उतरौला(बलरामपुर) त्याग और बलिदान का त्यौहार ईदुल अजहा(बकरीद) की कुर्बानी हर साहिबे निसाब (मालदार) मोमिन पर फर्ज है।
बकरीद की कुर्बानी की फजीलत का बयान करते हुए रजा मस्जिद उतरौला के पेश इमाम शाह आलम रजवी बताते हैं कि कुर्बानी करना वाजिब है यह हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है। हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह की रजा के लिए अपने बेटे हजरत इस्माइल अलैहिस्सलाम की कुर्बानी पेश की थी।प्यारे आका सल्ललाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह को बकरीद के दिन कुर्बानी से बड़ी और महबूब कोई इबादत नहीं।प्यारे नबी ने फरमाया कि कुर्बानी करने वाले को कुर्बान किए गए जानवर के हर एक बाल के बराबर नेकियां मिलती है।इसके अलावा हदीसों में आता है कि जो शख्स कुर्बानी सच्चे नियत और अल्लाह की रजा के लिए करता है तो जिस जानवर को उसने जिबह किया उसके खून जमीन पर गिरने से पहले उसके गुनाह माफ हो जाएंगे।
*कुर्बानी के फायदे*
कुर्बानी के जानवर के हर बाल के बदले सबाब मिलना,जानवर का खून गिरने से पहले सवाब मिलना,कुर्बानी के दिन का सबसे बड़ा अमल,अल्लाह को कुर्बानी पसंद है,कुर्बानी के लिए जानवर खरीदना और चीजों के खरीदने से बेहतर है।
असग़र अली
उतरौला
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