया है। भारतीय परंपराओं के प्रति कमतर का भाव रखने वाले दम्भी और अहंकारी परिवेश की इस नेत्री का माँ काली पर सार्वजनिक टिप्पणी के बाद भी अपने बयान पर अडिग रहना बहुसंख्यक समाज के लिए पीड़ादायक है। इस बयान के राजनीतिकरण के बाद अल्पसंख्यकों की मसीहा बनने का दावा करने वाली ममता बनर्जी द्वारा भी अपनी सांसद महुआ को परोक्ष रूप से सेफ़ गार्ड मुहैया कराना एक आध्यात्मिक और पवित्र विषय का घृणित तरीके से राजनीतिकरण है।

 प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने बीते दिनों मां काली की विराटता, स्वीकार्यता और दिव्यता पर चर्चा करके यह संकेत दिया कि हमारी आस्थाएं और परंपराएं राजनीति से कहीं ऊपर हैं। हमारी धार्मिक मान्यताओं पर समय-समय पर चलने वाला मीडिया ट्रायल समाज को तोड़ता है। हमारी सर्वग्राही, सर्वव्यापी और सर्वस्पर्शी संस्कृति हजारों वर्षों के सुनियोजित आक्रमणों के बाद ही इसीलिए जीवित है क्योंकि इसके आस्थावादी दृढ़निश्चय के साथ अपनी मान्यताओं को जीते हैं।

 पश्चिम से हमारे भारत में आया अब्राह्मिक पंथ स्वाभाविक तौर पर भारतीय धार्मिक परंपरा में व्याप्त व्यापकता से हटकर हैं। यहूदियत हो ,ईसाइयत या फिर इस्लामी परंपराएं ,इनमें ईशनिंदा करने वाले को मृत्युदंड देने जैसे कड़े प्रावधान हैं। जबकि भारतीय भूमि से विश्वव्यापी हुए सनातन, जैन और बौद्ध पंथ में ईशनिंदा जैसे शब्दों का जिक्र तक नहीं है। उसमें दंड का प्रावधान होना तो दूर की बात है । इसलिए इस्लामी या ईसाई धार्मिक प्रतीकों पर हुए प्रहार पर आज भी वैश्विक हंगामा खड़ा होता है जबकि हिंदू धार्मिक प्रतीकों पर हुए प्रहार को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या कलात्मकता करार दी जाती है । 

बीते दशकों की घटनाओं पर ही नजर घुमा लें । फ्रांस की एक व्यंग्य पत्रिका 'शर्ली हेब्दो' में इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद साहब का एक कार्टून प्रकाशित हुआ। पूरे इस्लामी विश्व में इसकी तीव्र प्रतिक्रिया हुई । 'शर्ली हेब्दो' के मुख्यालय को आतंक का निशाना बनाया गया । इस्लामी देशों ने फ्रांस पर राजनयिक दबाव बनाया । हिंदुस्तान के कई शहरों में हिंसक प्रदर्शन और तोड़फोड़ की घटनाएं हुईं । राज्यों के मंत्री पदों पर बैठने वाले मुस्लिम नेताओं ने कार्टून बनाने वाले के सिर पर करोड़ों रुपयों के इनामों का ऐलान किया। 'अवध नामा ' नामक एक उर्दू दैनिक ने 'शर्ली हेब्दो के कार्टून को संदर्भवश प्रकाशित किया तो उस  दैनिक का मुंबई संस्करण हमेशा के लिए बंद कर दिया गया। 'अवध नामा' की संपादक को आजन्म गुमनामी के गर्त में गिरना पड़ा । किसी भी लिबरल  सेकुलर व्यक्ति ने संपादक का न साथ दिया न ही 'अवध नामा ' की महिला संपादक के पक्ष में बयान नहीं जारी हुए । 

 मां सरस्वती की नग्न पेंटिंग मकबूल फिदा हुसैन ने प्रदर्शित की । उस पर विवाद खड़ा हुआ। कई हिंदू संगठनों ने भारतीय दंड विधा की धाराओं के तहत मुकदमे दर्ज कराए।  परिणाम स्वरूप एम एफ हुसैन के खिलाफ अदालती प्रक्रिया प्रारंभ हुई  । उनके खिलाफ अदालतों ने समन जारी किए।तब इस न्यायालयीन प्रक्रिया को तमाम सेकुलरों और लिबरलों ने हिंदुओं का कट्टरपंथ करार दिया। उनका तर्क था एम एफ हुसैन की कला को उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। यदि एमएफ हुसैन का सरस्वती का नग्न चित्र बनाना कला है तो फिर पैगंबर मोहम्मद साहब के कार्टून को कला न मान उसे ईशनिंदा का अपराध क्यों माना गया ? इस प्रश्न का तार्किक उत्तर आज दिन तक कोई भी देने के लिए तैयार नहीं। 

देश अभी भूला नहीं है उन्हीं दिनों स्वयं कांग्रेस की सरकार ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक शपथ पत्र दायर कर कहा कि हिंदुओं के आराध्य प्रभु श्री रामचंद्र एक काल्पनिक पुरुष हैं। प्रभु राम को काल्पनिक कहना सरकार का सेकुलरिज्म कैसे हो सकता है ? यदि प्रभु राम काल्पनिक हैं तो शेष पंथों  के मामले में टिप्पणियों पर इतना हंगामा क्यों मचता है ? उसी दशक में एक फिल्म प्रदर्शित हुई 'दा विंची कोड'। इस फिल्म पर तमाम उन देशों ने भी प्रतिबंध नहीं लगाये जहां ईसाई समुदाय बहुसंख्यक है। किंतु भारत में ईसाई कुल में उत्पन्न श्रीमती सोनिया गांधी ने तत्काल प्रतिबंध लगाने का आदेश दे दिया।  दा' विंची कोड ' के समय पंथिक संवेदनशीलता सरकार की नीति बन जाती है और मां सरस्वती की नग्न तस्वीर में कलात्मकता की  खोज हो जाती है । दरअसल इसका कारण है हमारी संस्कृति का उदारवादी होना औरअब्राह्मिक पंथों में ईशनिंदा पर दंड का प्रचलन अब तक जारी रहना।

