प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के सम्बन्ध में जनपद वाराणसी में आयोजित
 ‘अखिल भारतीय शिक्षा समागम’ के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित किया

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 का मूल आधार, शिक्षा को संकुचित सोच के दायरों से
बाहर निकालकर उसे 21वीं सदी के आधुनिक विचारों से जोड़ना है: प्रधानमंत्री

भारत दुनिया की सबसे तेजी से उभर रही अर्थव्यवस्थाओं में से एक, नई शिक्षा
नीति में बच्चों की प्रतिभा निखारने, उन्हें कुशल तथा कॉन्फिडेण्ट बनाने पर जोर

तेजी से आ रहे परिवर्तन के बीच शिक्षाविदों की भूमिका अहम

राष्ट्रीय शिक्षा नीति मातृ भाषा में पढ़ाई के रास्ते खोल रही

काशी और भारत की परम्परा विद्या से जुड़ी रही है: मुख्यमंत्री

प्रधानमंत्री जी की प्रेरणा से राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने
ज्ञान के सभी दिशाओं से आने के द्वार खोले

काशी में पं0 मदन मोहन मालवीय जी ने प्राचीन और अर्वाचीन शिक्षा के
एक केन्द्र के रूप में सन् 1916 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की

काशी प्राचीनकाल से ही भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत की प्रतीक रही

प्रदेश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को स्नातक स्तर पर लागू किया गया

प्रदेश के सभी शासकीय और निजी क्षेत्र के विश्वविद्यालयों, तकनीकी शिक्षा,
कृषि शिक्षा, स्वास्थ्य शिक्षा और अन्य सभी क्षेत्रों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति
को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाने का कार्य उ0प्र0 में किया गया

विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों तथा शिक्षा केन्द्रों को स्थानीय परिस्थितियों
के अनुरूप नवाचार और शोध के लिए अपने को तैयार करना चाहिए

