वाराणसी। हिटी। ज्ञानवापी-शृंगार गौरी प्रकरण में जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की कोर्ट में सोमवार को केस की मेरिट पर वादी राखी सिंह की ओर से अधिवक्ताओं ने बहस की। वरिष्ठ अधिवक्ता मान बहादुर सिंह, शिवम गौड़ और अनुपम द्विवेदी ने करीब दो घंटे तक बहस की और वाद को सुनने योग्य बताया। दलीलों में सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के आदेशों का भी हवाला दिया।

अधिवक्ता अनुपम द्विवेदी ने रमेश गोविंद राम बनाम सुग्रा हुमायू वफ्फ बोर्ड के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि वफ्फ ट्रिब्यूनल में सम्पत्ति को लेकर केवल मुस्लिमों के आपसी विवाद ले जाया जा सकता है। जबकि मुस्लिम व अन्य धर्म के बीच का विवाद ट्रिब्यूनल को सुनने का अधिकार नहीं है। अधिवक्ता ने वफ्फ अधिनियम 1995 के धारा-3 में वफ्फ, वाकिफ व औकाफ की व्याख्या की। कहा कि वफ्फ ट्रिब्यूनल में जो मुकदमे होते हैं, उनका उद्देश्य प्रबंधन, प्रशासन और शांतिपूर्वक उपभोग के लिए होता है। ऐसे में ज्ञानवापी-शृंगार गौरी प्रकरण वफ्फ ट्रिब्यूनल के दायरे में नहीं आता है। बल्कि सिविल सूट के तहत सुना जा सकता है।अधिवक्ता ने कहा कि पूजा के अधिकार के तहत सीपीसी के सेक्शन-9 के स्पष्टीकरण में कहा गया है कि यदि कोई धार्मिक महत्व या उससे सम्बंधित बिंदु पर दाखिल वाद है तो सिविल कोर्ट सुनवाई कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट सहित कई अन्य हाईकोर्ट के आदेश में भी कहा गया है कि पूजा का अधिकार सिविल राइट है, तो इसके लिए सिविल कोर्ट ही जा सकते हैं। इसलिए प्रतिवादी की ओर से केस की मेरिट के प्रार्थना पत्र को खारिज करते हुए वाद पर सुनवाई शुरू की जाए।

कोर्ट में सुप्रीमकोर्ट के अधिवक्ता शिवम गौड़ ने 361 पेज की लिखित बहस कोर्ट में दाखिल की और वक्फ बोर्ड, विश्वनाथ मंदिर एक्ट और विशेष धर्म उपासना स्थल एक्ट को लेकर सुप्रीमकोर्ट की नजीर दी। अदालत ने सुनवाई को जारी रखते हुए 19 जुलाई की भी तारीख तय कर दी है। वादी अधिवक्ता के बाद सरकार, शासन-प्रशासन की ओर डीजीसी सिविल अपना पक्ष रखेंगे। इसके बाद प्रतिवादी जवाब देगा।

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