 ईशनिंदा करने पर ईसाई समूहों द्वारा 1919 में ऑस्ट्रेलिया में दंड दिया गया था । 1966 में फिनलैंड में ईशनिंदा करने पर हन्नू सलामा को दंडित किया गया । 2003 में ग्रीस के एक कार्टूनिस्ट गेरार्ड हेडरर को ईशनिंदा के अपराध में दंडित किया गया। इस्लामी परंपरा में तो ईशनिंदा पर 'सर तन से जुदा' का नारा लगने लगता है। अफगानिस्तान ,पाकिस्तान, ईरान  और सऊदी अरब में  ईशनिंदा पर मृत्युदंड का प्रावधान है।भारत में दर्जनों लोगों के सिर इस्लामी चरमपंथियों की बलि चढ़ चुके हैं।  इसका परिणाम है कि हर कोई इस्लामी या ईसाई धार्मिक प्रतीकों का अपमान करने से भय खाता है।  जबकि हिंदू प्रतीकों की अवमानना  करते समय वह बिंदास मुफ्त के प्रचार का लाभ पाता है। 

बीते कुछ दशकों से अनेक हिंदू संगठनों व संस्थाओं द्वारा अपने आराध्यों के अपमान पर स्वाभाविक रूप से निंदा व विरोध होता है। अवमानना करने वाला व्यक्ति इस विरोध को कट्टरपंथ करार देकर खुद उदार पंथ का नायक तो बनता ही है साथ ही साथ वाणिज्यिक लाभ भी कमाता है साथ में एक और बड़ा दुर्भाग्य है कि सनातन समाज के अनेक जयचंदी कुपढ कुपुत्र इनके चीयरलीडर बन जाते हैं। इसीलिए आए दिन भगवान शिव, भगवान राम, भगवान श्री गणेश ,भगवती काली- लक्ष्मी- और सरस्वती समेत तमाम देवी देवताओं का योजना पूर्वक अपमान किया जाता है। हाल ही में भगवान शंकर के शिवलिंग को किस तरह एक समाज द्वारा टिप्पणियों और कार्टून के माध्यम से अपमानित किया गया। लीना मणिमेकलाई और महुआ मोइत्रा ने इसी इकोसिस्टम का लाभ कमाया है। अब हिंदू चेतना प्रखर होने के कारण इन्हें कानूनी शिकंजे का सामना करना पड़ रहा है इसलिए तथाकथित लिबरल चारण बौखलाए हुए हैं । बीते कुछ वर्षों से जो हिंदू देवी देवताओं का अपमान करता है उसके खिलाफ कानूनी प्रक्रिया प्रारंभ हो रही है । 

इसे सामाजिक जागरूकता कहें या अपने धार्मिक मूल्यों के प्रति चेतना जिस कारण हाल के कुछ वर्षों से हिंदू द्रोहियों के प्रति सामाजिक मुखरता और कानूनी सक्रियता दिखाई दे रही है इसलिए मुनव्वर फारूकी को इंदौर में जेल की हवा खानी पड़ती है। अल्ट न्यूज वाले जुबेर को हिरासत में लिया जाता है । लीना मणिमेकलाई काली का अपमानजनक पोस्टर प्रकाशित करती हैं तो उसकी फिल्म को कनाडा जैसे देश में आयोजक प्रतिबंधित कर देते हैं । नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में कनाडा स्थित भारतीय दूतावास की कड़ी आपत्ति के चलते सर आगा खां ऑडिटोरियम के आयोजकों को क्षमा प्रार्थना करनी पड़ती है। महुआ मोइत्रा के खिलाफ मुकदमे दर्ज हो जाते हैं । कल तक जो लोग हिंदू देवी देवताओं के अपमान को अपने प्रचार का धंधा बनाए बैठे थे उनमें भदभदाहट है । 

स्वामी आत्मास्थानंद के शताब्दी वर्ष समारोह में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह समग्र विश्व में मां काली की चेतना के चराचर में व्याप्त होने का शंखनाद किया उससे भारत के आध्यात्मिक उत्कर्ष का वैश्विक संदेश गया । जो लोग मां काली को अपमानित कर खुद को चमकाना चाह रहे थे वे कानूनी जंजाल में हैं यही बदलते भारत की तस्वीर है। यही 'एक भारत को श्रेष्ठ भारत ' बनाने का शंखनाद है।  इसी कारण जो लोग कल तक कहते थे कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन जाएंगे तो हम इस देश का पासपोर्ट ,राशन कार्ड ,पैन कार्ड वापस लौटा देंगे । वे अब कनाडा में भी भारतीय कानून का सामना करने के लिए मजबूर हो रहे हैं । काली हमेशा शांति की संस्थापक और आसुरीशक्तियों के दमन-शमन व संहार की देवी हैं। कामना है सभ्य समाज से आसुरी शक्तियों का लोकतांत्रिक संहार हो और प्रेम, सद्भाव और शांति के नागरिक जीवन का वातावरण बने ।

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