लखनऊ: 07 जुलाई, 2022

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 का मूल आधार, शिक्षा को संकुचित सोच के दायरों से बाहर निकालकर उसे 21वीं सदी के आधुनिक विचारों से जोड़ना है। हमारे यहां मेधा की कमी कभी नहीं रही, लेकिन ऐसी व्यवस्था बनाई गई थी, जिसका मतलब केवल नौकरी थी। अंग्रेजों ने गुलामी के दौर में उसका निर्माण अपने लिए सेवक बनाने के लिए किया था। आजादी के बाद बदलाव हुआ, लेकिन उतना कारगर न था। अंग्रेजों की बनाई व्यवस्था कभी भारत से मेल नहीं खा सकती। हमारे यहां कला की अलग-अलग धारणा थी। बनारस ज्ञान का केन्द्र इसलिए था कि यहां ज्ञान विविधता से ओत-प्रोत था। इसे शिक्षा व्यवस्था का आधार होना चाहिए।
प्रधानमंत्री जी ने यह विचार राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के सम्बन्ध में आज जनपद वाराणसी स्थित रुद्राक्ष कन्वेंशन सेण्टर में आयोजित ‘अखिल भारतीय शिक्षा समागम’ के उद्घाटन अवसर पर व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि शिक्षा व शोध का तथा विद्या व बोध का इतना बड़ा मंथन सर्व विद्या के केन्द्र काशी में होगा, तो इससे निकलने वाला अमृत अवश्य देश को नई दिशा देगा। हम डिग्री धारी ही न तैयार करें, यह संकल्प शिक्षकों व शिक्षण संस्थानों को करना है। हमारे शिक्षक जितनी तेजी से इस भावना को आत्मसात करेंगे, उतना ही युवा पीढ़ी को लाभ होगा। हमारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी इसी प्रकार से तैयार की गई है कि सभी बच्चों को उनकी रुचि के अनुसार तैयार होने का मंच मिलेगा।
प्रधानमंत्री जी ने कहा कि भारत दुनिया की सबसे तेजी से उभर रही अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। पहले सरकार ही सभी कार्य करती थी। आज निजी क्षेत्र भी साथ मिल कर चल रहा है। अभी तक स्कूल, कॉलेज व किताबें यह तय करते थे कि बच्चों को किस दिशा में जाना है। लेकिन नई शिक्षा नीति में बच्चों की प्रतिभा निखारने, उन्हें कुशल तथा कॉन्फिडेण्ट बनाने पर जोर है। नई शिक्षा नीति इसके लिए जमीन तैयार कर रही है। तेजी से आ रहे परिवर्तन के बीच शिक्षाविदों की भूमिका अहम है। आपको पता होना चाहिए कि दुनिया कहां जा रही है, हमारा देश कहां है, हमारे युवा कहां है। हम उन्हें कैसे तैयार कर रहे हैं। यह हमारा बड़ा दायित्व है। यह समस्त शिक्षा संस्थानों को सोचने की आवश्यकता है कि क्या हम फ्यूचर रेडी हैं। हमें सौ साल के बाद की सोच रखकर चलना होगा। वर्तमान को सम्भालना है, लेकिन भविष्य के लिए व्यवस्था खड़ी करनी होगी।
प्रधानमंत्री जी ने कहा कि आप सभी का प्रयास ही है कि आज का युवा बड़े बदलाव में भागीदार बन रहा है। देश में बड़ी संख्या में नए कॉलेज, आई0आई0टी0, आई0आई0एम0 बन रहे हैं। देश में मेडिकल कॉलेजों की स्थापना में 55 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इन प्रयासों का परिणाम है कि वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में देश के संस्थानों की बढ़ोत्तरी हो रही है। अभी इस दिशा में लंबी दूरी तय करनी है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति मातृ भाषा में पढ़ाई के रास्ते खोल रही है। काशी की इस धरती से हुई शुरूआत संकल्पों को नई ऊर्जा देगी। भारत वैश्विक शिक्षा का बड़ा केन्द्र बन सकता है। दुनिया के देशों में भी हमारे युवाओं के लिए नए अवसर सृजित हो सकते हैं।
प्रधानमंत्री जी ने कहा कि हमें अन्तर्राष्ट्रीय मापदण्डों पर शिक्षा को तैयार करने के प्रयास करने होंगे। देश के युवाओं की सोच से देश के विश्वविद्यालयों को भी जुड़ना चाहिए। विश्वविद्यालय सरकारी व्यवस्था में भी भागीदारी करें, तो चीजें बदल सकती हैं। लैब-टू-लैण्ड का रोड मैप होना चाहिए। साथ ही, लैण्ड के अनुभव को लैब में भी लाना चाहिए। परम्परागत अनुभव का लाभ भी लेना चाहिए। हमारे पास परिणाम के साथ प्रमाण भी होने चाहिए। डेटा बेस होना चाहिए। ऐसा करके दुनिया के कई देश आगे बढ़ रहे हैं। हमें डेमोग्राफिक डिविडेन्ड के लाभ पर कार्य करना होगा। यह सोचने का काम हमारे विश्वविद्यालयों का सहज स्वभाव होना चाहिए।
प्रधानमंत्री जी ने कहा कि पूरी दुनिया में सोलर एनर्जी पर चर्चा हो रही है। हम भाग्यशाली हैं कि हमारे पास चमकता सूरज है। विज्ञान, अनुसंधान से हमें सोलर एनर्जी के अधिक से अधिक उपयोग पर कार्य करना चाहिए। साथ ही, क्लाइमेट चेंज पर काम करना होगा। आज देश खेल के क्षेत्र में भी उपलब्धियां हासिल कर रहा है। खेल विश्वविद्यालय बन रहे हैं। मैदान शाम को भरे रहने चाहिए, ऐसा वातावरण बनना चाहिए। विश्वविद्यालय लक्ष्य बना सकते हैं कि आने वाले वर्षों में हम देश के लिए कितने गोल्ड मेडल ला सकते हैं। दुनिया के कितने देशों में हमारे बच्चे खेलने जाएंगे। अनेक क्षेत्रों में अनगिनत सम्भावनाएं हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति इसके अवसर प्रदान कर रही है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि काशी और भारत की परम्परा विद्या से जुड़ी रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारत की उस वैदिक परम्परा का प्रतिनिधित्व करती है, जो उद्घोष करती है ‘आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः’। ज्ञान को सभी दिशाओं से आने के लिए हमें द्वार खुले रखने चाहिए। प्रधानमंत्री जी की प्रेरणा से राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने देश की आजादी के बाद पहली बार ज्ञान के सभी दिशाओं से आने के द्वार खोले हैं। प्राचीन विद्या की नगरी काशी में पं0 मदन मोहन मालवीय जी ने प्राचीन और अर्वाचीन शिक्षा के एक केन्द्र के रूप में सन् 1916 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। उन्होंने काशी में देश भर के शिक्षाविदों के इस शिक्षा महासमागम के आयोजन के साथ राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर व्यापक मंथन के लिए उपस्थित होने के लिए प्रधानमंत्री जी का आभार व्यक्त किया।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि काशी प्राचीनकाल से ही भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत की प्रतीक रही है। यह विद्या की नगरी है। जब पूरी दुनिया इस सदी की सबसे बड़ी महामारी के सामने असमंजस की स्थिति में थी, तब भारत में जीवन और जीविका बचाने के साथ ही, नए भारत की परिकल्पना को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से देश, अपनी वर्तमान और भावी पीढ़ी के लिए रख रहा था। यह अत्यन्त प्रसन्नता का विषय है कि उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तीन दिवसीय कार्यक्रम में देश भर के सभी शिक्षाविद, इसे लागू करने और इसकी भावी योजनाओं पर व्यापक मंथन करने के लिए काशी की इस धरती पर उपस्थित हुए हैं।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि मंथन की इस परम्परा से कोई अमृत जरूर निकलेगा। इसके लिए प्रधानमंत्री जी की प्रेरणा से राष्ट्रीय शिक्षा नीति पहले से ही आधार प्रस्तुत कर चुकी है। उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को स्नातक स्तर पर लागू कर चुका है। प्रदेश के सभी 30 शासकीय और 35 निजी क्षेत्र के विश्वविद्यालयों में भी इसे लागू करने के साथ ही, तकनीकी शिक्षा, कृषि शिक्षा, स्वास्थ्य शिक्षा और अन्य सभी क्षेत्रों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाने का कार्य उत्तर प्रदेश में किया गया है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों तथा शिक्षा केन्द्रों को स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप नवाचार और शोध के लिए अपने को तैयार करना चाहिए। शासन की योजनाओं से जुड़ते हुए छात्र-छात्राओं को उन योजनाओं की प्रारम्भ से ही जानकारी दी जानी चाहिए, जिससे जब वह अपनी डिग्री लेकर बाहर निकले, तो उसके सामने अपने जीवन की अनन्त सम्भावनाओं के द्वार स्वतः खुले हुए दिखायी दें। राष्ट्रीय शिक्षा नीति इस बात की प्रेरणा तो दे ही रही है, शिक्षाविदों के सहयोग से इसे मजबूती के साथ लागू करने में और मदद प्राप्त हो सकती है।
इस अवसर पर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनन्दीबेन पटेल जी, केन्द्रीय शिक्षा मंत्री श्री धर्मेन्द्र प्रधान, केन्द्रीय शिक्षा राज्यमंत्री श्रीमती अन्नपूर्णा देवी एवं डॉ0 सुभाष सरकार, प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री श्री योगेन्द्र उपाध्याय, प्राविधिक शिक्षा मंत्री श्री आशीष पटेल, बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री संदीप सिंह, उच्च शिक्षा राज्यमंत्री श्रीमती रजनी तिवारी, राष्ट्रीय शिक्षा नीति की ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन श्री के0 कस्तूरीरंगन सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति, शिक्षाविद एवं अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
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